स्वाधीनता की अवधारणा बहुत व्यापक है, खासतौर पर तब जब हम किसी देश की स्वाधीनता की बात करते हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से देखें तो यह व्यापकता जटिल भी है। भारत का यह सौभाग्य रहा कि उसे आजादी से पहले ही इस जटिलता को समझने वाला नेतृत्व मिला। कई इतिहासकारों और भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के अध्येताओं ने इस बात का तथ्यात्मक जिक्र किया है कि ब्रितानी हुकूमत को लगता था कि भारत आजाद होते ही बिखर जाएगा।

बिखराव का यह अंदेशा देश के बंटवारे से बढ़ भी गया था। पर ऐसा हुआ नहीं। आजादी के बाद देश की सांस्कृतिक बहुलता और राजनीतिक एकता दोनों साथ-साथ बहाल रही और इसका निर्विवाद श्रेय जाता है देश के पहले गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल को। उनके नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता का लोहा तब तो माना ही गया, आज भी इस बारे में बात होती है। पटेल की तुलना कुछ लोग जर्मनी के एकीकरण के सूत्रधार बिस्मार्क से करते हैं। पर विचार और आदर्श की जो ऊंचाई पटेल के व्यक्तित्व और नेतृत्व में दिखती है, वह दुर्लभ है।

भारत जब आजाद हुआ तो देश कई रियासतों में बंटा था। पटेल के आगे इन्हें एक सूत्र में पिरोने की चुनौती थी। उन्होंने यह करके दिखाया भी। अटल इरादों और लौह इच्छाशक्ति के कारण ही देश उन्हें ‘लौह पुरुष‘ के रूप में याद करता है। उनका जन्म 31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ। पिता का नाम झावेर भाई और माता का नाम लाडबा पटेल था।

माता-पिता की चौथी संतान वल्लभ भाई कुशाग्र बुद्धि के थे। उनकी दिलचस्पी पढ़ाई में ज्यादा थी। तब की परंपरा के अुसार उनकी शादी 16 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी। पत्नी का नाम था झावेरबा। वे कितने मेधावी थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1910 में वो पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए और विधि की पढ़ाई उन्होंने आधे वक्त में ही पूरी कर ली। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। इसके बाद वे स्वदेश लौटे और वकालत करने लगे।

उनके जीवन में अहम मोड़ नवंबर 1917 में आया। तब गुजरात के कई हिस्से अकाल से कराह रहे थे। पटेल की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। गांधी उनकी प्रशासकीय क्षमता से खासे प्रभावित हुए। पटेल ने एक अस्थायी अस्पताल बनवाया। बाद में उन्होंने किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किया। पहले खेड़ा में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ ‘लगानबंदी’ का आंदोलन चलाया। फिर बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इसी दौरानवे गुजरात प्रदेश कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने। 1928 में बारडोली सत्याग्रह के वक्तही वहां के किसानों ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से सम्मानित किया।

आजादी के समय देश में 562 रियासतें थीं। कुछ बहुत छोटी तो कुछ बड़ी। ज्यादातर रियासतदार भारत में विलय के लिए तैयार थे। पर कुछ ऐसे भी थे जो अपनी आजाद सत्ता चाहते थे। सरदार ने उन्हें बुलाया-समझाया। जो नहीं माने उनके खिलाफ सरदार ने सैन्य शक्तिका प्रयोग किया। आज देश की एकता मजूबत डोर से बंधी है तो इसका पूरा श्रेय सरदार पटेल के कुशल नेतृत्व को जाता है।

कहा जाता है कि एक बार उनके सामने किसी अंग्रेज ने भारत के बिखराव का अंदेशा जताया तो उन्होंने कहा- मेरा भारत बिखरने के लिए नहीं बना है। सरदार एक तरफ जहां महात्मा गांधी के प्रिय और विश्वस्त थे, तो देशवासियों के बीच उन्हें बड़ी स्वीकृति हासिल थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ समन्वय से कार्य करते हुए उस दौर की कई बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियों का उन्होंने कारगर हल निकाला।