यह जीत लिएंडर पेस के लिए खास मायने रखती है। इस सफलता के साथ उन्होंने मिक्स्ड डबल्स में करिअ‍ॅर स्लैम पूरा कर लिया यानी वह टेनिस के चारों ग्रैंडस्लैम आस्ट्रेलियाई ओपन, फ्रेंच ओपन, विंबलडन और अमेरिकी ओपन का खिताब जीतने की उपलब्धि के साथ जुड़ गए। 35 वर्षीय महान महिला खिलाड़ी मार्तिना हिंगिस के साथ उन्होंने 2015 में आस्ट्रेलियाई ओपन, विंबलडन और अमेरिकी ओपन के खिताब जीते थे। इन टूर्नामेंटों में वह एक से ज्यादा बाद सफलता का स्वाद चख चुके थे। लेकिन फ्रेंच ओपन की ट्राफी उनके शो केस की शोभा नहीं बन सकी थी। वैसे इस अजूबे भारतीय खिलाड़ी ने पुरुष डबल्स में भी चारों ग्रैंडस्लैम खिताब जीतने का कारनामा किया है। दोनों स्पर्धाओं में इस तरह की अनोखी उपलब्धि से जुड़ने वाले पेस तीसरे खिलाड़ी हैं। इससे पहले आस्ट्रेलिया के टाड वुडब्रिज और मार्क वुडफोर्ड यह कमाल कर चुके हैं।

यों तो पेस ने दूसरे जोड़ीदारों के साथ भी ग्रैंडस्लैम खिताब जीते हैं पर मार्तिना हिंगिस के साथ उनकी जोड़ी सबसे सफल रही है। दोनों ने अब तक चार ग्रैंडस्लैम खिताब जीते हैं। फ्रेंच की सफलता के साथ हिंगिस का भी मिक्स्ड डबल्स में करिअ‍ॅर स्लैम पूरा हो गया है। इससे पहले पेस और दक्षिण अफ्रीका की कारा ब्लैक की जोड़ी भी काफी हिट रही थी। 2009 से 2011 के बीच इस जोड़ी ने पांच ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंटों के फाइनल में स्थान बनाया था जिसमें तीन में उन्हें जीत मिली थी।

बीते कई सालों से भारतीय टेनिस में कई विवाद पनपे हैं। इन सभी विवादों में कहीं न कहीं रोहन बोपन्ना का नाम जुड़ता रहा है। 2012 के लंदन ओलंपिक में टीम के स्वरूप को लेकर जो कड़वाहट उभरी थी, वह अभी भी दूर नहीं हुई है। इस बार अखिल भारतीय टेनिस संघ की चयन समिति के दखल के बाद लिएंडर पेस भले ही भारतीय टीम का हिस्सा बन गए हों पर यह जरूरी नहीं कि उनकी बोपन्ना के साथ जोड़ी रियो ओलंपिक में हिट होगी। वैसे दोनों के खेल में कई मजबूत पहलू हैं और कड़वाहट को भुलाकर दोनों ओलंपिक पदक का सपना साकार कर सकते हैं।

डबल्स मुकाबलों में जोड़ीदारों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान जरूरी है। अगर खिलाड़ी कोर्ट पर एक-दूसरे के प्रति भरोसा नहीं दिखाएगा तो प्रदर्शन गड़बड़ा जाएगा। ओलंपिक में आप अपने लिए नहीं, देश के लिए खेलते हो। लक्ष्य होता है पदक जीतना। पदक तभी जीत सकते हो अगर कोर्ट पर बराबरी का प्रयास हों, खिलाड़ियों में आपसी मनमुटाव या मतभेद नहीं हो। लेकिन अगर आप जिसके साथ जोड़ी बनाने जा रहे हों, उसका अनादर करके खेलों तो सफलता के प्रति संदेह किया जा सकता है।
वैसे तो आज का टेनिस खिलाड़ी पेशेवर है। टेनिस सर्किट के पुरुष डबल्स के जोड़ीदार बदलते रहते हैं। यह बदलाव रोहन बोपन्ना ने भी किया है और लिएंडर पेस ने भी।

बोपन्ना 60 से और पेस सौ से ज्यादा जोड़ीदारों को बदल चुके हैं। इनमें कुछ जोड़ियां सफल रहीं और कुछ असफल। लेकिन जब किसी खिलाड़ी का लाजवाब रिकार्ड सामने हो और उसकी उपेक्षा की जाए तो बुरा लगता है। खासतौर पर तब जब अनादर किए जाने वाले खिलाड़ी की उपलब्धियों के सामने वह खिलाड़ी कहीं नहीं टिकता हो। टाप दस में शुमार रोहन बोपन्ना ने उस महारथी को ओलंपिक के लिए अपनी पसंद नहीं बनाया जो अंतरराष्ट्रीय टेनिस का सबसे दमदार और सफल डबल्स खिलाड़ी है। दस मिक्स्ड और आठ पुरुष डबल्स खिताब उसकी सफलता के गवाह हैं। फिर भी अपनी पसंद के जोड़ीदार के रूप में बोपन्ना ने पेस के दावे को दरकिनार करते हुए 125वीं रैंकिंग के विष्णुवर्धन को अपनी पहली पसंद बनाया। उस विष्णु को जिसे बड़े स्तर की टेनिस का खास अनुभव भी नहीं है। ऐसा ही सानिया मिर्जा ने भी किया। पेस की सफलता की अनदेखी कर बोपन्ना की दोस्ती को प्राथमिकता दी।

दरअसल अंतरराष्ट्रीय टेनिस संघ का यह नियम ही बकवास है जो खिलाड़ी को टाप दस में होने के नाते अपनी पसंद का जोड़ीदार चुनने की छूट देता है। लेकिन इस छूट का क्या मतलब जब राष्ट्रीय टेनिस संघ उसकी पसंद पर ‘वीटो’ कर दे। इसी ‘वीटो’ के चलते बोपन्ना को ओलंपिक में उस खिलाड़ी (पेस) के साथ खेलना पड़ेगा जिसे वह पसंद नहीं करता। खैर, समय रहते जोड़ीदारों का विवाद सुलझ गया। इससे सबसे ज्यादा राहत लिएंडर पेस को मिलेगी, भारतीय टेनिस के सबसे सफलतम खिलाड़ी पेस पुरुष डबल्स में बोपन्ना के साथ जोड़ी बनाकर खेलेंगे जबकि मिक्स्ड डबल्स में बोपन्ना और सानिया मिर्जा जोड़ी बनाएंगे। बोपन्ना और सानिया दोनों अच्छे दोस्त हैं, टेनिस लीग में भी साथ खेलते हैं। दोनों ही लिएंडर को पसंद नहीं करते। इसलिए यह जानते हुए भी मिक्स्ड डबल्स के सबसे कामयाब खिलाड़ी पेस हैं, सानिया ने पेस के साथ जोड़ी नहीं बनाई। इसी माह के शुरू में फ्रेंच ओपन के मिक्स्ड डबल्स फाइनल में पेस-हिंगिस की जोड़ी ने डोडिग-सानिया की जोड़ी को हराकर खिताबी सफलता पाई थी। पिछले डेढ़ साल में पेस छह ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट खेले और चार में हिंगिस के साथ विजेता रहे। यह उनकी मेहनत, कौशल और जज्बे का कमाल है जिसने उनके शोकेस की ट्राफियों में इजाफा हुआ है।

रियो शायद लिएंडर पेस का अंतिम ओलंपिक होगा। डबल्स में ओलंपिक पदक जीतकर वह इसे यादगार बनाना चाहते हैं। ओलंपिक इतिहास में लिएंडर पेस ही इकलौते भारतीय टेनिस खिलाड़ी हैं जिन्हें पदक जीतने का सौभाग्य प्राप्त है। 1996 के अटलांटा ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक जीता था। वैसे अगर मिक्स्ड डबल्स में सानिया उनको जोड़ीदार बनाती तो भारत के पदक जीतने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती। लेकिन टेनिस संघ की चयन समिति के अपने तर्क थे। बोपन्ना डबल्स के कुशल खिलाड़ी हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि सानिया के साथ उनके खेल का रंग जमेगा और रियो से कोई अच्छी खबर आएगी। सानिया महिला डबल्स में भारत की दूसरे नंबर की खिलाड़ी प्रार्थना थोबरे के साथ जोड़ी बनाएंगी। दोनों साथ-साथ ज्यादा नहीं खेली हैं। इससे उनसे बहुत ज्यादा अपेक्षाएं रखना बेमानी होगा।

टेनिस जगत में आज भारत की पहचान भी अपने डबल्स खिलाड़ियों से ही है। ऐसा नहीं है कि भारत ने सिंगल्स के अच्छे खिलाड़ी पैदा नहीं किए हैं। पिछले छह दशक में रामानाथन कृष्णन, जयदीप मुखर्जी, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन, लिएंडर पेस, सोमदेव देवबर्मन और युकी भांबरी ने कुछ यादगार जीत पाई हैं। टेनिस की ताकत नहीं होने के बावजूद भारतीय टीम ने अपने जोशीले और जुझारूपन खेल से दो बार प्रतिष्ठित डेविस कप के फाइनल में पहुंचकर सभी को चौंकाया है। जूनियर खिलाड़ी के रूप में ग्रैंडस्लैम खिताब जीतकर रमेश कृष्णन, लिएंडर पेस और युकी भांबरी ने अपने कौशल का रंग जमाया है। सुमित नागल भी जूनियर डबल्स में सफलता पा चुके हैं। महिला वर्ग में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी बनकर सानिया मिर्जा भी भारतीय टेनिस की चमक बिखेर रही हैं।

लिएंडर पेस की उपलब्धियों को देखें तो यकायक मुंह से निकल जाता है वाह! यह संयोग ही है कि सचिन तेंदुलकर की तरह लिएंडर पेस ने भी 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया था। 24 साल के बेहतरीन करिअ‍ॅर में सचिन की उपलब्धियों ने उन्हें ‘भारत रत्न’ दिला दिया। लिएंडर का करिश्माई प्रदर्शन भी उनसे किसी मायने में कम नहीं है। 199० में जूनियर विंबलडन खिताब जीतने के बाद पेस की सफलता का क्रम जारी है।

पुरुष हो या महिलाए हर कोई खिलाड़ी उनका जोड़ीदार बनने को उत्सुक रहता है। पुरुष डबल्स में अब तक सौ से ज्यादा और मिक्स्ड डबल्स में 23 जोड़ीदार उनकी लोकप्रियता की कहानी बयां करते हैं। 18 ग्रैंडस्लैम डबल्स खिताब और लगभग इतने में ही उपविजेता बनना लिएंडर की कुशलता का प्रमाण है। अंतरराष्ट्रीय टेनिस में 94 फाइनल खेलकर 55 डबल्स खिताब जीतना यह दर्शाता है कि वह कितने गजब के खिलाड़ी हैं।

पेस की तरह ही महेश भूपति भी महान डबल्स खिलाड़ी हैं। दरअसल भूपति ही वह शख्स हैं जिन्होंने भारतीय खिलाड़ियों में ग्रैंडस्लैम सफलता की भूख जगाई। पहली सफलता उन्होंने 1997 में दर्ज की। मिक्स्ड डबल्स में जापान की रीका हिराकी के साथ उन्होंने फ्रेंच ओपन खिताब जीता। इसी साल पुरुष डबल्स में भूपति और पेस जोड़ीदार रहे।

दोनों का पहला साल निराशाजनक रहा। 1998 में यह जोड़ी तीन ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंटों के सेमीफाइनल में पहुंची। इसी वर्ष भूपति और मीरजाना की जोड़ी विंबलडन मिक्स्ड डबल्स के फाइनल तक पहुंचकर हार गई। लेकिन 1999 का साल पेस.भूपति की जोड़ी के लिए यादगार रहा। यह जोड़ी चारों ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंटों के फाइनल में पहुंची। दो में जीती और दो में हारी। इस प्रदर्शन ने ही उनको दुनिया का नंबर एक जोड़ी बनाया। बाद में यह जोड़ी टूटती-बनती रही। देश के लिए खेलते हुए भी दोनों खास सफल रहे। डेविस कप में तो लगातार 23 डबल्स मुकाबले जीतने का रिकार्ड भी इसी जोड़ी के नाम है। दोनों ने एटीपी टूर पर 25 खिताबी जीत दर्ज की है।

मिक्स्ड डबल्स में भूपति और सानिया मिर्जा की जोड़ी भी काफी सफल रही। 2007 से 2011 तक दोनों ने कई ग्रैंडस्लैम खिताब भी जीते। लगभग एक दर्जन ग्रैंडस्लैम खिताब भूपति के शोकेस की शोभा बन चुके हैं जिनमें विभिन्न जोड़ीदारों के साथ मिक्स्ड डबल्स खिताब भी शामिल हैं। सन 1960 के दशक में जब टेनिस मानचित्र पर आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की तूती बोलती थी। भारत ने सिंगल्स और डबल्स में मजबूत चुनौती पेश की। रामानाथन कृष्णन, जयदीप मुखर्जी और प्रेमजीत लाल की तिकड़ी ने कई शानदार सफलताएं हासिल कीं, उस समय के दिग्गज खिलाड़ियों और डबल्स जोड़ियों को हराया।

1954 में जूनियर विंबलडन खिताब जीतने वाले रामानाथन कृष्णन 1960 और 61 में दो बार विंबलडन के सेमीफाइनल में पहुंचे। उन्होंने अपनी चौथी सीडिंग के अनुरूप खेल दिखाया। 1966 को डेविस कप फाइनल खेलने वाली भारतीय टीम का वह हिस्सा थे। कृष्णन और जयदीप की डबल्स जोड़ी भी सशक्त थी। उनकी कई धमाकेदार विजयों में सबसे शानदार था। जान न्यूकांब और टोनी रोश की आस्ट्रेलियाई जोड़ी को हराना।

रामानाथन के पुत्र रमेश कृष्णन का भी भारतीय टेनिस में अहम योगदान रहा। जूनियर खिलाड़ी के रूप में विंबलडन और फ्रेंच ओपन खिताब जीतने वाला यह खिलाड़ी 1987 की उस डेविस कप टीम का सदस्य था जिसने फाइनल में स्वीडन से शिकस्त झेली। रमेश दो बार अमेरिकी ओपन और एक बार विंबलडन के सिंगल्स क्वार्टर फाइनल में पहुंचे। बार्सिलोना ओलंपिक में उनकी और पेस की जोड़ी क्वार्टर फाइनल तक पहुंची।

1970 के दशक में विजय अमृतराज का जलवा रहा। विजय और उनके भाई आनंद अमृतराज की जोड़ी भी काफी चमकी। दोनों 1976 के विंबलडन सेमीफाइनल तक पहुंचे। उस दौर में जान कोड्स, केन रोजवैल, ब्योर्न बोर्ग, जान मैकनरो, जिम्मी कोनर्स की धाक थी। 1974 में विजय ने फोरेस्ट हिल्स टेनिस में ब्योर्न बोर्ग को हराया। 1984 में सिनसिनाटी ओपन में उन्होंने जान मैकनरो पर चौंकाने वाली जीत पाई। जिम्मी कोनर्स के साथ हुए 11 मुकाबलो में विजय पांच बार जीते। उनकी कप्तानी में भारतीय डेविस कप टीम 1974 और 1987 के फाइनल में पहुंची।

रोहन बोपन्ना ने भी शुरुआत सिंगल्स से की लेकिन जल्द ही उनको डबल्स करिअ‍ॅर ज्यादा भा गया। आज वह टाप दस डबल्स खिलाड़ियों में शुमार हैं। अगला सुपरस्टार कौन होगा, इसकी तलाश जारी रहेगी।