भारत रत्न महान वैज्ञानिक प्रोफेसर चंद्रशेखर वेंकट रमण (सीवी रमण) ने 1928 में कोलकाता में 28 फरवरी के दिन एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज की थी, जो ‘रमण प्रभाव’ के रूप में प्रसिद्ध है। इसी खोज की याद में भारत में 1986 से हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। सीवी रमण की यह खोज 28 फरवरी 1930 को प्रकाश में आई और इसी साल उन्हें इस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया।
सीवी रमण का जन्म 7 नवंबर, 1888 को दक्षिणी भारत के तिरुचिरापल्ली में हुआ था और उनका निधन 21 नवंबर 1970 को बैंगलोर में हुआ था। सीवी रमण के पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर और माता का नाम पार्वती अम्मल था। सीवी रमण ने तिरुचिरापल्ली से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की और कक्षा 10वीं में टाप किया। उनके पिता गणित और भौतिकी के व्याख्याता थे, इसलिए वे शुरू से ही अकादमिक माहौल से जुड़े रहे। उन्होंने 1902 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवेश लिया और 1904 में स्नातक किया। परीक्षा, भौतिकी में प्रथम स्थान और स्वर्ण पदक जीतना। 1907 में उन्होंने सर्वोच्च विशिष्टता प्राप्त करते हुए स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।
विद्यार्थी जीवन में उन्होंने प्रकाशिकी और ध्वनिकी में शुरुआती शोध किए और बाद में इन्हीं दोनों क्षेत्रों में सीवी रमण ने अपना पूरा करिअर समर्पित किया। उस समय वैज्ञानिक करिअर में अच्छी संभावनाएं नहीं थीं, इसलिए रमण 1907 में भारतीय वित्त विभाग में शामिल हो गए और इस दौरान उनका अधिकांश समय कार्यालय के कार्यों में ही लग जाता था। इसी दौरान रमण को कलकत्ता में ‘इंडियन एसोसिएशन फार द कल्टीवेशन आफ साइंस’ की प्रयोगशाला में प्रयोगात्मक अनुसंधान करने के अवसर मिले (जिसमें वे 1919 में मानद सचिव बने)।
1917 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के नव स्थापित पालिट चेयर की पेशकश की गई और उन्होंने इसे स्वीकार करने का फैसला किया। कलकत्ता में 15 वर्षों के बाद वे बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान (1933-1948) में प्रोफेसर बन गए। 1948 में उन्होंने बैंगलोर में ‘रमन इंस्टीट्यूट आफ रिसर्च’ की स्थापना की और उसके निदेशक बने। उन्होंने 1926 में ‘इंडियन जर्नल आफ फिजिक्स’ की भी स्थापना की, जिसके वे संपादक रहे।
रमण ने भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना को प्रायोजित किया और इसकी स्थापना के बाद से इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने उस अकादमी का कार्य भी शुरू किया, जिसमें उनका अधिकांश काम प्रकाशित हुआ है और करंट साइंस एसोसिएशन, बैंगलोर के अध्यक्ष थे, जो करंट साइंस (भारत) प्रकाशित करता है।
रमण के कुछ प्रारंभिक संस्मरण विज्ञान की खेती के लिए इंडियन एसोसिएशन के बुलेटिन के रूप में प्रकाशित हुए। उन्होंने हैंडबच डेर फिजिक, 1928 के आठवें खंड में संगीत वाद्ययंत्रों के सिद्धांत पर एक लेख का योगदान दिया। 1922 में उन्होंने ‘प्रकाश के आणविक विवर्तन’ पर अपना काम प्रकाशित किया, जो उनके सहयोगियों के साथ जांच की शृंखला में पहला था, जो अंतत: आगे बढ़ा।
रमण द्वारा की गई अन्य खोजों में अल्ट्रासोनिक और हाईपरसोनिक आवृत्तियों की ध्वनिक तरंगों द्वारा प्रकाश के विवर्तन पर उनके प्रयोगात्मक और सैद्धांतिक अध्ययन (1934-1942 में प्रकाशित) और क्रिस्टल में अवरक्त कंपन पर एक्स-रे द्वारा उत्पन्न प्रभाव शामिल हैं। रमण को बड़ी संख्या में मानद डाक्टरेट और वैज्ञानिक समितियों की सदस्यता से सम्मानित किया गया है। अपने करिअर की शुरुआत (1924) में उन्हें आयल सोसाइटी का फेलो चुना गया और 1929 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई।
रमण पहले एशियाई एवं अश्वेत थे जिन्हें विज्ञान क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया। इस पुरस्कार के कारण भारतीय विज्ञान विश्व की निगाहों में आया और प्रशंसा का पात्र बना। नोबेल पुरस्कार से इतर उन्हें लेनिन पुरस्कार जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया। साथ ही देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया। उनका जीवन और प्रयोगशालाओं में किया गया परिश्रम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल है कि किस प्रकार कम संसाधन में भी प्रतिभाएं स्वयं को तराश कर निखार सकती हैं।