सर्दी चूंकि मैदानी इलाकों में एक तरह से फूलों का भी मौसम होता है, बहुत सारे लोग इस मौसम में क्यारियों या गमलों में फूल वाले पौधे रोपते हैं। मगर सर्दी जितना फूलदार पौधों के लिए अनुकूल है, उतना ही मुश्किल भरा भी। इस मौसम में पौधों की सिंचाई, निराई-गुड़ाई, खाद डालने वगैरह को लेकर ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है। खासकर उन दिनों में ज्यादा सतर्क रहने की दरकार होती है, जब शीतलहर चल रही हो या दिन भर कोहरा छाया रहता हो, सूरज कम निकलता हो। कई लोग नर्सरी से फूल वाले पौधे गमले सहित खरीद लाते हैं और बालकनी वगैरह में रख कर समझ लेते हैं कि इनमें सिर्फ पानी डालते रहो, वे फूल देते रहेंगे। मगर ऐसा नहीं है। सर्दी में सिंचाई को लेकर खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है। सर्दी में खासकर गमलों की सिंचाई करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पानी अधिक न पड़ने पाए। पानी उतना ही डालें, जिससे कि मिट्टी की नमी बनी रहे और उसका भुरभुरापन बरकरार रहे। अधिक पानी डालने से पौधों की जड़ों में अधिक पानी जमा हो जाता है और कई बार अधिक सर्दी पड़ने की वजह से जड़ें गलनी शुरू हो जाती हैं। इसलिए पानी थोड़ा-थोड़ा डालें।
’गमलों की सिंचाई सर्दी के मौसम में हमेशा सुबह करनी चाहिए, ताकि धूप से पानी का वाष्पीकरण हो सके और पौधे जरूरत भर का ही पानी खींच सकें। शाम को सिंचाई करने से रात के वक्त मौसम अधिक ठंडा होने के कारण उनकी जड़ों के गलने का खतरा बना रहता है। इस तरह पौधों में फूल आने बंद हो जाते हैं और पहले से लगे फूल सूखना शुरू हो जाते हैं।
’कभी भी गमलों में इतना पानी न डालें कि पानी देर तक उसमें जमा रहे। ध्यान रखें कि गमलों के पेंदे के छिद्र से अतिरिक्त पानी निकल रहा है या नहीं। ’अधिक पानी से पौधों की जड़ें गमले में अधिक फैलती हैं और इस तरह गमला जल्दी भर जाता है और पौधों का विकास रुक जाता है। इसलिए सर्दी में हफ्ते में अधिकतम दो से तीन बार पानी देना उचित रहता है। एक या दो दिन का अंतर रख कर भी पानी दें तो पौधों की सेहत ठीक बनी रह सकती है। ’ सर्दी में ओस पड़ने की वजह से या फिर वातावरण में नमी होने के कारण अक्सर पौधों के पत्तों पर वातावरण में तैरते धूल और धुएं के कण चिपक जाते हैं। इस तरह उन पर काली परत जमने लगती है। इससे पौधों को सूरज की रोशनी से अपना भोजन बनाने में कठिनाई होती है। इसलिए पौधों की सिंचाई करते वक्त पानी उनके पत्तों पर डालें। इससे उन पर जमा गर्द हट जाएगी और उन्हें अपना भोजन बनाने में आसानी होगी।
सर्दी में हर हफ्ते गमलों की निराई-गुड़ाई होनी चाहिए। पौधों के आसपास उग आई घास या खरपतवार उसकी बढ़वार में बाधा डालते हैं, इसलिए उन्हें उखाड़ देना चाहिए। अगर पौधों की जड़ों से अतिरिक्त कल्ले फूट रहे हों, तो उन्हें भी काट देना चाहिए, उन्हें लेकर मोह नहीं पालना चाहिए, क्योंकि वे मूल पौधे के हिस्से का खाद-पानी खींचेंगे और उसमें आने वाले फूलों के विकास में बाधा डालेंगे। एक गमले में अधिक पौधे न लगाएं, कोशिश करें कि एक से अधिक पौधा न हो। पौधे जितने अधिक होंगे, उनका विकास भी उतना ही कम हो पाएगा।
’ पौधों की निराई-गुड़ाई इसलिए भी जरूरी होती है कि मिट्टी भुरभुरी बनी रहे, उनकी जड़ों तक हवा और धूप पहुंचती रहे। जिन गमलों की मिट्टी में भुरभुरापन कम होता है, उनमें पौधे ठीक से विकसित नहीं हो पाते। पौधों की जड़ों तक धूप और हवा का प्रभाव नहीं पहुंच पाता। ’ पौधों की जड़ों तक धूप पहुंचनी चाहिए, इसलिए अगर पौधों की जड़ों से अतिरिक्त कल्ले निकल रहे हैं या उनकी डंठल से टहनियां फूट रही हैं तो उन्हें काट दें। ’जिस दिन पौधों की निराई-गुड़ाई करें, उस दिन उनमें पानी न डालें। निराई-गुड़ाई के कम से कम चौबीस घंटे बाद ही पानी डालें। गमलों के फूलदार पौधों में हमेशा कंपोस्ट का इस्तेमाल करें। उन्हें रासायनिक खाद की जरूरत नहीं होती। इसलिए यूरिया वगैरह की जरूरत नहीं पड़ती। कई लोग अपने पौधों की देखभाल मालियों पर छोड़ देते हैं। माली अक्सर रासायनिक खादों और हड्डी के चूरे वगैरह की सलाह देते रहते हैं, ताकि अतिरिक्त पैसे कमा सकें। अगर पौधों की देखभाल खुद करना सीख जाएं, तो न सिर्फ पौधों को घुमंतू मालियों की अनाप-शनाप खादों से बचा सकेंगे, बल्कि उनकी देखभाल में व्यक्तिगत सुख का अनुभव भी करेंगे। पौधों को भी आपकी देखभाल, लगाव का अहसास होता है, इसलिए उनमें विकास होगा।
’गमलों में अगर पौधा रोपते समय ही खाद की उचित मात्रा मिला दी जाए, तो बार-बार खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए जब आप गमले में पौधा लगाएं तो सबसे पहले उसके पेंदे में पत्थर के टुकड़े इस तरह रखें कि अतिरिक्त पानी आसानी से निकलता रहे। फिर मिट्टी, बालू और कंपोस्ट की बराबर-बराबर मात्रा लेकर अच्छी तरह मिला लें। चाहें तो आधी मात्रा कंपोस्ट की और आधी मात्रा मिट्टी और बालू की रख सकते हैं। इससे बाद में पौधों में खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।’सर्दी में घरों में हरी साग-सब्जियों का इस्तेमाल अधिक होता है, इसलिए सब्जियों के छिलके और पत्ते भी खूब निकलते हैं। इनसे कंपोस्ट बनाई जा सकती है। इसके लिए अतिरिक्त श्रम करने की जरूरत नहीं पड़ती। एक मटका या प्लास्टिक की पुरानी बाल्टी लें, उसमें एक-दो जगह छेद कर दें। फिर उसमें घर से निकले सब्जियों के छिलकों, पत्तों वगैरह को डालें, कुछ सूखी पत्तियां भी डालें। इन सबको आपस में मिला दें। फिर ऊपर से आधा कटोरी छाछ, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर और आधा चम्मच हल्दी पाउडर डाल कर फिर से पत्तों और छिलकों को आपसे में मिला लें और मटके या बाल्टी को ढंक कर छोड़ दें। पंद्रह दिन बाद खोल कर देखेंगे तो सारी चीजें गलनी शुरू हो गई होंगी। सर्दी में कंपोस्ट बनने की रफ्तार थोड़ी धीमी होती है, गरमी और बरसात में तेज होती है। जब वे कंपोस्ट बन कर पूरी तरह काला नजर आने लगे, तो उसे लकड़ी या किसी ऐसी ही चीज से उलटें-पलटें, ताकि उसकी गैस पूरी तरह निकल जाए। आप देखेंगे कि इस कंपोस्ट में कोई दुर्गंध नहीं होगी। उसे निकाल कर एक दिन के लिए अखबार पर फैला कर रखें। फिर उसे गमलों में डाल दें। इस तरह कंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया निरंतर जारी रख सकते हैं। यह पौधों के लिए उत्तम खाद होती है। ’अगर आप गमलों में साग-सब्जी उगाने के शौकीन हैं, तो इस खाद का उपयोग उनके लिए भी कर सकते हैं। इस तरह घर में आर्गेनिक साग-सब्जी उगा और खा सकते हैं।