घोड़ा एक ऐसा प्राणी है जो पृथ्वी पर मानव से लगभग बीस लाख वर्ष पहले आया था और पूरे मानव इतिहास को इस पशु ने कई मोड़ दिए हैं। घोड़ों का उपयोग युद्ध और शांति दोनों ही कालों में नियमित और निरंतर होता रहा है। प्राचीन साहित्य से लगाकर आधुनिक साहित्य, कला, संस्कृति, स्थापत्य सभी में घोड़ों ने अपना अहम योगदान दिया है। पौराणिक काल में उच्चैश्रवा घोड़ा, श्वेत घोड़ा, श्याम घोड़ा, काफी प्रसिद्ध रहे हैं । रथों में घोडेÞ जोते जाते थे। घोड़ों को पौरुष और स्वामिभक्ति का प्रतीक माना गया है। घोड़ों की आधुनिक जाति अपने पूर्व ऐतिहासिक घोड़ों की संतति है। पहला अश्वीय पूर्वज योहिप्पस लगभग छह करोड़ वर्ष पूर्व उत्तरी अमेरिका में पाया जाता था। समय के साथ-साथ पर्यावरण और प्रकृति के नियमों की अनुपालना में घोड़ों के शरीर में लंबी टांगें, छोटे टखने और उठे हुए सिर का विकास हुआ। दौड़ने की सामर्थ्य का विकास भी घोड़ों में काफी ज्यादा हुआ।

भारत में पाए जाने वाले घोड़े भूमध्यवर्ती क्षेत्रों से आए हुए हैं। ये घोड़े पतली चमड़ी के कम भारी चलने में तेज और अधिक बुद्धि वाले होते हैं। विश्व में घोड़ों की साठ पालतू नस्लें पाई जातीं है। अरबी घोड़ा श्रेष्ठ माना जाता है। यांत्रिकता के कारण घोड़ों के उपयोग में कमी आई है । मगर घुड़सवारी, घुड़दौड़ और पोलो जैसे खेलकूदों में घोड़ों का महत्त्व कभी खत्म नहीं हो सकता है। भारत में घोड़ों की संख्या 1970 में 12 लाख थी। हमारे देश में पाए जाने वाले घोड़ों में काठियावाड़ी, मारवाड़ी, मणिपुरी, चुम्मारती, भूदिया, अरबी आदि नस्लें प्रसिद्ध हैं।

प्रतिदिन सुबह शाम घोड़े की सवारी से घोड़ा तरोताजा और तंदुरुस्ती रहता है। एक दिन में घोड़ा पचास लीटर पानी पीता है। भारत में घोड़ों के प्रजनन के कार्य को 1795 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने विधिवत शुरू किया। राजाओं की निजी अश्वशालाएं होती थीं। देश में चालीस हार्स-फार्म हैं जो पूना, मुंबई, भोपाल, दिल्ली आदि स्थानों पर हैं। भोपाल का अश्व प्रजनन केंद्र प्रसिद्ध है।

घोड़ों में प्रजनन वर्ष की विशेष ऋतु तक ही सीमित रहता है। घोड़ों में कई प्रकार के रोग भी हो जाते हैं। घोड़े घुड़दौड़, पोलो, सेना, युद्ध, तांगा, घोड़ागाड़ी आदि में जोते जाते हैं। घोड़ों से प्राचीन काल में युद्ध लड़े और जीते जाते थे । ऋषि मुनि, राजा महाराजाओं से घोड़े उपहार में लेते थे। घोड़े दहेज में लिए जाते थे। घोड़ों को हमेशा से पौरुष और शक्ति का प्रतीक माना गया है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें घोड़ों की वीरता, स्वामिभक्ति और साहस के किस्से बयान किए गए। महारणा प्रताप का घोड़ा चेतक एक बहुत लंबी छलांग लगाकर अपने स्वामी को बचाकर शहीद हो गया था। हल्दी घाटी में आज भी चेतक की समाधि बनी हुई है। घोड़ों को मूर्ति के रूप में भी प्रतिष्ठित किया गया है। भारतीय भित्ति चित्रों में घोड़ों को स्थान दिया गया है। मानव ने अपने प्रादुर्भाव के समय ही घोड़े का महत्त्व पहचान लिया था और उसे बहुत जल्दी पालतू बना लिया । घोड़ा चालीस साल तक जी सकता है।