आधुनिक हिंदी कविता के विकास में राष्ट्रीय भावधारा के कवियों की भूमिका साहित्य से आगे स्वाधीनता संघर्ष को आगे बढ़ाने में भी अहम रही है। यह दौर एक तरफ जहां हिंदी भाषा के नए गठन और तेज के सामने आने का था, तो वहीं दूसरी तरफ इस दौरान साहित्य और राष्ट्र निर्माण की साझी और प्रभावी भूमिका देखने को मिली। उस दौर के साहित्यकारों में एक बड़ा नाम है माखनलाल चतुर्वेदी का। ‘एक भारतीय आत्मा’ के रूप में उनकी ख्याति आज भी कायम है। उनके लेखन की खास बात यह थी कि उन्होंने राष्ट्र प्रेम को भारी-भरकम शब्दावली से मुक्त करके उसे सहज वर्णन के तौर पर जन-जन तक पहुंचाया।
उनका जन्म चार अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था। उनका परिवार राधावल्लभ संप्रदाय का अनुयायी था। इसका प्रभाव उनके जीवन और व्यक्तित्व में आगे तक बना रहा। वे नैतिकता और संयम के हिमायती तो थे ही, प्रतिबद्ध रचनात्मक सोच से भी लैस थे। प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति के बाद वे घर पर ही संस्कृत का अध्ययन करने लगे। उनका विवाह पंद्रह वर्ष की अवस्था में हुआ। इसी दौरान आठ रुपए मासिक वेतन पर उन्होंने अध्यापकी शुरू की। 1913 में वे अध्यापक की नौकरी छोड़ कर पूर्ण रूप से पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्र की सेवा में लग गए। असहयोग आंदोलन में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी उन्होंने ही दी थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी पहली गिरफ्तारी देने का सौभाग्य उन्हें मिला। वे ख्यातिलब्ध कवि के साथ प्रसिद्ध पत्रकार भी थे। ब्रितानी राज के खिलाफ उनकी कविताएं किसी नारे से कम नहीं रहीं। ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ जैसे उस दौर के प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान मिला। भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं सहज ही ध्यान आकर्षित करती हैं।
राष्ट्रीयता उनके काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा। प्रारंभ में माखनलाल जी की रचनाएं भक्ति और आस्था से जुड़ी थीं पर राष्ट्रीय आंदोलन में शिरकत के बाद उनकी रचनाओं में राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना स्पष्ट तौर पर दिखने लगी। हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चर, समर्पण, मरण ज्वार, माता, बीजुरी काजल आंज रही, चिंतक की लाचारी, कला का अनुवाद, साहित्य देवता, समय के पांव, अमीर इरादे-गरीब इरादे, कृष्णार्जुन युद्ध आादि उनकी कृतियां काफी प्रसिद्ध हुईं।
स्वाधीनता के बाद जब मध्य प्रदेश नया राज्य बना तो उनका नाम पहले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तावित हुआ। सबने उन्हें इस बात की सूचना दी और बधाई भी दी कि अब आपको मुख्यमंत्री के पद का कार्यभार संभालना है। अलबत्ता इस प्रस्ताव पर माखनलाल जी की प्रतिक्रिया कुछ अलग ही थी। उन्होंने सबको लगभग डांटते हुए कहा कि मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते ‘देवगुरु’ के आसन पर बैठा हूं।
मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे ‘देवराज’ के पद पर बैठाना चाहते हो, जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है। उनकी असहमति के बाद रविशंकर शुक्ल नवगठित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। ‘पुष्प की अभिलाषा’ जैसी प्रसिद्ध कविता के रचयिता माखनलाल जी न सिर्फ शब्दों से बल्कि अक्षर जीवन मूल्यों से समकालीनों के साथ बाद के दौर के साहित्यकारों के भी पूज्य आदर्श रहे हैं। उनकी अक्षर स्मृति आज भी राष्ट्र निर्माण और साहित्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा देती है।