राजकुमारी अमृत कौर स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं। वे स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, गांधीवादी और सफल राजनेता होने के साथ-साथ भारतीय संविधान सभा की सदस्य भी थीं। ’उनका जन्म पंजाब के कपूरथला में हुआ था। वे लखनऊ में बड़ी हुर्इं, जहां उनके पिता राजपरिवार की अवध वाली जमीन की देखरेख करते थे। उनकी स्कूली पढ़ाई इंग्लैंड के शेरबॉर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से शुरू हुई। आॅक्सफर्ड विश्वविद्यालय से एमए किया और पढ़ाई पूरी होते ही भारत लौट आर्इं।
स्वतंत्रता सेनानी
अमृत कौर के पिता के गोपाल कृष्ण गोखले से मैत्रीपूर्ण संबंध थे। गोखले से प्रभावित होकर अमृत ने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने का फैसला किया। 1919 में महात्मा गांधी से मुलाकात के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। हालांकि बापू के संपर्क में आने से पहले ही उन्होंने सामाजिक बुराइयों- पर्दा प्रथा, बाल विवाह और देवदासी प्रथा के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू कर दी थी।
1927 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (एआईडब्ल्यूसी) की स्थापना हुई। अमृत इसकी सह-संस्थापक थीं। दो साल बाद उन्होंने महात्मा गांधी के साथ ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में भाग लिया। गांधीजी के नेतृत्व में 1930 में ‘दांडी मार्च’ में यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। लगभग उसी समय (1930) उन्हें गांधीजी का सचिव बनने के लिए कहा गया। इस पद पर वे करीब सोलह साल तक रहीं। 1934 से वे गांधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं और भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ कर देशहित के कार्यों में लग गर्इं।
’ अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गर्इं। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया।
आजादी के बाद
1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में कुल चौबीस महिलाएं चुनाव जीत कर आई थीं, उनमें राजकुमारी अमृत कौर भी थीं। वे हिमाचल प्रदेश के मंडी-महासू लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीती थीं। उन्हें जवाहरलाल नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बनाया। वे 1947 से 1957 तक इस पद पर रहीं। 1957 से 1964 तक वे राज्यसभा की सदस्य भी रहीं।
खेल से प्रेम
वे बचपन से ही खेल-कूद में आगे रहती थीं। उन्हें टेनिस खेलना पसंद था। स्कूल में वे हॉकी, लैक्रोस और क्रिकेट टीम की कप्तान भी बनी थीं। ब्रिटेन में वे अपने स्कूल की हेड गर्ल थीं। उन्होंने देश में ‘नेशनल स्पोर्ट्स क्लब आॅफ इंडिया’ की स्थापना की।
उपलब्धियां
ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें ‘सलाहकार बोर्ड आॅफ एजुकेशन’ के सदस्य के रूप में नियुक्त किया, लेकिन उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था। नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका थी। वे एम्स की पहली अध्यक्ष भी बनाई गर्इं। वे टीबी एसोसिएशन आॅफ इंडिया और हिंद कुष्ठ निवारण संघ की अध्यक्ष पद पर रहने के साथ 1950 से 1964 तक अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी की उपाध्यक्ष भी रहीं। वह सेंंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड की मुख्य आयुक्त थीं। 1950 में उन्हें ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का अध्यक्ष भी बनाया गया। यह सम्मान पाने वाली वे पहली एशियाई महिला थीं। 1952 में बाल कल्याण के लिए इंडियन काउंसिल आॅफ चाइल्ड वेलफेयर की स्थापना की। दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं।
निधन : 6 फरवरी, 1964 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।