मानस मनोहर
दाल ढोकली
दाल ढोकली देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से बनाई और खाई जाती है। दरअसल, यह विशुद्ध कृषि संस्कृति का भोजन है। कृषक और श्रमिक महिलाओं ने कुछ ऐसे भोजन बनाने की विधियां विकसित कीं, जिनमें वक्त भी कम लगे और पोषण भरपूर मिले। दाल ढोकली उसी में एक है। दाल ढोकली में दाल तो होती ही है, चावल या गेहूं का आटा भी होता है। कुछ लोग इसमें कुछ सब्जियां, बड़ियां वगैरह भी डाल देते हैं। भरपूर घी तो होता ही है। इस तरह यह पोषण से भरपूर संपूर्ण आहार होता है। यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार में आमतौर पर खाई जाती है। कहीं-कहीं इसे पिठौरी भी बोला जाता है। ज्यादातर लोग दाल में आटे की कच्ची रोटी को मोड़ या फिर काजू कतली की तरह काट कर डाल देते और भाप में पका लेते हैं।

दाल ढोकली बनाने के लिए अरहर, चना, धुली मूंग, मोठ या मसूर में से कोई भी दाल अपनी पसंद से ले सकते हैं। यों अरहर और चने की दाल में इसका स्वाद बेहतर आता है। जो भी दाल लें, उसे साफ करके दो घंटे के लिए भिगो दें। फिर इसमें थोड़ा नमक, हल्दी और हींग डाल कर कुकर में दो-तीन सीटी आने तक मध्यम आंच पर पका लें। दाल अच्छी तरह गल जानी चाहिए।

अब गेहूं के आटे में उसका चौथाई हिस्सा बेसन डाल कर रोटी जैसा आटा गूंथ लें। जिन इलाकों में लोग चावल अधिक खाते हैं, वे गेहूं के बजाय चावल के आटे का इस्तेमाल करते हैं, पर उसमें बेसन नहीं डाला जाता। फिर इसमें डालने के लिए भरावन तैयार करें। एक या दो उबले हुए आलू, थोड़ा पनीर, कुछ हरी मटर के दाने, बारीक कटे गाजर, शिमला मिर्च, हरा धनिया पत्ता, थोड़ा बारीक कटा अदरक, बारीक कटी दो हरी मिर्च लें और सारी सामग्री को अच्छी तरह मसल कर मिलाएं। इसमें जरूरत भर का नमक डालें और एक बार फिर मसल कर मिला लें। इस सामग्री में से छोटी-छोटी गोलियां बनाएं और अलग रख दें।

इसके बाद आटे में से छोटी-छोटी लोइयां लेकर पतली-पतली कटोरी की गोलाई के बराबर आकार में रोटियां बेल लें। उनमें भरावन डाल कर अच्छी तरह ऊपर का हिस्सा चिपका लें, जैसे मोमो बनाते वक्त चिपकाते हैं। इस तरह सारी ढोकली तैयार कर लें।

अब एक कड़ाही में दो-तीन बड़े चम्मच घी गरम करें। उसमें तेजपत्ता, छोटा टुकड़ा दालचीनी, चार-छह काली मिर्चें, जीरा, सौंफ, अजवाइन और हींग का तड़का लगाएं। अगर उपलब्ध हो तो आठ-दस कढ़ी पत्ते भी डाल दें। बारीक कटी हुई एक प्याज और एक टमाटर डालें और गलने तक पकने दें। फिर इसी में उबली हुई दाल डालें और ऊपर से एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर, डेढ़ से दो चम्मच सब्जी मसाला डालें और थोड़ा और पानी डाल कर दाल को उबलने दें। जब दाल में उबाल आ जाए तो भरी हुई ढोकलियां एक एक कर डालें और कड़ाही पर ढक्कन लगा दें। मध्यम आंच पर पंद्रह से बीस मिनट तक पकने दें।

दाल ढोकली तैयार है। इसमें चाहें तो ऊपर से एक बार फिर जीरा, साबुत लाल मिर्च और हींग का तड़का दे सकते हैं। अदरक के लच्छे, कटी हरी मिर्च और धनिया पत्ता डालें और गरमागरम परोसें।

चना दाल फरे
फरे लगभग देश के हर इलाके में किसी न किसी रूप में बनते ही हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे पीठा या बोझा भी कहते हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में तो यह नाश्ते के तौर पर चाय की दुकानों पर भी बिकता है। यह भी कृषक संस्कृति का ही व्यंजन है। उत्तर प्रदेश और बिहार में किसान महिलाएं सर्दियों में एक खास त्योहार पर प्रसाद रूप में दाल पीठा और गन्ने के रस की खीर बनाती हैं। पीठा या फरे बहुत उत्तम नाश्ता हैं। इसमें तेल घी की बिल्कुल जरूरत नहीं पड़ती। जैसे इडली बनती है, वैसे ही फरे भी बनाए जाते हैं।

चना दाल फरे बनाने की अनेक विधियां हैं। जो प्रचलित विधि है, उसमें चावल या फिर गेहूं के आटे में चना दाल की पिट्ठी भर कर बनाया जाता है। इसके लिए पहले चना दाल को कम से कम चार घंटे के लिए भिगो कर रखें। फिर पानी निथार कर उसमें कुछ हरी मिर्च, अदरक, लहसुन, कुछ कढ़ी पत्ते, थोड़ा जीरा, अजवाइन, हींग और जरूरत भर का नमक डाल कर मिक्सर में दरदरा पीस लें। ध्यान रखें कि दाल में पानी बिल्कुल न रहे, नहीं तो पिट्ठी गीली होकर पानी छोड़ेगी। यों पिट्ठी तैयार है, पर आप चाहें, तो कड़ाही या पैन में एक चम्मच तेल गरम करके जीरे का तड़का लगाएं और उसमें पिट्ठी को चलाते हुए दो से तीन मिनट तक भून लें।

अब चावल या गेहूं का आटा लें और उसे रोटी के आटे की तरह गूंथ लें। अगर चावल का आटा इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उसे गुनगुने पानी से गूंथें और सख्त रखें। चावल के आटे को बेलते समय चकले पर प्लास्टिक बिछा लें, नहीं तो वह चिपकेगा। गेहंू का आटा इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उसमें यह परेशानी नहीं आएगी। अब उसमें चना दाल की पिट्ठी भरें और खुले हुए हिस्सों को अच्छी तरह बंद कर दें। इसके लिए गुझिया के सांचे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

इन फरों को भाप में कम से कम बीस मिनट तक पकाएं, ताकि भीतर की दाल अच्छी तरह पक जाए। अगर आपने लंबे रोल की तरह लपेटा है, तो इसे मनचाहे आकार में काट सकते हैं। गुझिया के सांचे से बनाया है, तो न भी काटें तो चलेगा। अगर चाहें तो इसके ऊपर राई, लाल मिर्च और कढ़ी पत्ते का तड़का डाल सकते हैं, स्वाद थोड़ा और बढ़ जाएगा।