गोपीनाथ बोरदोलोई न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, बल्कि आजादी के बाद उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर असम को चीन और पाकिस्तान से बचा कर भारत का हिस्सा बनाया। उन्हें आधुनिक असम का निर्माता भी कहा जाता है। गोपीनाथ बोरदोलोई का जन्म असम के नौगांव जिले के रोहा नामक स्थान पर हुआ था।

उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश से जाकर असम में बस गए थे। सन 1907 में उन्होंने मैट्रिक और 1909 में इंटरमीडिएट की परीक्षा की और फिर उच्च शिक्षा के लिए वे कोलकाता चले गए। वहीं से बीए और 1914 में उन्होंने एमए की परीक्षा पास की। फिर तीन वर्षों तक कानून की पढ़ाई की और गुवाहाटी आ गए।

शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने सोनाराम हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य किया। बाद में सन 1917 में वकालत शुरू कर दी। उसी दौरान स्वाधीनता आंदोलन में गांधीजी सक्रिय थे और देश की स्वतंत्रता के लिए ‘अहिंसा’ और ‘असहयोग’ जैसे हथियारों का प्रयोग करते थे। वे गांधीजी से बहुत प्रभावित हुए। जब 1922 में असम कांग्रेस की स्थापना हुई, तो गोपीनाथ बोरदोलोई भी अपनी जमी-जमाई वकालत छोड़ कर एक स्वयंसेवक के रूप में कांग्रेस की सदस्यता ली और इसी के साथ उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया।

इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए बोरदोलोई ने लोगों में देशप्रेम फैलाने के उद्देश्य से दक्षिण कामरूप और गोआलपाड़ा आदि जिले का पैदल भ्रमण किया। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया। इसके चलते अंग्रेजी हुकूमत उन्हें एक विद्रोही के रूप में देखने लगी। उन्हें गिरफ्तार कर एक वर्ष की सजा सुनाई गई।

उसी समय चौरी चौरा कांड हुआ और गांधी ने अपना ‘असहयोग आंदोलन’ वापस ले लिया। इसके बाद बोरदोलोई वापस गुवाहाटी आ गए और अपनी वकालत प्रारंभ कर दी। इसी दौरान सन 1932 में वे गुवाहाटी नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष बने और फिर राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखते हुए वे सामाजिक कार्यों में संलग्न हो गए। उसी दौरान उन्होंने असम के विकास के लिए हाई कोर्ट और विश्वविद्यालय की भी मांग उठाई।

सन 1946 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत हुई और उसने सरकार बनाई, तो गोपीनाथ बोरदोलोई असम के मुख्यमंत्री (प्रधानमंत्री) बने। उसके बाद से वे पूरी तरह असम की जनता के लिए समर्पित हो गए। भारत की आजादी के मसले को लेकर ब्रिटिश सरकार ने सन 1946 में कैबिनेट कमीशन की स्थापना की, जिसमें भारत के विभिन्न भागों को अलग-अलग बांट कर ‘ग्रुपिंग सिस्टम’ के तहत राज्यों को तीन भागों में रखा गया। इस चाल को कांग्रेसी नेता समझ नहीं पाए और इस योजना को अपनी स्वीकृति दे दी डाली, लेकिन गोपीनाथ बोरदोलोई ने उसका विरोध किया। उनकी दूरदर्शिता के चलते असम अंग्रेजों के षड्यंत्र का शिकार होने से बच गया और भारत का अभिन्न अंग बना रहा।

उन्हें लोग शेर-ए-असम ‘लोकप्रिय’ नाम से सम्मान देते हैं। साठ वर्ष की आयु में उनका निधन गुवाहाटी में हो गया। भारत सरकार ने 1999 में मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। गोपीनाथ बोरदोलोई राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे। उन्होंने जेल में बंद रहने के दौरान कई पुस्तकें लिखीं। अनासक्तियोग, श्रीरामचंद्र, हजरत मोहम्मद, बुद्धदेब उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं।

उनके अथक प्रयासों के कारण ही असम में कई महत्त्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना हो पाई। उनमें गुवाहाटी विश्वविद्यालय, असम उच्च न्यायालय, असम मेडिकल कालेज, असम वेटनरी कालेज प्रमुख हैं।