सर्दी शुरू होते ही लोगों में सांस की समस्या बढ़ जाती है। वायु में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने और धूल के कण जमीन से थोड़ा ऊपर रहने के चलते सांस लेने पर फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। ज्यादा समस्या होने पर यह अस्थमा का रूप भी ले लेता है। दरअसल, कोहरा और धुंध के कारण फेफड़े सिकुड़ जाते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। फेफड़ों के सिकुड़ने से ऑक्सीजन हमारे खून में सही से नहीं पहुंच पाती, जिससे ऐसी समस्या होती है। सबसे अधिक समस्या बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को होती है।

लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी विभाग के अध्यक्ष और इंडियन कॉलेज और एलर्जी अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर सूर्यकांत बताते हैं कि सर्दियों में प्रदूषित हवा से नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन हो जाती है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देती है, जो किसी भी एलर्जी के संपर्क में तीखी प्रतिक्रिया करती है। इस स्थिति में फेफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है, जिससे खांसी, छाती में कसाव, सीटी की ध्वनि, सांस लेने में परेशानी और घबराहट जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। लोगों में अस्थमा होने की संभावना बचपन में ही होती है। जिसमें बच्चे की पसली चलना, खांसी आना तथा सांस फूलना जैसे लक्षण होते हैं।

कितना खतरनाक है: ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा के अनुसार विश्व में लगभग तीस करोड़ लोग अस्थमा से ग्रस्त हैं, जिसका दस प्रतिशत यानी तीन करोड़ हिस्सा केवल भारत में है। उत्तर प्रदेश में लगभग पचास लाख लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। जब अस्थमा के कारक मरीज के संपर्क में आते हैं तो शरीर में मौजूद विभिन्न रासायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) स्रावित होते हैं, जिनसे श्वास नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं। श्वास नलिकाओं की भीतरी दीवार में लाली और सूजन आ जाती है और उसमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से अस्थमा के लक्षण पैदा होते हैं तथा बार-बार कारकों के संपर्क में आने से श्वास की नलिकाओं में स्थायी रूप से बदलाव हो जाते हैं। भारत में कारक तत्व के रूप में 49 प्रतिशत प्रदूषण, 29 प्रतिशत ठंडे पेय पदार्थ, 24 प्रतिशत रसायन तथा 11 प्रतिशत तनाव प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

इन्हें होती है ज्यादा समस्या: सर्दी में उन लोगों को सांस की तकलीफ बढ़ जाती है, जिनको लगातार फेफड़े का संक्रमण बना रहता है। इसके अलावा बोंक्राइटिस के मरीज और अस्थमा, हाइपरटेंशन के मरीज, चलते वक्त या कोई भी काम करते समय सांस फूलना, समय पर सही इलाज न लेने पर बैठे-बैठे भी सांस फूलने लगना, लगातार खांसी, बलगम, बुखार के साथ बदन टूटना, सिर में दर्द होना, छाती में जकड़न होना और गले में दर्द होना। जो भी ऐसी समस्याओं से जूझते हैं ऐसे लोगों को सर्दी में सावधानी बरतने की जरूरत है।

कैसे करें बचाव: ठंड में बाहर निकलने से पहले नाक और मुंह को अच्छी तरह ढंके। इससे ठंडी हवा सीधे अंदर नहीं जाएगी। इससे प्रदूषण से भी बचाव होगा, क्योंकि हवा के साथ धूल के कण भी सांस के साथ अंदर चले जाते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। सर्दियों में भी ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। पानी को गुनगुना करके पिएं तो ज्यादा बेहतर रहेगा। साफ रुमाल का इस्तेमाल करें। बाहर का खाना खाने या ज्यादा तैलीय खाना खाने के बाद गुनगुना पानी पीएं या गुनगुने पानी में नमक डाल कर गरारे करें। इससे गले में मौजूद मिट्टी या तेल के तत्त्व साफ हो जाएंगे। सुबह टहलने जाने से पहले खूब सारा पानी पीकर जाएं। गले, नाक और कानों को ढक कर जाएं। अस्थमा, ब्रोंकाइटिस या सांस से जुड़ी कोई भी बीमारी है या सत्तर साल से ज्यादा उम्र है तो ज्यादा सुबह टहलने न जाएं। थोड़ी धूप निकलने के बाद ही निकलें। अस्थमा के मरीज इनहेलर साथ रखें। विटामिन सी भरपूर मात्रा में लें, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे। व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इनहेलर अवश्य लेना चाहिए। रोगी को तेज और ठंडी हवा से बचाएं। सीलन वाले कमरे से बचें और रोगी के कमरे में जानवर, नकली और असली पौधे और रूई का सामान बिल्कुल न रखें।

डॉक्टर से संपर्क करें: वैसे तो सर्दी में थोड़ा बहुत सर्दी जुकाम सभी को होता रहता है, इसलिए तुरंत दवा खाने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर एक हफ्ते में परेशानी में सुधार न हो तो डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। घरेलू इलाज करें, जैसे तुलसी और अदरक का काढ़ा पीना, गुनगुने पानी के गरारे, भाप लेने के बावजूद भी ठीक न हों तो दो से तीन दिन बाद ही डॉक्टर को दिखाएं।

योग से लाभ: योग पर किए गए एक शोध में कहा गया है कि तीस मिनट के प्रतिदिन योग से अस्थमा और सांस की बीमारी में लाभ मिलता है। इसकी सहायता से मरीजों में जीवन स्तर में सुधार आता है और एंटिऑक्सीडेंट्स का स्तर बढ़ जाता है। साथ ही फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इनहेलर की खुराक भी कम हो जाती है। नियमित रूप से प्राणायाम करने से एक तिहाई बंद नालिकाएं खुल जाती हैं, फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है और प्रदूषित वायु बाहर निकलती है। योग को जीवन शैली के रूप में स्वीकार किया जाए और सहचिकित्सा पद्धति के रूप में अपनाया जाए तो अस्थमा पर नियंत्रण संभव है।