आटे का हलवा
यों तो आमतौर पर सूजी, मूंग दाल, बेसन और कुछ फलों-सब्जियों का हलवा अधिक खाया जाता है, पर आटे के हलवे की बात ही कुछ और होती है। भारतीय परंपरा में ज्यादातर जगहों पर आटे का हलवा ही पूजा-पाठ में उपयोग होता है। जन्माष्टमी पर जो लोग बारह या छह दिन का उत्सव रखते हैं, वे ज्यादातर पंजीरी के साथ आटे का हलवा ही प्रसाद रूप में वितरित करते हैं। यों जरूरी नहीं कि आटे का हलवा प्रसाद रूप में ही तैयार करें, इसे घर में मीठे के तौर पर भी बनाएं, इसका स्वाद दूसरे हलवों से बिल्कुल अलग होता है।

आटे का हलवा बनाना मुश्किल काम नहीं है। बस इसमें आटे को भूनने पर ध्यान दिया जाए, तो इसका स्वाद निराला आता है। आटे का हलवा बनाने का सरल सूत्र यह है कि इसमें जितनी मात्रा आटे की रखें, उतना ही घी और चीनी भी लें। यानी दो कप आटा लिया है, तो उतनी ही चीनी और घी भी रखें। चीनी को डेढ़ गुना पानी में डाल कर उबाल आने और अच्छी तरह घुल जाने तक पका लें।

अब एक कड़ाही गरम करें। उसमें आटे को डालें और मध्यम आंच पर कुछ देर तक चलाते हुए भूनें। ऐसा इसलिए करना जरूरी है कि आटे में नमी होती है और इस तरह गरम होकर वह निकल जाती है। तीन-चार मिनट भूनने के बाद उसमें थोड़ा-थोड़ा करके घी डालें और आटे को मध्यम आंच पर चलाते हुए भूनते रहें। इस तरह एक चौथाई घी बचा कर सारा घी भूनने में इस्तेमाल करें। जब आटा भुन कर सुनहरा हो जाए तो आंच बंद कर दें। थोड़ी देर चलाते हुए आटे को ठंडा होने दें। इस आटे को छन्नी से छान लें, ताकि अगर कोई गांठ बनी हो, तो वह दूर हो जाए। आटे का हलवा बनाने में गांठ बनने की संभावना बहुत रहती है, इसलिए इसे दूर करना बहुत जरूरी है, नहीं तो हलवा खराब हो जाएगा। आटे को थोड़ी देर ठंडा होने दें।

फिर उसी कड़ाही में बचा हुआ घी डालें और उसमें कटा हुआ बादाम, काजू, पिस्ता डाल कर हल्का भून लें। फिर इसी घी में एक बार फिर भुने हुए आटे को डालें, अच्छी तरह मिलाएं और थोड़ा-थोड़ा करके चीनी घुला पानी डालें और लगातार चलाते रहें। इसे चलाते रहना बहुत जरूरी है, नहीं तो गांठ बनने का खतरा रहता है। जहां गांठ बनती है, वहां चीनी का रस नहीं पहुंच पाता। हलवा बेमजा हो जाता है। जब आटा सारा पानी सोख ले और थोड़ा कड़ा हो जाए तो आंच बंद कर दें। हलवा तैयार है। चाहें, तो इसमें ऊपर से और सूखे मेवे डाल सकते हैं। अब इसके छोटे हिस्से लेकर प्रसाद के लिए लड्डू की तरह बनाना चाहें, तो वैसा बनाएं, चाहें तो खुले रूप में परोसें।

पंजीरी
पंजीरी एक ऐसा मीठा पकवान है, जो पूजा-पाठ में अनिवार्य रूप से बनाया और खाया जाता है। घर में कथा-कीर्तन हो तो पंजीरी का प्रसाद अवश्य बनता है। वैसे बहुत सारे लोग इसे मीठे के रूप में भी खाते हैं। हलवाई की दुकान पर पंजीरी बनी-बनाई मिल जाती है, पर घर में बनी पंजीरी का मजा ही अलग होता है। इसे बनाने का सुख तो मिलता ही है।

पंजीरी बनाना बहुत आसान है। आमतौर पर पंजीरी आटे की बनती है, पर जन्माष्टमी पर धनिए की भी पंजीरी बनती है। इस मौसम में पाचन तंत्र कुछ मंद हो जाता है, इसलिए धनिए की पंजीरी खाना बहुत गुणकारी माना जाता है। अगर पूजा-पाठ, जन्माष्टमी के लिए बनाना हो, तो भी इसे घर में बना कर रखा जा सकता है और रोज खाने के बाद मीठे के रूप में एक-दो चम्मच खाया जा सकता है।

आटे की पंजीरी बनाने के लिए वही हलवा वाला फार्मूला अपनाना चाहिए। जितनी मात्रा में आटा लिया है, लगभग उतना ही घी और उतनी ही मात्रा में चीनी को पीस लेना चाहिए। इसमें डालने के लिए काजू, बादाम, पिस्ता, चिरौंजी और मखाने को पहले घी में भून कर अलग रख लें। फिर आटे को उसी तरह भूनें, जैसे हलवे के लिए भूना था। सुनहरा होने तक मध्यम आंच पर चलाते हुए भूनें। आटे को भूनते समय ही थोड़ी अजवाइन भी डाल दें, इससे पंजीरी का स्वाद अच्छा हो जाता है। कुछ लोग इसमें सौंफ भी पसंद करते हैं, चाहें, तो वह भी डाल सकते हैं।

जब आटा भुन कर गुलाबी हो जाए, तो उसे अलग बर्तन में निकाल कर ठंडा होने दें। ठंडा होने के बाद उसमें थोड़ा-थोड़ा करके पिसी हुई चीनी डाल कर हाथों से रगड़ते हुए मिलाएं। जब सारी चीनी मिल जाए, तो तले हुए मेवे डालें और अच्छी तरह मिला दें। आटे की पंजीरी तैयार है।

धनिया पंजीरी
धनिया की पंजीरी बनाना बहुत ही आसान है। साबुत धनिया को पहले धूप में सुखा लें या गरम कड़ाही में डाल कर थोड़ी देर चला लें, ताकि उसकी नमी दूर हो जाए। फिर जितनी मात्रा धनिया की ली है, उतनी ही मात्रा चीनी की लेकर उसे पीस लें। अब धनिया को पीस लें। धनिया और पिसी चीनी को आपस में अच्छी तरह मिलाएं। इसमें थोड़ा-सा घी भी डाल लें तो और अच्छा रहता है। पंजीरी तैयार है। धनिया पंजीरी में आटे के हलवे के गोल लड्डू लपेट कर खाएं या बांटें, स्वाद गजब होता है।