मनीष कुमार जोशी
विराट कोहली यों तो क्रिकेटर हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से मीडिया और विज्ञापन की दुनिया ने उन्हें टीवी पर बेचने वाल बालीवुड स्टर की तरह पेश किया है। यही वजह है कि कई बार उनके क्रिकेट से ज्यादा उनकी लव-स्टोरी को चैनलों पर दिखाया जाता है। मीडिया, खासकर, कारपोरेट मीडिया ने जानबूझकर विराट कोहली का ऐसा व्यक्तित्व गढ़ा है, ताकि समय-समय पर उसे भुनाया जा सके। चैनल बताते रहते हैं कि विराट कोहली में फैन फॉलाइंग है, गुस्सा है, विवाद है और लव स्टोरी है यानी एक पूरा बालीवुडिया पैकेज है। कुछ खिलाड़ी पूरा करिअॅर खत्म होने के बाद भी कप्तान बनने का सौभाग्य नहीं प्राप्त कर पाते है जबकि विराट ने 2011 में टैस्ट क्रिकेट में में प्रवेश किया और 2014 में कप्तान बन गए।
विराट के क्रिकेटर बनने की कहानी बार-बार भावुक तरीके से दोहराई जाती है कि कैसे बचपन में उनके पिता ने क्रिकेटर बनने के लिए प्रेरित किया। लेकिन वे अपने बेटे को क्रिकेट की ऊंचाइयों पर देखने से पहले ही चल बसे। उस समय विराट की उम्र मात्र सत्रह साल की थी और उस समय वे दिल्ली की ओर से रणजी ट्रॉफी खेल रहे थे। यह उनके जीवन की सबसे ट्रैजिक कहानी है। वे रणजी ट्राफी में कुछ खास नहीं कर रहे थे। उनकी आत्मकथा में लिखा है कि कर्नाटक के विरुद्ध रणजी मैच में दिल्ली को कर्नाटक की बहुत बड़ी लीड का पीछा करना था। मैच के दौरान एक रात को विराट के पिता के निधन की दुखद खबर आई। ड्रेसिंग रूम में वे ख्ूाब रोए। उन्होंने अपने कोच को फोन किया कि क्या करना है? उनके कोच को भी समझ नहीं आया वह अपने शिष्य को क्या जवाब दे। कोच ने एक बार तो फोन काट दिया लेकिन थोड़ी देर बाद वापस फोन किया और कहा कि उन्हें ग्राउंड में जाना चाहिए। सुबह वे ग्राउंड में बैटिंग के लिए गए। कोहली ने शतक लगाया और फिर अपने पिता के अंतिम संस्कार में पहुंचे। उनका परिवार उस समय कठिन दौर से गुजर रहा था। लेकिन क्रिकेट और पिता के प्रति उनके सर्मपण से उनका कठिन दौर भी निकल गया। पैवेलियन में निश्चिंत दिखना भी विराट के व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। कुछ लोग उन्हें घमंडी भी कहते है। लेकिन विराट का कहना है कि वे अपनी सीनियरों का सम्मान करते हैं और सचिन तेंदुलकर के तो पांव छूने पहुंच गए थे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। विराट आज भी सचिन को अपना गुरु मानते है।
विराट जिस तेजी से आगे बढ़े, विवाद भी उनके पीछे चलते गए। शुरुआती दौरे में सिडनी के एमएसजी मैदान में अपनी अंगुली से दर्शंको भद्दे इशारे करने की वजह से उन पर पचास हजार रुपए का जुर्माना भी लगा। 2013 में आइपीएल में गौतम गंभीर के साथ विवाद हुआ। 2013 में ही आइपीएल में ही चेन्नई की टीम के दर्शकों को गाली देने का आरोप भी लगा। इस बीच भारतीय टीम के निदेशक का पद रवि शास्त्री के पास आ गया। रवि शास्त्री को विराट का खेल और व्यक्तित्व पसंद आया। विराट को रवि के साथ ही अक्सर देखा जाता था। धीरे-धीरे धोनी दूर होते गए और आखिरकार उन्होंने संन्यास ले लिया। धोनी के संन्यास लेते ही विराट को भारतीय टीम की कप्तानी मिल गई। किसी खिलाड़ी को इतनी कम उम्र में टीम की बागडोर मिलना बहुत बड़ी बात होती है। विराट ने रवि शास्त्री के साथ कप्तानी के गुर सीखे और आज वे पारंगत कप्तान हैं। उन्होंने अपने हिसाब से एक साल में टीम को दुरस्त भी किया है। वे अपनी पसंद के अनुसार टीम को चलाते हैं। उन्होंने कोच और बोर्ड के बीच संवाद का तारतम्य रखना भी सीख लिया है। इसलिए मैदान में तनावमुक्त नजर आते हैं।
लेकिन, मीडिया को कई बार विराट के क्रिकेट से ज्यादा उनकी लव-स्टोरी को खींचने में ज्यादा उत्सुकता दिखाई पड़ती है। जब विराट की बात हो तो अनुष्का शर्मा का नाम अपने आ जाता है। काफी लंबे समय तक अनुष्का शर्मा का नाम उनके साथ आता रहा । विराट के खराब प्रदर्शन और अच्छे प्रदर्शन पर सोशल मीडिया में कई तरह की टिप्पणियां भी हुर्इं। विराट को स्वयं आगे आकर कहना पड़ा कि किसी महिला पर टिप्पणी करने से पहले सौ बार सोचें। विराट-अनुष्का विवाद ने विराट का क्रिकेट के बाहर बहुत नुकसान किया। लेकिन विराट के बारे में कहा जाता है कि वे वाकई विराट हैं। अंत में सब कुछ संभाल लेते हैं।
विराट के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं। उन्होंने 2008 में अंडर-19 विश्वकप भारत के लिए जीता। उसके बाद भारत की ओर से वन-डे क्रिकेट में खेलने का मौका मिला। उस समय भारतीय टीम वीरेंद्र सहवाग, युवराज, लक्ष्मण और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी थी। उनकी छाया में टीम में स्थान बनाना कोई आसान काम नहीं था। जब स्थान बना लिया था तो सचिन की चमक के पीछे उनकी चमक कम दिखाई दे रही थी। कुछ लोग उन्हें भारत का दूसरा सचिन कहने लगे थे। लेकिन विराट कोहली को तो विराट कोहली रहना था। उनकी एक के बाद एक शानदार पारियों ने एक अलग पहचान बनाई। भारत के लक्ष्य का पीछा करते हुए दस बड़ी जीतो में पांच में उनकी पारियों का योगदान था।
उनके मैदान में उतरने के बाद जीत मुश्किल नहीं रह जाती थी। उन्होंने भारतीय क्रिकेट इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने अपनी कप्तानी में ही अपनी पहली तीन पारियों में लगातार शतक लगाकर एक कीर्तिमान बनाया। उन्होंने अपनी टीम की सोच बदली है। उनकी सोच आक्रमक है और यह उनकी रणनीति में दिखाई देती है। उनके लिए जीत अहम है। उन्होंने ही क्लीन स्वीप की सोच पर काम करना शुरू किया । दो मैच जीतने के बाद तीसरे मैच में भारतीय टीम सुस्त हो जाते थे, लेकिन विराट का विजयी अभियान अंतिम मैच तक जारी रहता है। उनकी टीम का साथियों के साथ सामंजस्य देखते ही बनता है।वे अपनी टीम के प्रत्येक खिलाड़ी को उसकी योग्यता के हिसाब से पूरा मौका देते हंै। विराट कोहली ने न्यूजीलैंड के विरूद्ध शानदार कप्तानी और बल्लेबाजी से एक बार फिर अपनी और झांकने का अवसर दिया। प्रधानमंत्री ने उनकी सफाई के प्रति कार्य को देखकर ट्वीट कर धन्यवाद किया। खेल के अलावा भी वे अपने कामों से देश का दिल जीत रहे हैं। ०