हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता का कहना है कि कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का सक्रिय सदस्य होते हुए भी सदन की निष्पक्ष अगुआई कर सकता है। यह संवैधानिक व्यवस्था है, जिसमें सिर्फ संविधान को सुनें। सूबे में सरकार पर नौकरशाही हावी होने के इल्जाम को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि अफसरों का रुख सरकार के साथ बदल जाता है। सरकार में संघ की दखलंदाजी के आरोप पर उन्होंने कहा कि यह संगठन सिर्फ राष्ट्रहित की बात सोचता है। नायब सिंह सैनी के चयन को सही बताते हुए उन्होंने दावा किया कि भाजपा हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाएगी। चंडीगढ़ में ज्ञान चंद गुप्ता के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।
‘हरियाणा सरकार के साथ विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर आपका कार्यकाल भी पूरा होने वाला है। सरकार की इस पारी के अंतिम मोड़ पर आप अपनी भूमिका किस तरह देखते हैं?
ज्ञान चंद गुप्ता- हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को लगभग दस वर्ष पूरे होने वाले हैं। जहां तक मेरी भूमिका की बात है तो पहले पांच साल के कार्यकाल में मुझे ‘चीफ विप’ की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसमें मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। 2019 से लेकर 2024 के पांच साल में हरियाणा प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। इसमें भी मैंने प्रयास किया कि अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकूं। मैं अपनी भूमिका से पूरी तरह संतुष्ट हूं।
‘सदन के अध्यक्ष की भूमिका की चुनौतियों से आप वाकिफ हैं। केंद्र से लेकर राज्य में स्पीकर सबसे अहम बिंदु है। अब तक के सफर में कोई ऐसा नाजुक मोड़ आया जब आपको धर्म संकट महसूस हुआ या फिर आपको परम संतोष हुआ?
ज्ञान चंद गुप्ता- मैंने ई-विधानसभा बनाने का संकल्प लिया था, जिसे कम समय के अंदर पूरा करके दिखाया। इससे कार्यक्षमता बढ़ने के साथ करोड़ों रुपए के जो कागज खर्च होते थे, उसकी बचत हुई। सारे काम आनलाइन होते हैं।
‘राजनीतिक तौर पर कोई ऐसा मोड़ आया हो जब आपने विधानसभा अध्यक्ष के रूप में चुनौती महसूस की हो?
ज्ञान चंद गुप्ता- मेरी पहली प्राथमिकता थी कि विधानसभा के अंदर मेरी जो छवि है उस पर किसी तरह का दाग न आए। मैं किसी की पक्षधरता कर रहा हूं या किसी को उपेक्षित कर रहा हूं, इस तरह का कोई आरोप न लगे, इसकी कोशिश मैंने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान की। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों मेरे लिए समान हैं। हमारी विधानसभा के अंदर पक्ष-विपक्ष सभी सदस्य इस बात को मानते भी हैं। हमारी विधानसभा के अंदर लगभग पचास फीसद नए सदस्य चुन कर आए। जो पहली बार विधायक चुन करके आता है उसके मन में अपनी छवि को लेकर सक्रियता होती है। उसकी इच्छा होती है कि वह जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए आया है, जहां के लोगों ने उसे चुन कर भेजा है, वह उन लोगों को दिखे। विधानसभा के अंदर उन्हें भी बोलने का अवसर मिले। जितने भी विधायकों ने बोलना चाहा मैंने उन्हें पूरा मौका दिया। इसके लिए अगर सत्र का विस्तार भी करना पड़ा हो तो हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि सभी पक्ष के विधायक संतुष्ट हों। विधायक आरोप लगाते थे कि सत्ता पक्ष को ज्यादा समय दिया जाता है। इसके लिए ड्रा की नई व्यवस्था लाई गई। विधायक ही पर्ची निकालते थे। इतनी पारदर्शिता के बाद हर कोई संतुष्ट रहा। मुझे लगता है कि मैं एक निष्पक्ष अध्यक्ष की छवि बनाने में कामयाब रहा हूं।
‘जब पहली बार आप ‘चीफ विप’ बने तो पूर्ण बहुमत की सरकार में थे। जब आप विधानसभा अध्यक्ष बने तो अल्पमत की सरकार थी। अल्पमत की सरकार की अगुआई करना थोड़ा ज्यादा मुश्किल रहा होगा, क्योंकि दोनों पक्षों को संतुष्ट करने की जिम्मेदारी थी?
ज्ञान चंद गुप्ता- आपकी बात सही है। आज जो स्थिति है पहले नहीं थी। पहले सरकार के पक्ष में 57 विधायक थे, दस जजपा के और 40 भाजपा के, छह निर्दलीय और एक एचएलपी के। 57 लोग सरकार का समर्थन कर रहे थे तो दुविधा की स्थिति नहीं आई थी। अब भाजपा और जजपा अलग हैं, तो कुछ लोग एक-दूसरे के खिलाफ बयान दे रहे हैं। जजपा के कुछ विधायक अपनी ही पार्टी के खिलाफ बोल रहे हैं। कांग्रेस की अहम सदस्य रहीं किरण चौधरी ने पार्टी छोड़ दी। उन लोगों की अपील मेरे पास आई है तो हम कानूनी व तकनीकी तौर पर उनका परीक्षण कर रहे हैं। उचित समय आने पर इसके ऊपर निर्णय लिया जाएगा।
‘सबकी याचिका पर निर्णय लिया जाएगा, बिल्कुल निष्पक्ष रूप से?
ज्ञान चंद गुप्ता- जी, सब निष्पक्ष होगा।
‘यह सवाल इसलिए पूछा कि मैं इसे राष्ट्रीय फलक के संदर्भ में भी ले जाना चाहूंगा। लोकसभा में भी अध्यक्ष की वही भूमिका होती है जो राज्य में विधानसभा अध्यक्ष की होती है। इस समय केंद्र की सरकार अल्पमत में है तो जाहिर सी बात है कि वहां भी लोकसभा के तब और अब वाली भूमिका पर बहस हो रही है।
ज्ञान चंद गुप्ता- केंद्र सरकार अल्पमत में नहीं है। हां, यह बात सही है कि भारतीय जनता पार्टी की सीटों की संख्या पहले जितनी नहीं रही है। लेकिन गठबंधन के साथ यह पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। इसे अल्पमत की सरकार कहना हर तरह से गलत होगा।
‘मैं यहां पर बस इतना पूछना चाह रहा हूं कि क्या आप ओम बिरला जी या जगदीप धनखड़ जी को सदन में शांति बनाए रखने, उसे चलाने का नुस्खा देंगे, क्योंकि आप वैसा सदन चुला चुके हैं जहां पूर्ण बहुमत नहीं है।
ज्ञान चंद गुप्ता- मैं समझता हूं कि अगर हम अपने काम में निष्पक्ष हैं तो किसी काम में कोई मुश्किल नहीं आती। आदरणीय बिरला जी और धनखड़ जी को भी कोई मुश्किल नहीं आएगी। मैं किसी भी तरह से केंद्र की सरकार को अल्पमत की सरकार नहीं मानता। यह चुनाव राजग गठबंधन ने लड़ा था। इस गठबंधन को चुनाव में 300 के करीब सीट आई है। बहुमत के लिए केवल 272 सीट चाहिए, इसलिए किसी भी तरह से उसे अल्पमत की सरकार कहना सही नहीं है।
‘एक अहम बात यह भी है कि आम तौर पर सदन का अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी का सदस्य भी होता है। जब वह सदन में है तब तो वह सर्वोच्च है। लेकिन, सदन के बाहर आते ही वह सर्वोच्च नहीं रह जाता है। मुख्यमंत्री उनकी अगुआई करते हैं। यह एक तरह का विरोधाभास है। अपने कार्यकाल में रोज आपको इस विरोधाभास का यानी दोहरी भूमिका का सामना करना पड़ता होगा। मैं यह जानना चाहता हूं कि लगातार पांच साल आपने इस मुश्किल विरोधाभास को कैसे झेला? क्या कभी अपनी पार्टी ने आपको बदलना नहीं चाहा या विपक्ष ने आपको लेकर कोई ऐसी मांग की? आपका प्रबंधन-मंत्र क्या रहा?
ज्ञान चंद गुप्ता- ऐसी कोई दुविधा नहीं है। सदन के अंदर विधानसभा अध्यक्ष की एक अलग भूमिका होती है। विधानसभा के बाहर उसकी अलग भूमिका होती है। विधानसभा के बाहर उसे अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं का भी समाधान करना है। जैसा कि आपने कहा कि पार्टी का सदस्य होने के नाते मुझे अपनी पार्टी की विचारधारा का भी पालन करना होता है। लेकिन, उस विचारधारा के साथ रहते हुए मैं अपने कर्त्तव्य का पालन कर सकूं, मैं हमेशा यही प्रयास करता हूं। विधानसभा के अंदर मुख्यमंत्री की भी ऐसी ही दोहरी भूमिका होती है। एक मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें सबके हित को देखते हुए काम करना होता है और अपनी राजनीतिक विचारधारा का भी पालन करना होता है। हमारे संविधान में कहीं भी यह नहीं लिखा हुआ है कि विधानसभा अध्यक्ष किसी पार्टी का सदस्य नहीं हो सकता है। यह तो वैधानिक व्यवस्था है।
‘क्या कभी कोई ऐसा मौका आया कि मुख्यमंत्री आपसे नाराज हो गए कि आपने हमारे साथ ज्यादती कर दी?
ज्ञान चंद गुप्ता- ऐसी स्थिति आई है। विधानसभा के अंदर माननीय मुख्यमंत्री से भी कहना पड़ा है कि कृपया आप बैठ जाएं। यह संवैधानिक कर्त्तव्य है जिसे निभाना पड़ता है। कई बार मंत्रियों को टोका कि आप ठीक से तैयारी करके आया कीजिए। कई बार लगता है कि मंत्री सही उत्तर नहीं दे पा रहे हैं या सरकारी अधिकारियों ने उन्हें भ्रमित किय है, या आंकड़े गलत महसूस होते हैं तो उन पर टोका है।
‘आपने खुद ही कहा कि विधानसभा अध्यक्ष एक राजनेता भी होता है। आपकी अपने लोगों के प्रति जवाबेदही भी है। राज्य में चुनाव आने वाले हैं, तो क्या आप फिर से जवाबदेही निभाने के लिए तैयार हैं? आप चुनाव लड़ेंगे?
ज्ञान चंद गुप्ता- यह निर्णय तो पार्टी और संगठन लेंगे कि क्या दोबारा चुनाव लड़ना चाहिए? मैं चालीस साल से पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहा हूं। जब भी संगठन की तरफ से ऐसा आदेश आया मैंने उसे शर्माते हुए स्वीकार कर लिया है। मैंने अपनी इच्छा जाहिर की है कि मैं सेवा करने के लिए तैयार हूं। लेकिन जो पार्टी और संगठन कहेंगे मैं उसके हिसाब से चलूंगा।
‘भाजपा ने ऐन चुनाव के पहले अपने मुख्यमंत्री को बदल दिया। जाहिर सी बात है कि पार्टी में कहीं न कहीं असंतोष रहा होगा। आपको क्या लगता है कि जो नया चेहरा लाया गया वह पुराना असंतोष मिटा देगा? कई शिकायतें थीं कि पार्टी के लोगों का काम नहीं हुआ।
ज्ञान चंद गुप्ता- मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार ने नहीं हटाया। यह पार्टी के संगठन का फैसला था। आदरणीय खट्टर जी ने साढ़े नौ साल संगठन की, लोगों की सेवा की है। तीसरी बार सरकार बनाने के लिए जो परिवर्तन किया गया तो मनोहर जी को राज्य से हटा कर केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दी गई। नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से प्रदेश के कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है। इससे संदेश गया कि पार्टी में अंतिम पंक्ति का कार्यकर्ता भी मुख्यमंत्री बन सकता है। नए मुख्यमंत्री बहुत सहज, सरल और मिलवर्तन हैं। मुख्यमंत्री के घर हर रोज कितने लोग उनसे मिलने आते हैं। सबसे बड़ी बात है कि मुख्यमंत्री हर किसी से मिलने, उनकी शिकायत दूर करने के लिए सहज तरीके से उपलब्ध रहते हैं। उनकी यह खासियत ही उनकी आगे की राह आसान कर देगी।
‘फिर चाहे उनके पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं हो?
ज्ञान चंद गुप्ता- प्रशासनिक अनुभव तो धीरे-धीरे आता है। खट्टर जी भी इसी तरह आए थे। सैनी तो सांसद और मंत्री भी रह चुके हैं। उनके पास अनुभव की कोई कमी नहीं है।
‘लोकसभा में पार्टी आधी रह गई। पांच सीट कांग्रेस ले गई।
ज्ञान चंद गुप्ता- वोट फीसद अभी भी हमारा ज्यादा है। लेकिन, अहम यह है कि एक झूठ का सहारा लिया गया। संविधान की प्रति का राजनीतिक इस्तेमाल किया गया। संविधान जैसे पवित्र ग्रंथ को आप हथियार बना कर जाते हैं, तो मैं कहूंगा कि यह संविधान का अपमान है।
‘भाजपा हरियाणा में गैर जाट राजनीति कर रही है। इसलिए कोई जाट नेतृत्व तैयार नहीं हुआ। पार्टी संगठन में भी कोई जाट नेतृत्व नहीं पनपा। जो एक दुष्यंत चौटाला आए थे उनसे भी अलगाव हुआ। आप अपने सहयोगी को अपने साथ क्यों नहीं रख पाते चाहे वह केंद्र की बात हो या फिर हरियाणा?
ज्ञान चंद गुप्ता- भाजपा ने कभी जातिवाद की राजनीति नहीं की। भाजपा 36 बिरादरी की पार्टी है। जात-पात से ऊपर उठ करके पार्टी में निर्णय लिए हैं। जहां तक जाट नेतृत्व का सवाल है, आज भी हमारे नेता आदरणीय ओम प्रकाश धनखड़ हैं। कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला जी पार्टी के बड़े नेता हैं और उनका सम्मान आज भी उतना ही है जितना पहले था। भाजपा जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद के खिलाफ लड़ाई लड़ती रही है और आगे भी लड़ती रहेगी।
‘हरियाणा की भाजपा सरकार पर एक और इल्जाम है कि खट्टर जी को प्रशासनिक तजुर्बा नहीं था तो नौकरशाही पर निर्भरता थी। अफसर ही सरकार चला रहे थे। अफसरों को सिर्फ इसलिए हटाया गया क्योंकि ये चुनाव जितवा सकते हैं। सरकार पर नौकरशाही हावी होने के कारण पार्टी में नाराजगी है इसे आप कितना सही मानते हैं?
ज्ञान चंद गुप्ता- सरकार बदलते ही नौकरशाही का भी नजरिया बदल जाता है। मुख्यमंत्री के निर्देशों को पूरा करना नौकरशाही का धर्म है। जो भी नौकरशाही रही उन्हें भाजपा का पूरा समर्थन मिला। काम सरकार को करना होता है। जो भी सरकार के काम के आड़े आता है उन्हें थोड़ा बहुत इधर-उधर करना पड़ता है।
‘भाजपा सरकार पर इल्जाम है कि वह संघ से दिशानिर्देश लेती है, खास कर हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री। संघ का एक खास वर्ग सरकार में सदा सक्रिय रहता है। भाजपा सरकार पर संघ के इस अधिभार पर आपका क्या कहना है?
ज्ञान चंद गुप्ता- मैं भी संघ का सदस्य हूं। मुझे पूरा गर्व है राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य होने पर। संघ एक राष्टÑीय संगठन है, जिसकी सोच हमेशा देश के लिए मर मिटने की रही है। इसके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। भाजपा के बहुत से कार्यकर्ता संघ की पृष्ठभूमि के हैं। सरकार में अलग-अगल जगहों से आए लोग काम करते हैं, लेकिन संघ का कार्यकर्ता हमेशा देश के लिए समर्पित रहता है। मैं इसका हिस्सा हूं और देश के लिए समर्पित हूं। पार्टी के अंदर जो भी संघ की पृष्ठभूमि से हैं, उनके अंदर राष्ट्रीयता भरी हुई है। संघ के कार्यकर्ता के तौर पर मेरे लिए देश प्रथम, पार्टी द्वितीय और मैं खुद तीसरे स्तर पर हूं। संघ के कार्यों पर मुझे गर्व है। संघ किसी भी तरह से सरकार में दखलंदाज नहीं है। संघ की तरह देश के लिए समर्पित किसी भी संस्था की बात सुननी चाहिए।
‘भूपिंदर सिंह हुड्डा का दावा है कि भाजपा के 42 लोग टूट कर कांग्रेस में आ चुके हैं। अनिल विज की अदृश्यता पर भी उन्होंने सवाल उठाए। आपको लगता है कि पार्टी में भितरघात लोकसभा चुनाव में हार की वजह थी?
ज्ञान चंद गुप्ता- हमारी पार्टी कहां हारी है? पांच सीटें हमने ली हैं, पांच कांग्रेस ने ली हैं। यह वही बात हो गई जो प्रधानमंत्री ने कही, पप्पू पास हो गया 99 अंक लेकर, लेकिन यह नहीं बता रहा कि यह तो 543 में आए हैं।
‘हरियाणा में क्या होगा?
ज्ञान चंद गुप्ता- हम तीसरी बार सरकार बनाएंगे।
‘भितरघात से पार्टी को नुकसान पहुंचेगा?
ज्ञान चंद गुप्ता- अभी तो किरण चौधरी जी भाजपा में आई हैं। आगे देखिएगा कितने कांग्रेसी हमारी विचारधारा से प्रभावित होकर सही पार्टी में आएंगे।
‘तो फिर किरण चौधरी जी को वाशिंग मशीन से निकाल लिया?
ज्ञान चंद गुप्ता- भाजपा की वाशिंग मशीन बहुत तेज चलती है। अभी आगे देखिए। हमारी विचारधारा देशहित की है जिससे और दलों के नेता प्रभावित होते हैं। वे हमसे जुड़ना चाहते हैं।
(प्रस्तुति मृणाल वल्लरी)