मनोवैज्ञानिक ने उसकी इस हरकत का बिल्कुल बुरा नहीं माना। उसने जेब से रूमाल निकाला और अपने चेहरे को साफ कर लिया। फिर एक मंजिल पर लिफ्ट रुकी, तो उसने मुस्कराते हुए उस व्यक्ति को देखा, जिसने उसके मुंह पर थूका था और बाहर निकल गया।

मनोवैज्ञानिक के साथ एक और व्यक्ति उसी मंजिल पर उतरा। उसने हैरानी प्रकट करते हुए उससे पूछा, उस व्यक्ति ने अपको भला-बुरा कहा, आपके मुंह पर थूक दिया, पर आपने उसका प्रतिकार नहीं किया। उल्टा आप मुस्कराते हुए बाहर निकल आए।

आखिर इस तरह कैसे आपने वह सब कुछ सहन कर लिया। मनोवैज्ञानिक फिर मुस्कराया, दरअसल, उसने जो व्यवहार मेरे साथ किया, वह उसकी समस्या है। उसे अपनी समस्या से बाहर निकलने की जरूरत है, मुझे नहीं। मेरे अपने स्वभाव बदल लेने से उसकी समस्या दूर नहीं हो जाएगी।

ऐसे लोग हर किसी को जीवन में मिलते रहते हैं, जो बेवजह अपने स्वभाव से दूसरों को कुछ गलत करने को उकसाते रहते हैं। मगर जिसने अपने भीतरी जगत को, अपने अंतस को स्थिर कर लिया है, अपने स्वभाव को संतुलित कर रखा है, उस पर बाहरी व्यवहारों का प्रभाव नहीं पड़ पाता।

ऐसे लोग किसी के उकसाने से अपना स्वभाव नहीं बदल लेते। अगर कोई अपको गाली दे और आप उसके बदले मुस्करा दें, तो उसके क्रोध का शमन अपने आप हो जाता है। जरूरत पहले ही क्षण में उभरने वाली प्रतिक्रिया को विवेक से संतुलित करने की होती है। फिर समस्या पैदा ही नहीं होती।