चुन्नू भैया भोले भाले
खेल दिखाते बड़े निराले
है इनका दिमाग अलबेला
नए नए खेलों का मेला
कागज की तश्तरी बनाई
बड़े जतन से खूब सजाई
रहे गगन में उसको फेंक
कितने लोग रहे हैं देख
गोल गोल वह घूम रही
गिर धरती को चूम रही
सबने पूछा करते क्या?
ये क्या सूझा खेल नया?
चुन्नू बोले बड़े शान से
उतर रही है आसमान से
उड़न तश्तरी यह कहलाती
चक्कर खाकर नीचे आती
थोडा और बड़ा हो जाऊं
सचमुच की तश्तरी बनाऊं
फिर बच्चों की फौज भरूं
मंगल ग्रह की सैर करूं
(नागेश पांडेय ‘संजय’)