रियो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन को लेकर आशा बलवती है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने भी इस बार अधिक पदक आने की भविष्यवाणी की है। विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने रियो जा रहे खिलाड़ियों का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में बेहतर रहा है, इसलिए भी उन्हें लेकर उत्साह बना हुआ है। मगर इस बार कितनी कामयाबी मिल पाएगी, आकलन पेश कर रहे हैं-श्रीशचंद्र मिश्र।
रियो ओलंपिक में भारतीय संभावनाओं को लेकर गजब का उत्साह है। यह चार साल पहले लंदन ओलंपिक में मिली सफलता का असर है। तब 204 देशों के इस खेल महाकुंभ में पदक तालिका में भारत पचपनवें स्थान पर जरूर रहा था, लेकिन स्वर्ण पदक से वंचित रहे देशों में वह सबसे आगे था और दक्षिण एशियाई देशों में ओलंपिक पदक जीतने वाला एकमात्र देश रहा। सफलता छोटी थी, लेकिन उसने भविष्य के लिए आत्मविश्वास पैदा किया और नई उम्मीदों के दरवाजे खोल दिए। रियो द जनेरियो में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए खिलाड़ी आत्मविश्वास से लबालब हैं।
सवा सौ करोड़ लोग अब रियो ओलंपिक से दस-बारह पदक पाने की आस लगाए हुए हैं, तो लंदन ओलंपिक का प्रदर्शन उसका आधार है ही, बीच के चार सालों में निशानेबाजी, बैडमिंटन, लॉन टेनिस, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और कुश्ती में भारतीय खिलाड़ियों को जो वैश्विक सफलताएं मिली हैं उनके ओलंपिक पदक में बदल पाने के आसार बन रहे हैं।
पहली बार रियो ओलंपिक में सौ से ज्यादा भारतीय खिलाड़ी उतरेंगे। चार साल पहले तेरह खेलों में तिरासी खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। संख्या पदक का अनुपात तय नहीं सकती, खासकर ओलंपिक खेलों में, जहां दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों से पार पाने के लिए मानसिक और शारीरिक क्षमता की दुर्गम कसौटी लांघनी पड़ती है। पिछली उपलब्धियां और ख्याति कोई मायने नहीं रखती। महत्त्वपूर्ण होता है निर्णायक मौके पर खुद को संतुलित रख कर जीत का लक्ष्य भेदना।
रियो ओलंपिक के लिए पहली बार जो ज्यादा सकारात्मक माहौल दिख रहा है, वह खेल मंत्रालय की अतिरिक्ति सक्रियता की वजह से भी है। शुरुआत हुई टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम यानी टॉप्स से। लक्ष्य था कि जिन खिलाड़ियों से रियो ओलंपिक में पदक मिलने की आस है उनकी पहचान कर उन्हें आर्थिक मानसिक, शारीरिक और तकनीकी रूप से तैयार किया जाए। और सघन अभ्यास के लिए उन्हें आर्थिक सहायता समेत पर्याप्त संसाधन मुहैया कराए जाएं। ओलंपिक के लिए क्वालीफिकेशन का दौर क्योंकि आखिरी समय तक चलता है और टॉप्स के तहत खिलाड़ी पिछले साल ही छांट लिए गए थे, इसलिए इस महत्त्वाकांक्षी योजना में कुछ झोल आ गए। योजना में शामिल मेरी कॉम, सरिता देवी, पी कश्यप, देवेंद्रो सिंह, विजय कुमार, पीएन प्रकाश जैसे कई खिलाड़ी क्वालीफाइ ही नहीं कर पाए। जिन्होंने आखिरी मौके पर अर्हता स्तर पार किया वे विशेष सुविधा से वंचित रह गए।
बहरहाल, अब समय आगे देखने का है और यह आकलन करने का भी कि रियो ओलंपिक में कौन खिलाड़ी अपनी प्रतिभा, लगन और जीवट से पदक छू पाएगा। वैश्विक रेटिंग एजंसी ‘प्राइस वाटर हाउस कूपर्स’ का मानना है कि इस बार भारत को बारह पदक मिलेंगे। पदक का रंग क्या होगा, यह अनुमान कोई नहीं लगा सकता। लंदन ओलंपिक में भारत के छह पदक जीतने की एजंसी की भविष्यवाणी सही साबित होने के बाद रियो ओलंपिक के लिए उसके आकलन पर भरोसा किया जाए तो यह जानने की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि कौन वे खिलाड़ी होंगे, जो पदक की दहलीज लांघ पाएंगे।
निशानेबाजी में बड़ा दांव-
तीन ओलंपिक खेलों में एक स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक दिलाने वाले निशानेबाजों से कम से कम तीन-चार पदक की उम्मीद की जा सकती है। ओलंपिक खेलों में अपने बारह निशानेबाज मैदान में होंगे। ओलंपिक खेलों में निशानेबाजी की पंद्रह स्पर्धाएं होनी हैं। उसके लिए करीब दो सौ देशों के 390 निशानेबाज चुने गए हैं। चार साल पहले कांस्य पदक जीतने वाले गंगन नारंग 2008 और 2012 में क्वालीफाइ करने वाले पहले निशानेबाज थे। गंगन पहले भारतीय हैं जिन्होंने राइफल की दस मीटर, पचास मीटर प्रोन और पचास मीटर थ्री पोजीशन की तीनों स्पर्धाओं के विश्व कप में पदक जीता है। इस बार प्रोन स्पर्धा के लिए क्वालीफाइ करने में उन्हें खासी मशक्कत करनी पड़ी। रियो अभिनव बिंद्रा का लगातार पांचवां और आखिरी ओलंपिक होगा। म्यूनिख में पिछले साल हुए विश्व कप में उन्होंने रियो के लिए क्वालीफाइ तो किया लेकिन फाइनल में छठा स्थान ही पा सके। 2014 में नौ दिन के भीतर विश्व कप में तीन पदक जीत कर चर्चा में आए जीतू राय ने हालांकि ग्रेनाना (स्पेन) की विश्व प्रतियोगिता में रजत पदक जीत कर रियो ओलंपिक के लिए सबसे पहले क्वालीफाइ किया, लेकिन गॉल ब्लैडर और कंधे की तकलीफ ने उन्हें लगातार परेशान किए रखा। 2014 के बाद से पचास मीटर फ्री पिस्टर स्पर्धा में उनका प्रदर्शन औसत रहा। इस साल इससे वे उबरे हैं। बाकू में हुए विश्व कप में उन्होंने रजत पदक जीता, पांच फाइनल में वे खेले और दो बार दूसरे नंबर पर रहे।
पच्चीस साल के किनान चेनाइ और चालीस साल के मैराज अहमद खान ने क्वालीफाइ करके जरूर चौंकाया है। चेनाई ने ट्रैप स्पर्धा में तीन ओलंपिक खेलों में हिस्सा ले चुके छह बार के एशियाई चैंपियन मानवजीत सिंह संधु को मात देकर रियो ओलंपिक का कोटा हासिल किया है। मैराज पहले भारतीय हैं, जो क्वालीफाइंग व्यवस्था लागू होने के बाद स्कीट स्पर्धा का हिस्सा होंगे।
रियो ओलंपिक के लिए जिन तीन महिला निशानेबाजों ने क्वालीफाइ किया है उनमें तेईस साल की मॉडल और इलेक्ट्रानिक्स में एमटेक कर रहीं अयोनिका पाल ने एशियाई चैंपियन पूजा घटकर को मात देकर ओलंपिक कोटा हासिल किया है। हिना सिद्धू ने पहली बार वैध तरीके से क्वालीफाइ किया है। 2013 के म्यूनिख विश्व कप फाइनल में नया रिकार्ड बनाने वाली हिन 2014 और 2015 में एशियन चैंपियन रह चुकी हैं। यूरोप में प्रशिक्षण पा रहीं तेईस साल की अपूर्वी चंदेला पिछले साल उस समय सुर्खियों में आर्इं जब कोरिया में हुए विश्व कप में दस मीटर एयर राइफल का कांस्य पदक जीत कर वे रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाइ करने वाली पहली निशानेबाज बनीं।
भारतीय निशानेबाज रियो में अपने प्रदर्शन में एकरूपता ला पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। नए नियम लागू होने की वजह से यह बेहद जरूरी है। पहले क्वालीफाइंग दौर और फाइनल के स्कोर को जोड़ दिया जाता था। इस बार पदक का फैसला सिर्फ फाइनल के स्कोर से होगा। मौजूदा फार्म को देखते हुए जीतू राय, अभिनव बिंद्रा, हिना सिद्धू और अपूर्वी चंदेला पदक की दावेदार हो सकती हैं। मेराज और चेनाई भी रंग जमा सकते हैं।
कुश्ती से आस-
रियो ओलंपिक में भारतीय प्रतिनिधित्व आठ पहलवान करेंगे। यह पहला मौका है जब कुश्ती के तीनों वर्ग- पुरुष और महिला फ्रीस्टाइल और ग्रीको रोमन में भारतीय पहलवान हिस्सा लेंगे। 2012 के लंदन ओलंपिक में पांच पहलवान गए थे और देश को मिले कुल छह पदकों में से एक रजत पदक और एक कांस्य पदक उन्होंने ही दिलाया था। उसके बाद से काफी सकारात्मक बदलाव हुए हैं। कुश्ती को लेकर सरकारी नजरिया बदला है और विदेशों में पहलवानों को प्रशिक्षण दिलाने के लिए अच्छा खासा पैसा खर्च किया गया है। रियो ओलंपिक के आखिरी दो क्वालीफाइंग मुकाबलों से पहले संभावित पहलवानों को एक महीने जार्जिया के तबलिसी में सघन प्रशिक्षण दिलाया गया। कुश्ती में इससे पहले ज्यादा पदक जीतने की संभावना कभी देखी नहीं गई थी।
पहली बार तीन महिला पहलवान, ग्रीको रोमन वर्ग में बारह साल बाद दो पहलवान यानी ओलंपिक इतिहास में भारत का गजब का जलवा रहेगा रियो ओलंपिक में। लेकिन चुनौती अब ज्यादा कड़ी है, खासकर बबिता और उन्हीं जैसी परिस्थितियों में ग्रीको रोमन कुश्ती के पचासी किलो वर्ग में किस्मत से ओलंपिक में जगह पाने वाले रवींद्र खत्री के लिए। ज्यादा दबाव योगेश्वर दत्त और नरसिंह यादव पर रहेगा। उन्हें साबित करना है कि वे सुशील कुमार का बेहतर विकल्प हो सकते हैं। अपने आखिरी ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना योगेश्वर दत्त का लक्ष्य है। इन दोनों के अलावा बबिता फोगट, विनेश फोगट और साक्षी मलिक में से किसी से भी पदक की आस लगाई जा सकती है।
साइना-सिंधू के सहारे-
निशानेबाजी और कुश्ती की तरह बैडमिंटन में भी पहले की तुलना में ज्यादा- कुल सात खिलाड़ी रियो जा रहे हैं। चार साल पहले साइना नेहवाल ने ओलंपिक पदक जीतने की जो पहल की थी, उसी ने यह विश्वास जगा दिया है कि बैडमिंटन में और भी पदक हासिल किए जा सकते हैं। चौदह महीने के खिताबी सूखे को इस साल आस्ट्रेलियाई ओपन में खत्म कर साइना जिस चमक के साथ उभरी हैं उससे लगता है कि रियो में वे लंदन ओलंपिक वाली सफलता को और बेहतर तरीके से दोहरा सकती हैं। रैकिंग में दसवें नंबर की पीवी सिंधू पिछले साल बाएं पैर में स्ट्रैस फ्रैक्चर की वजह से परेशान रही, लेकिन मकाऊ ओपन ग्रा प्री लगातार तीसरी बार जीत कर और डेनमार्क के सुपर सीरिज के फाइनल में जगह बना कर वे रंगत में आ चुकी हैं। सिंधू पहली भारतीय हैं जो दो विश्व प्रतियोगिताओं में कांस्य पदक जीत चुकी हैं।
मनु अत्री और सुमित रेड्डी ने पिछले साल बेल्जियम इंटरनेशनल चैलेंज और लागोसा इंटरनेशनल चैलेंज में खिताब जीता। इसके अलावा डच ओपन ग्रां प्री, प्राग ओपन इंटरनेशनल चैलेंज, ग्वाटेमाला इंटरनेशनल चैलेंज और यूएस ओपन ग्रां प्री के फाइनल में उन्होंने जगह बनाई। इस साल कनाडा ओपन में भी मनु और सुमित की जोड़ी ने खिताब पर कब्जा किया। ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने पिछले साल कनाडा ओपन ग्रां प्री का खिताब जीता और यूएस ओपन ग्रां प्री गोल्ड के फाइनल में जगह बनाई। इस साल ज्वाला और अश्विनी पिछले साल की तेरहवीं रैंकिंग से फिसल कर बीसवें स्थान पर आ गई हैं। उनके और मनु-सुमित के लिए डबल्स में राह आसान नहीं होगी। ले-देकर उम्मीदों का सारा बोझ साइना पर है। 2012 के लंदन ओलंपिक में मिले कांस्य पदक का रंग बदलने की उनकी लालसा भी उनका तनाव बढ़ाएगी। साइना के पास जितना अनुभव है उसमें इन तमाम परिस्थितियों के बीच संतुलन बनाए रख कर एकाग्रता से मैदान में उतरने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। ऐसा हो पाया और ड्रा थोड़ा-बहुत अनुकूल रहा तो साइना का पदक पक्का। पीवी सिंधू और किंदाबी श्रीकांत के लिए खुद को साबित करने की कड़ी चुनौती होगी।
मुक्केबाजी में भी तीन का दम-
विजेंद्र सिंह के प्रोफेशनल हो जाने और देवेंद्रो सिंह और सुमित सांगवान के क्वालीफाइ न कर पाने की वजह से रियो ओलंपिक के रिंग में तीन मुक्केबाज ही उतर पाएंगे। पिछली बार मेरी कॉम को मिला कर आठ मुक्केबाज गए थे। हालांकि संख्या से सफलता नहीं मिलती। ऐसा होता तो विजेंदर समेत सात पुरुष मुक्केबाज खाली हाथ नहीं लौट आते। इस बार जो तीन मुक्केबाज जा रहे हैं, वे सभी पदक के प्रबल दावेदार लगते हैं। तीनों लंदन ओलंपिक में भी थे। विकास कृष्ण तब अमेरिकी दबाव और भारतीय अधिकारियों की काहिली की वजह से जीती बाजी हार गए थे। शिव थापा और मनोज कुमार लंदन ओलंपिक के अनुभव से सबक सीख चुके हैं। ब्रिटिश मुक्केबाज आमिर खान का आकलन है कि तीन भारतीय मुक्केबाजों से रियो ओलंपिक में पदक जीतने की संभावना है।
अब दीपिका की बारी-
तीरंदाजों ने लंदन ओलंपिक के पुरुष और महिला वर्ग की टीम और व्यक्तिगत स्पर्धा में हिस्सा लेकर जो इतिहास रचा था, सामूहिक विफलता ने उस पर पानी फेर दिया था। तब सत्रह साल की दीपिका कुमारी सबसे बड़ी उम्मीद थी, लेकिन उनकी एकाग्रता कई कारणों से भंग हो गई। उन बुरी यादों को भुला कर दीपिका लक्ष्मी रानी मांझी और रिमी बिरुइली के साथ टीम और व्यक्तिगत स्पर्धा में कुछ नया करने को तैयार हैं। पुरुष वर्ग में मंगल सिंह चंपा और अतनु दास सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा में ही हुनर दिखा पाएंगे। मंगल सिंह और अतनु ने जयंत तालुकदार के साथ टीम स्पर्धा के लिए नाम लिखाने में मेहनत तो काफी की, लेकिन अंताल्या तुर्की में हुए क्वालीफिकेशन मुकाबले में लक्ष्य नहीं भेद पाए। पदक का दारोमदार अब दीपिका और उनकी अगुआई वाली महिला टीम पर है।
दस खेलों में चमत्कार का सहारा-
पदक की मजबूत संभावना वाले पांच खेलों के अलावा रियो ओलंपिक में दस और खेलों में भारतीय उपस्थिति होगी। इसमें तैराकी में सिर्फ औपचारिकता निभेगी, क्योंकि कोई तैराक ओलंपिक का ए क्वालिफेकशन स्तर पार नहीं कर पाया है। अनुग्रह के तौर पर साजन प्रकाश और शिवानी कटारिया को रियो जाने का मौका मिल गया है। टेबल टेनिस में ए शरत कमल, सौम्यजीत घोष, मणिका बत्रा और मौमी दास से आस बांधना ज्यादती होगी।
हॉकी में अरसे बाद पुरुष और महिला टीम ओलंपिक मैदान में होगी। महिला हॉकी के लिए एक मैच भी जीत पाना बड़ी उपलब्धि होगी। आखिरी वक्त पर खराब फार्म की वजह से कप्तान रितु रानी का पत्ता साफ होने का असर भी पड़ेगा। पुरुष टीम ने पिछले दिनों चैंपियंस ट्राफी में रजत पदक जीत कर पुराने दिनों की वापसी की आस जगाई है। किस्मत ने साथ दिया और टीम आखिरी दम तक जूझ गई तो हॉकी में छत्तीस साल का ओलंपिक पदक का सूखा खत्म हो भी सकता है।
सानिया मिर्जा महिला डबल्स में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी और चौवालीस साल के हो रहे लिएंडर पेस डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में सत्रह ग्रैंड स्लैम खिताब के विजेता। जाहिर है कि लॉन टेनिस में पदक तो बनता ही है। लेकिन बन पाएगा, इसमें संदेह है। वजह, सानिया की जोड़ी मिक्स्ड डबल्स में पेस के बजाय रोहन बोपन्ना के साथ बना दी गई है। दोनों कभी साथ नहीं खेले हैं। डबल्स में सानिया और प्रार्थना का साथ तालमेल की कमी का शिकार हो सकता है। रह गया पुरुष डबल्स का दावा तो पेस और बोपन्ना में तालमेल का ही नहीं, परस्पर विश्वास का भी अभाव है। ओलंपिक में स्थिति अनुकूल हो जाए तो सोने पे सुहागा।
चार खेलों- जूडो, जिमनास्टिक, नौकायन और भारोत्तोलन में भारतीय उपस्थिति बेहद सीमित रहेगी। 2004 के एंथेंस ओलंपिक में अकरम शाह के बाद चौबीस साल के अवतार सिंह ही जूडो स्पर्धा के लिए क्वालीफाइ कर पाए हैं। पेरिस में छह हफ्ते का प्रशिक्षण उनके कितना काम आएगा, यह देखना है। त्रिपुरा की बाईस साल की दीपा करमाकर ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाइ करते समय वाल्ट इवेंट का स्वर्ण पदक जीता। रियो में आर्किस्टिक जिमनास्टिक में दीपा को दुनिया की अठहत्तर जिमनास्टों के बीच पदक की बाजी लगानी होगी। यह आसान नहीं है, लेकिन मुश्किल भी नहीं। उन्हीं की तरह नौकायन की सिंगल स्कल स्पर्धा में नाशिक के दत्तू भोकानल सिर्फ अपनी लगन और मेहनत के बल पर उतरेंगे। ताशकंद (उजबेकिस्तान) में हुई सीनियर एशियाई चैंपियनशिप में पुरुष और महिला वर्ग के लिए एक-एक ओलंपिक कोटा मिला था। ट्रायल में चुनी गई मीरा बाई चानू ने अड़तालीस किलो वर्ग में कुल 192 किलो वजन उठा कर बारह साल पुराना राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ा। यह इस साल का दुनिया का चौथा सर्वश्रेष्ठ रिकार्ड है।
गोल्फ की 112 साल बाद ओलंपिक में वापसी हुई है। पुरुष वर्ग में अनिर्बान लाहिड़ी और एसएसपी चौरसिया और महिला वर्ग में अठारह साल की अदिति अशोक भारत की नुमाइदंगी करेंगी। कई बड़े खिलाड़ियों के रियो ओलंपिक में रुचि न दिखाने की वजह से लाहिड़ी और चौरसिया से पदक की उम्मीद बांधी जा सकती है।
रियो ओलंपिक में सबसे बड़ा दल एथलीटों का होगा। 1920 से भारत एथलेटिक्स स्पर्धा का हिस्सा रहा है, लेकिन पदक आज तक नहीं मिला। फाइनल तक कुछ एथलीट पहुंचे। मिल्खा सिंह, गुरचरण सिंह रंधावा, पीटी उषा आदि चौथा स्थान पाने में सफल रहे। रियो में ज्यादातर एथलीटों ने राष्ट्रीय रिकार्ड कायम करते हुए क्वालीफाइ किया है। क्वालीफाइंग मुकाबले के प्रदर्शन को ओलंपिक में दोहरा न पाने की पुरानी परंपरा को तोड़ कर इस बार कोई एथलीट पदक ला पाएगा, इसकी संभावना कम है पर उम्मीद बांधने में क्या हर्ज है।
(श्रीशचंद्र मिश्र)