व्यक्तिगत जीवन और शिक्षा
रेणु आधुनिक हिंदी के पुरोधा थे। उनके पिता शैलनाथ मंडल स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। रेणु की प्रारंभिक शिक्षा अररिया और फारबिसगंज में हुई। फिर उन्होंने नेपाल के विराटनगर आदर्श विद्यालय से मैट्रिक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इंटरमीडियएट की शिक्षा प्राप्त की।
लेखन की ओर झुकाव
’फणीश्वरनाथ रेणु लेखन शुरू करने से पहले सामाजिक क्रांति संबंधी गतिविधियों में मशगूल थे। वे नेपाल में पढ़ रहे थे, तभी 1950 में उन्होंने नेपाली क्रांतिकारी आंदोलनों में हिस्सा लिया और नेपाल में जनतंत्र की स्थापना की। 1952-53 में रेणु बीमार पड़ गए। तब वे विभिन्न आंदोलनों में नहीं जा पा रहे थे। यही वह समय था जब रेणु ने लेखन के जरिए समाज में क्रांति की अलख जगाई। उस समय उन्होंने ‘तबे एकला चलो रे’ कहानी लिखी। लेखन के इस दौर में रेणु के मित्र बने अज्ञेय।
’रेणु हिंदी साहित्य में पहले साहित्यकार थे, जिन्होंने आंचलिक कथा की नीव रखी। किसी समाज को भीतर से समझने के लिए आंचलिक कहानियां बहुत सहायक होती हैं। रेणु के लेखन में उनके अंचल का दुख-दर्द दिखाई देता है।
लेखन शैली
’रेणु की खासियत है कि वे पहले पात्रों का चित्रण करते हैं। इसलिए उनकी रचनाएं पढ़ने पर लगता है कि जैसे वह पात्र आपके सामने खड़ा होकर आपसे संवाद कर रहा है। मसलन, उन्होंने ‘परती परिकथा’ में शुरू में ही दृश्य रचा है, जिसमें वे आधी रात में चिड़ियों की आवाज को शब्द और अर्थ देने की कोशिश करते हैं। रेणु के पास शब्दों का भंडार था। वे पात्रों के साथ शब्दों से खेलते थे।
’रेणु ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने समाज में फैली अशिक्षा, गैरबराबरी, भेदभाव आदि को सामने रखा। प्रेमचंद के बाद वे ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने ग्रामीण परिवेश की कहानी अपनी जुबान से बयान की। उन्होंने ‘मैला आंचल’ उपन्यास के माध्यम से दिखाया कि देश की आजादी केवल उन नेताओं ने नहीं लड़ी, जिन्हें लोग आज जानते हैं, बल्कि उसमें तमाम सामान्य लोग भी शामिल रहे। अपनी कथाओं में उन्होंने ग्रामीण जीवन की लोकथाओं का भी खूब प्रयोग किया है। आजादी के बाद का गांव रेणु के साहित्य में मिलता है।
सिनेमा में रेणु
रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ को बासु भट्टाचार्य ने फिल्म ‘तीसरी कसम’ के रूप में फिल्माया था। उनकी कहानी ‘पंचलाइट’ पर एक लघु फिल्म भी बनी। 2017 में आई फिल्म ‘पंचलैट’ भी रेणु की कहानी ‘पंचलाइट’ पर आधारित थी।
साहित्यिक कृतियां
फणीश्वरनाथ रेणु के प्रसिद्ध उपन्यास ‘मैला आंचल’ के लिए उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने आपातकाल की वजह से यह सम्मान वापस कर दिया। यह उपन्यास मुख्य रूप से उन लोगों के समकालीन सामाजिक जीवन को दर्शाता है, जो गरीब और पिछड़े होते हैं। यह बिहार के परिदृश्य, जाति के आधार पर समाज का विभाजन, स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष और ग्रामीण भारत की असल रूपरेखा को दर्शाता है। यह उपन्यास आज भी पाठकों के बीच लोकप्रिय है। पीढ़ियां बदल रही हैं, लेकिन हर नई पीढ़ी रेणु के मैला आंचल को पढ़ना चाहती है। उन्होंने मैला आंचल के अलावा ‘परती परिकथा’, ‘जुलूस’, ‘दीर्घतपा’, ‘कितने चौराहे’, ‘पलटू बाबू रोड’ जैसी कृतियों की रचना की।
निधन : 11 अप्रैल, 1977 को रेणु का निधन हो गया।