भक्ति का अर्थ भारतीय परंपरा में शरणागति कतई नहीं है। यही नहीं भक्तों ने समाज और संघर्ष का जो साझा हमारे यहां रचा, वह भक्ति की एक क्रांतिकारी समझ से लैस है। जिस रामकथा की सर्वाधिक लोक प्रसिद्धि भारत में है और आज भी जिसे काफी श्रद्धा के साथ सुना-पढ़ा जाता है, उसमें तो एक से एक भक्तों के वर्णन आए हैं। आलम यह है कि पशु-पक्षी से लेकर भील-मल्लाह तक सभी प्रभु के भक्त हैं और सबके साथ भगवान राम का व्यवहार विशाल हृदय और प्रेम से भरा है।
दरअसल, भक्त और भक्ति के बीच जो संबंध होता है वहां तर्क और ज्ञान निर्मूल होते हैं। इसमें जो सबसे अहम और प्रभावी होता है, वह निर्दोष संवेदना, अटूट भरोसा और अपरिमित प्रेम है। इस लिहाज से भगवान राम को जूठे बैर खिलाने का दुस्साहस दिखाने वाली शबरी का जीवन एक प्रेरक सुलेख की तरह है।
भारतीय लोक परंपरा में शबरी के बारे में जो कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं, उनमें उनका ताल्लुक भील जाति से बताया गया है। इस जाति में शुभ कार्यों से पहले पशुओं की बलि देने की परंपरा रही है। शबरी को यह हिंसा बचपन से पसंद नहीं आती थी और इसे लेकर उसके मन में कई तरह की दुविधाएं थीं, प्रश्न थे। अपनी दुविधा और प्रश्न से उबरने के लिए शबरी ने जो मार्ग चुना, वह रामभक्ति का मार्ग था।
बताते हैं कि शबरी बचपन से ही भगवान राम की भक्त थी। सुबह-शाम वह अपने रामजी के लिए पूजा-पाठ और व्रत रखती। जब उसका विवाह तय हुआ, तब बकरों और भैसों को बलि के लिए लाया गया। इन पशुओं की जान बचाने के लिए उन्होंने विवाह न करने का फैसला किया और घर से निकल गई।
हिंसा को लेकर यह विरोध इसलिए मायने रखता है क्योंकि पशुओं के प्रति हिंसा को कई बार जंगली कहे जाने वाले जनजातीय समाज के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बता दिया जाता है। जबकि यह सही नहीं है। प्रकृतिपुत्रों का समाज तो वन और जीवन का एक ऐसा साझा बुनने वाला समाज है, जहां सबके जीवन का मान है, सबके लिए स्थान है और सबके साथ समन्वयी रिश्ता भी है।
शबरी का जीवन भक्ति के नए भाष्य की तरह है। वैसे भी भक्ति के संबंध में अलग से यह बात रेखांकित की गई है कि यह प्रेम अपने आप में संवेदना का सर्वोच्च है और इस शिखर तक पहुंचे मन को ईश्वर के प्रति भक्ति या समर्पण के लिए किसी और साधन की जरूरत नहीं होती। घर छोड़कर शबरी जब वन में यहां-वहां भटक रही थी तो उसे रास्ते में एक आश्रम दिखा। उस आश्रम को देख शबरी ठिठक गई। आश्रम के अंदर दाखिल होने को लेकर वो दुविधा की स्थिति में थी। तभी वहां ऋषि मतंग आए और शबरी से उसका परिचय पूछा। काफी सोच-विचार के बाद ऋषि ने शबरी को आश्रम में आने की अनुमति दी। कुछ ही दिनों में शबरी अपनी रामभक्तिऔर अच्छे व्यवहार से आश्रम में सबकी प्रिय बन गई।
शबरी ने कई वर्ष तक ऋषि मतंग की पिता के समान सेवा की। लेकिन एक दिन ऋषि के दुर्बल शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया। पर मृत्यु से पहले ऋषि मतंग शबरी को यह आशीर्वाद देकर गए कि उसे एक दिन उनके राम के दर्शन जरूर होंगे। कई साल बीत गए। शबरी हर दिन अपने आराध्य के लिए रास्ते पर फूल बिछाती और उनके भोग का इंतजाम करती। इस आस में कि भगवान राम जरूर उन्हें दर्शन देंगे।
आखिरकार वह दिन भी आया। भगवान राम माता सीता की खोज में ऋषि मतंग के आश्रम पहुंचे। एक ऋषि ने प्रभु राम को वहां बिठाया और शबरी को आवाज दी। उन्होंने आवाज लगाते हुए कहा कि तुम जिन भगवान का दिन-रात पूजन करती हो वे खुद आश्रम पधारे हैं- आओ और मन भरके अपने आराध्य की सेवा करो। भगवान राम को सामने पाकर शबरी उन्हें निहारती रही। कुछ देर बाद उसे स्मरण हुआ कि उसने अपने भगवान को कुछ खिलाया नहीं। वो जंगल जाकर कंद-मूल और बेर लेकर वापस आश्रम लौटी।
कंद-मूल तो उन्होंने प्रभु राम को दिए, लेकिन बेर खट्टे न हों इस डर से उन्हें देने का साहस नहीं कर पाई। अपने भगवान को मीठे बेर खिलाने के लिए शबरी ने उन्हें चखना शुरू किया। अच्छे और मीठे बेरों को वे प्रभु राम को देने लगी और खट्टे बेरों को फेंकने लगी। भगवान राम शबरी की इस भक्ति को देख मोहित हो गए लेकिन उनके अनुज लक्ष्मण यह देख अचंभित हुए कि भैया जूठे बेर खा रहे हैं। इस पर भगवान राम ने लक्ष्मण को समझाया कि ये जूठे बेर शबरी की भक्ति है, इसमें उसका प्रेम है। तभी से कहानी ‘शबरी के बेर’ नाम से प्रसिद्ध हुई।
शबरी के नाम पर भी देश में कई मंदिर हैं। हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान राम की अनन्य उपासिका शबरी ने अपने आराध्य को जूठे बेर खिलाए थे। यह एक अनूठा प्रसंग है। इसलिए जिस किसी भी भक्त कवि ने इसका वर्णन किया उसने इस प्रसंग को भक्ति और विनय के एक अद्भुत उदाहरण की तरह पेश किया।
यह प्रसंग रामायण, रामचरितमानस, सूरसागर और साकेत जैसे ग्रंथों में मिलता है। विरोध और प्रेम के बीच शबरी की भक्ति यात्रा मानवीय संवेदना से जुड़े दरकारों पर तो खरी उतरती ही है, यह दुविधा के हिंसक आग्रहों के बीच हमें राह भी दिखाती है।