बचपन के साथ खिलौनों का जुड़ाव सहज और स्वाभाविक है। बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी खिलौनों की खासी अहमियत है। इसलिए बच्चों को खिलौने देकर या फिर खिलौनों के साथ बच्चों को खेलता देख खुश होना ही पर्याप्त नहीं है। हमें इस बारे में काफी गंभीरता और सतर्कता दिखानी चाहिए। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि अक्सर इन्हीं खिलौनों के कारण बच्चों की जान पर भी बन आती है।

अस्पतालों के शिशु विभाग के आपात कक्ष में ऐसे कई नन्हे मरीजों का इलाज चल रहा होता है, जो खिलौनों की वजह से घायल हुए हैं। इसलिए अभिभावकों की यह अहम जिम्मेदारी बन जाती है कि वे बच्चों के लिए खिलौने खरीदते वक्त खास तौर पर सतर्क रहें। हर अभिभावक की यही सदिच्छा होती है कि वे अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ करें। लेकिन यह सदिच्छा जानकारी और सजगता के अभाव में बच्चों पर भारी पड़ जाती है।

उम्र के मुताबिक खिलौने
आम तौर पर बच्चा दुकान में जिस खिलौने पर भी हाथ रख देता है या थोड़ा बड़ा बच्चा जिसके लिए मचलने लगता है अभिभावक उसे वही दिलाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा नहीं किया तो बच्चे का दिल न टूट जाए। लेकिन इस भावुकता से बचना चाहिए। आम तौर पर खिलौनों के दुकान में पहली पूछताछ उम्र से ही होनी चाहिए। कई कंपनियां हैं, जो बच्चों की उम्र के हिसाब से खिलौने बनाती हैं और इस बात का ध्यान रखती हैं कि इनसे बच्चों के समुचित विकास में मदद मिले।

अगर आपका तीन साल का बच्चा दुकान में पांच साल के बच्चों की उम्र के खिलौने लेने की जिद करे तो उसे प्यार से समझाएं और उसे उसकी उम्र के खिलौने की तरफ आकर्षित करने की कोशिश करें। अगर आप बच्चे के लिए खिलौने की खरीदारी करने गए हैं तो सबसे पहले बच्चे की उम्र बताएं। बच्चों की उम्र बढ़ने के साथ उनकी जरूरतें भी तेजी से बदलती हैं।

गुणवत्ता बेहद जरूरी
तीन साल तक के बच्चों के लिए खिलौने खरीदते वक्त ध्यान रखें कि यह टूटने वाला न हो और खिलौने का कोई भी हिस्सा नुकीला न हो। खिलौने का कोई हिस्सा जैसे आंख, कान, जानवरों की पूंछ, गाड़ी का पहिया, बटन इत्यादि अलग होने वाले न हों। ऐसा होने पर बच्चा उसे निकाल कर चबाने या निगलने की कोशिश कर सकता है। इसके साथ ही खिलौना जिस भी पदार्थ का बना हो उसकी गुणवत्ता सही हो। छोटे बच्चे खिलौनों को मुंह में डाल कर चबाने की कोशिश करते हैं, इसलिए जरूरी है कि वह ऐसी चीज का बना हो जो रंग या कोई खतरनाक रसायन नहीं छोड़ता हो।

सबकी अपनी पसंद
इन दिनों शिशु मनोविज्ञान पर काफी शोध हो रहे हैं। हर बच्चा दूसरे से अलग होता है। अगर आपके पड़ोसी या रिश्तेदार का बच्चा कोई खिलौना बहुत पसंद करता है तो कोई जरूरी नहीं कि आपके बच्चे को भी वो बहुत पसंद आए। इसके विपरीत वो उससे डर भी सकता है। इसके साथ ही कुछ घरों में यह प्रवृत्ति देखी जाती है कि किसी खास खिलौने को बच्चे का डर बना दिया जाता है। बच्चा अगर खाना खाने या दूध पीने में आनाकानी करता है तो उसे उससे डराया जाता है। ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए। किसी भी चीज को बच्चे का डर नहीं बनाना चाहिए, यह उसके दिमाग पर बहुत बाद तक असर कर सकता है।

यह भी ध्यान रखें कि खिलौने से बच्चे की जेंडर और अन्य पहचानों का भी विकास हो। गुड़िया सिर्फ सुंदर देहकाया और गोरे रंग की ही न हो। खिलौने देते वक्त जेंडर का भेदभाव भी न करें कि लड़कों को इससे खेलना चाहिए तो लड़कियों को इससे।

खेल भी खिलौने भी
दो साल से बड़े बच्चों के लिए घर के सामान से भी खिलौने बनाए जा सकते हैं। जाहिर सी बात है कि यहां पर अभिभावकों की रचनात्मकता भी सामने आती है। पुराने कपड़ों और गत्तों से गुड़िया या अन्य तरह के खिलौने बन सकते हैं।

सब्जी, विभिन्न तरह के पत्तों से भी थोड़ी देर के लिए खिलौने बनाए जा सकते हैं। बड़े पत्तों से विभिन्न जानवरों की आकृतियां बन जाती हैं और बच्चे इसे बहुत पसंद करते हैं। विभिन्न आकार की सब्जियों और फलों का इस्तेमाल कर बहुत कुछ आकर्षक बनाया जा सकता है और बाद में बच्चों को उन चीजों को खाने के लिए भी प्रेरित किया जा सकता है।

(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें)