कविता मुकेश

वैभव रोज सुबह देर से उठता। हालांकि अब वह पांचवी कक्षा में आ गया था, पर देर से जागने की उसकी आदत सुधरी नहीं थी। हर रोज कभी पापा तो कभी मम्मी बारी-बारी से उसके कमरे में उसे उठाने आते, पर वह ‘बस पांच मिनट’, ‘अभी उठता हूं’, ‘थोड़ी देर रुक जाओ’ बोल कर फिर से सो जाता। वह दोनों भी उसे जगाते-जगाते परेशान हो जाते। मम्मी-पापा को भी अपने-अपने आॅफिस जाने की तैयारी करनी होती। मम्मी को सुबह ढेरों काम होते। सबके लिए नाश्ता, फिर दोपहर का टिफिन भी तैयार करना होता। पापा भी घर के कामकाज में मम्मी की सहायता करते। वैभव देर से जागने की वजह से न तो सही तरीके से नाश्ता कर पाता और न ही ढंग से तैयार हो पाता। बहुत बार तो उसे भागते-दौड़ते हुए स्कूल-बस पकड़नी पड़ती और कई बार उसकी बस छूट भी जाती। इस वजह से उसे मम्मी की डांट खानी पड़ती और पापा उसे पैदल ही स्कूल जाने की सजा सुनाते। स्कूल देरी से पहुंचने पर उसे मैडम की नाराजगी भी झेलनी पड़ती। पूरे दिन स्कूल में उसका मन नहीं लगता। पर ऐसा कब तक चलता! बार-बार वह मन ही मन प्रतिज्ञा करता कि कल सुबह जरूर समय से उठ जाऊंगा, गरम-गरम नाश्ता करूंगा और अच्छी तरह तैयार होकर स्कूल जाऊंगा। पर नतीजा वही, ‘ढाक के तीन पात।’ एक दिन जब मम्मी स्कूल से घर आर्इं तो कुछ परेशान थीं। उन्होंने बताया कि उन्हें पंद्रह दिन के लिए शिमला जाना होगा। वे बहुत चिंतित थीं, पर जाना भी जरूरी था। ‘कैसे होगा’ वे सोच-सोच कर परेशान हो रही थीं। ‘वैभव की परीक्षाएं सिर पर हैं, वैसे भी वह कितना लापरवाह है। उसे सुबह जगाना ही एक बहुत बड़ा काम है, फिर स्कूल भेजना, होमवर्क और परीक्षाओं की तैयारी कराना, दूध, खाना-पीना… न जाने कितने काम हैं।’ ‘आप इन सब बातों की चिंता छोड़ो। जब जाना जरूरी है तो है। बस, अपनी तैयारी करो।’ पापा ने कहा। ‘हम दोनों मिल कर सब संभाल लेंगे। वैभव, मैं ठीक कह रहा हूं या नहीं?’ पापा ने वैभव की ओर देखते हुए उसकी सहमति लेनी चाही। ‘हां मम्मी, आप जाओ, मैं पापा को बिलकुल तंग नहीं करूंगा।’ वैभव ने मम्मी को आश्वास्त किया। जाते वक्त मम्मी ने एक बार फिर से वैभव को समझाया। वैभव ने हां में सिर हिला कर अपनी सहमति दे तो दी, पर मन ही मन डर रहा था कि अगर सुबह जल्दी नहीं उठ पाया तो पापा की सहायता करना तो दूर, उन्हें मेरी वजह से परेशानी हो जाएगी।

अगली सुबह वही हुआ, जिसका डर था। वैभव को जब पापा ने सुबह जगाया तो रोज की तरह, ‘अभी उठता हूं’ कहते-कहते उसने फिर से देर कर दी और भागता-भागता स्कूल पहुंचा।
उस दिन शाम को खेल कर घर में दाखिल हो रहा था तो उसने पापा को मम्मी से फोन पर बातें करते सुना, ‘मुक्ता, तुम बिल्कुल चिंता मत करो, आज वैभव ठीक समय से उठ गया था, ढंग से नाश्ता किया और तरीके से तैयार होकर स्कूल भी चला गया।’ यह सुन कर वैभव बहुत शर्मिंदा हुआ कि पापा को उसकी वजह से झूठ बोलना पड़ रहा है। एक बार फिर से मन ही मन अगले दिन जल्दी उठने का प्रण लेते और पापा की नजरों से बचते हुए वह चुपचाप दूसरे दरवाजे से घर के अंदर चला गया।
अगले दिन जब पापा उसे सुबह उठाने आए तो वह फटाफट आंखें मलते हुए उठ कर बैठ गया, पर जैसे ही वे कमरे से बाहर गए, उसने यह कहते हुए कि ‘सुस्ती आ रही है, कुछ देर और सो जाता हूं’ फिर सो गया। आधे घंटे बाद जब उसकी नींद खुली तो स्कूल को देर हो चुकी थी।
दिन भर स्कूल में वैभव सोचता रहा ‘क्या करूं, कैसे करूं कि मुझे सुबह ज्यादा नींद न आए और समय से उठ जाऊं।’ तभी उसे एक विचार आया और उसने मन ही मन सोचा कि इसे भी आजमा कर देख लिया जाए। रात का खाना खाने के बाद जब वैभव अपने कमरे में सोने के लिए जाने लगा तो पापा से बोला, ‘प्लीज पापा, मुझे रात भर के लिए अपना मोबाइल दे दो। आज मैं मोबाइल में अलार्म लगा कर सोऊंगा ताकि सुबह जल्दी उठ जाऊं।’
‘जब तुम मेरे उठाने से नहीं उठते तो मोबाइल के अलार्म से कैसे उठ जाओगे?’ पापा को संदेह था। पर उन्होंने उसे मोबाइल दे दिया।

वैभव ने उस रात मोबाइल में कई अलार्म सेट किए। पहला पांच बज कर तीस मिनट का, दूसरा पांच बज कर चालीस मिनट का, तीसरा छह बजे का, चौथा छह बज कर दस मिनट का और अंतिम और पांचवां अलार्म लगाया छह बज कर बीस मिनट का। सुबह अलार्म बजने शुरू हुए। जब पहला अलार्म बजा तो वैभव कोई अच्छा-सा सपना देख रहा था। उसे लगा अलार्म उसके मीठे सपने में खलल डाल रहा है, तो उसने झट से उसे बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद जब दूसरा अलार्म बजा तो उसने सोचा कि अभी तो आकाश में तारे हैं और दिन निकलने में देरी है, अभी थोड़ी देर और सो सकता हूं और फिर सो गया। जब तीसरा अलार्म बजा तो उसने कस कर चादर तान ली। जब चौथा अलार्म कोयल की कूक वाला बजा तो वैभव झट से उठ कर बैठ गया कि अब तो पक्षी भी जाग गए हैं, मुझे उठ जाना चाहिए। फिर जब पांचवां अलार्म बजा तो वैभव भाग कर नहाने के लिए ‘बाथरूम’ चला गया और स्कूल के लिए तैयार होने लगा।

ठीक साढ़े छह बजे तैयार होकर वह रसोई में पहुंच गया। पापा उसके लिए नाश्ता बना रहे थे। उन्होंने खुश होकर उसे शाबाशी दी। वैभव ने मुस्कारते हुए उन्हें पांचों अलार्म के बारे में बताया और उनका मोबाइल उनको लौटाते हुए कहा, ‘पापा, आज तो आपको मम्मी से झूठ नहीं बोलना पड़ेगा न।’
‘शैतान, मम्मी-पापा की बातें छिप-छिप कर सुनते हो।’ पापा ने बनावटी गुस्सा करते हुए उसके गाल पर हल्की-सी चपत लगाई और फिर उसे टिफिन-बॉक्स थमाते हुए बोले ‘माय स्मार्ट सन अब रोज रात को सोते वक्त मुझसे स्मार्ट फोन ले लेना।’ आज स्कूल जाते हुए वैभव की भी प्रसन्नता का ठिकाना न था। अब वह आलसी और सुस्त नहीं रह गया था।