अपने आसपास हम साफ-साफ देख सकते हैं कि ज्यादातर लोग इस तरह की जीवनशैली के चक्र में फंस गए हैं कि दूसरों के लिए तो दूर, वे खुद अपने लिए भी वक्त निकाल पाने में न तो कामयाब हो पाते हैं और न ही उनमें उनकी कोई रुचि रह जाती है। यह ज्यादा जटिल स्थिति है कि अपने लिए वक्त निकालने के सवाल को अब किसी अनोखी बात की तरह देखा जाने लगा है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर लोग ऐसे कामों में हमेशा ही व्यस्त दिखते हैं, जिसे वे ‘अपने लिए वक्त’ के तौर पर देखते हैं।

बेमानी व्यस्तता

मसलन, स्मार्टफोन में अपनी पसंद की सामग्री देखना। इसे लोग अपनी पसंद और अपने चुनाव के आधार पर चुनी गई व्यस्तता के रूप में देखते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करते हुए वे वक्त का उपयोग अपने लिए ही कर रहे हैं। मगर सच यह नहीं है। स्मार्टफोन के स्क्रीन पर आने वाली सामग्री को देखते हुए वे दरअसल अपने और अपने आसपास की दुनिया को खो रहे होते हैं। मेट्रो या बस में सफर करते हुए या किसी जगह इंतजार करते हुए या फिर घर में ही ज्यादातर वक्त मोबाइल में गुम रहते हुए लोगों को यह पता तक नहीं चल पाता कि उनके आसपास कुछ और लोग भी हैं, जिनसे बात करना, जिनके साथ घुलना-मिलना, संवेदनात्मक व्यवहारों का आदान-प्रदान भी उनकी मानवीय जिम्मेदारी है। वे अपने मोबाइल के स्क्रीन में कैद होकर रह जाते हैं और सोचते हैं कि वे अपने वक्त को जी रहे हैं।

बाधित सोच

सच यह है कि स्मार्टफोन के स्क्रीन पर उभरी सामग्रियां देखते हुए हम यह नहीं सोच पाते कि वे हमारा कितना वक्त छीन रही हैं। हमारी एकाग्रता और सोचने की प्रक्रिया को बाधित करने के अलावा हमारे प्रत्यक्ष कामकाज को भी रोकती हैं। उन्हें टालने के लिए मजबूर करती हैं। इस संजाल में उलझे हम यह सोच भी नहीं पाते कि कैसे हम अपनों से दूर होते चले जा रहे हैं और यहां तक कि खुद से भी दूर हो जाते हैं। एक तरह के सम्मोहन का शिकार होकर हम बिना किसी ठोस तर्क वाली चीजों में खो जाते हैं। किसी अच्छी किताब को पढ़ना, किसी उद्यान में जाकर शांति से बैठ कर प्रकृति को निहारना, किसी विषय पर अपने दिमाग को मथना, किसी हास्यबोध के प्रसंग पर मुस्कराना या खुल कर खिलखिला कर हंसना, किसी छोटे बच्चे को खेलते हुए देख कर मुदित होना, कभी खुद भी बच्चा बन कर खेलना और अपने बचपन के दिनों में खो जाना।

दिल-दिमाग की खुराक

यह सब कुछ ऐसी बातें हैं जो हमें इस बात का अहसास करा सकते हैं कि हम चारों तरफ वक्त छीनने के जाल के बीच से अपने लिए कुछ वक्त चुरा रहे हैं, अपने मन और दिमाग को कुछ खुराक दे रहे हैं। प्रकृति ने हमें दिल-दिमाग और शरीर से स्वस्थ रहने के सभी स्थितियां मुहैया कराई हैं। हम उन्हें चुनने और जीने के बजाय कुछ ऐसी बातों में उलझ जाते हैं, जो दिखने में हमारी होती हैं, मगर वे हमको दूर कर देती हैं। फिर आसपास की दुनिया की जीवंतता भी हमें नीरस लगने लगती है।