प्रसिद्ध कथा है। चार मूर्ख पंडितों की। पंडित यानी पढ़े-लिखे विद्वान। चारों पंडित गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त कर निकले। गुरु ने कहा- जो सीखा है उसे तर्कपूर्ण ढंग से जीवन में व्यवहार करना। चारों पंडित घर को चले। जंगल में रास्ता भटक गए। तभी उन्हें एक शवयात्रा मिली। पता चला, महाजनों के परिवार का कोई दिवंगत हुआ है। एक पंडित ने कहा- शास्त्र कहता है कि जिस रास्ते महाजन जाते हों, वही सही रास्ता है। चारों चल पड़े शवयात्रा के साथ। शवदाह के बाद सारे लोग चले गए, पंडित वहीं रुके रहे। तभी उन्हें वहां एक गधा दिखाई दिया।

एक पंडित ने कहा- जो संकट के समय और श्मशान में साथ दे वही सच्चा मित्र है। फिर वे चारों गधे के गले लग कर जोर-जोर से रोने और कहने लगे कि मित्र, कहां रहे तुम इतने दिन। गधे से मिल चुके तो उन्हें भूख का अहसास हुआ। तब वे पास के गांव में पहुंच कर एक घर में भोजन मांगा। घर के मुखिया ने जो घर में बना था, वह उन्हें परोस दिया। घर में सिवइयां बनी थीं। चारों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। एक पंडित ने कहा- दीर्घसूत्री विनश्यति। यानी लंबे सूत्र वाला जल्दी नष्ट हो जाता है। इस तरह उन्होंने भोजन का त्याग कर दिया और भूखे पेट घर की तरफ चल पड़े।

कथा का आशय यह है कि अगर ठीक ढंग से शिक्षा ग्रहण न की जाए, कथनों, सिद्धांतों का आशय गलत निकाल लिया जाए, तो जीवन में परेशानियां बनी रहती हैं। बहुत सारे लोग इसी तरह चीजों के अर्थ ग्रहण करते और उनका दूसरों में प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। इस तरह न सिर्फ वे खुद सत्य तक, चीजों के सही स्वरूप तक पहुंचने से वंचित रह जाते हैं, बल्कि दूसरों में भी भ्रम और अज्ञान भरते रहते हैं।