बच्चे देश का भविष्य हैं। बच्चों के सर्वांगीण विकास और सुरक्षित भविष्य के लिए समूचा देश चिंतित है। शिक्षा बच्चों में ज्ञान की ज्योति जलाती है और प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाने का काम करती है। देश में छह से बारह साल की आयु सीमा के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है। विद्यालयों में दोपहर के भोजन की व्यवस्था भी है। सरकार चाहती है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के शत प्रतिशत बच्चों का स्कूलों में नामांकन हो। लेकिन, सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद यह कार्य आगे नहीं बढ़ पाया। नामांकन कुछ हद तक तो आगे बढ़ा, मगर शिक्षा का स्तर नीचे गिर गया। एक रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में छह से चौदह वर्ष के 96 प्रतिशत बच्चों का नामांकन हुआ है। मगर शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से बच्चे फिसड्डी साबित हुए।

रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे साधारण अक्षर भी नहीं पहचानते हैं, अट्ठाईस प्रतिशत अक्षर पहचानते हैं मगर इससे आगे नहीं बढ़ पाए। संख्या और गुणा-भाग भी अधिकांश बच्चों को नहीं आता। देश में गरीबी के कारण भी बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में बेहद पिछड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बेहद गरीब एक सौ बीस करोड़ लोगों में से लगभग एक तिहाई बच्चे हमारे देश के हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2012 में पांच वर्ष तक की आयु सीमा तक पहुंचने से पहले भारत में चौदह लाख बच्चों की मृत्यु हो गई। नेशनल सेंपल सर्वे संगठन की 2012 की रिपोर्ट में कहा गया कि दो तिहाई लोग पोषण के सामान्य मानक से कम खुराक प्राप्त कर रहे हैं। एक और सरकारी संगठन की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुपोषित और कम वजन के बच्चों की आबादी का लगभग चालीस प्रतिशत भाग भारत में है।

बच्चों में अपराध और बाल मजदूरी के मामले में भी हमारा देश आगे है। हालांकि, सरकार दावा कर रही है कि बाल मजदूरी में अपेक्षाकृत काफी कमी आई है। सरकार ने बालश्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाए हैं और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है। मगर असल में आज भी लाखों बच्चे कल कारखानों से लेकर विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे हैं। चाय की दुकानों पर, फल-सब्जी से लेकर मोटर गाड़ियों में हवा भरने, होटल, रेस्टोरेंटों में और छोटे-मोटे उद्योग-धंधों में बाल मजदूर सामान्य तौर पर देखने को मिल जाते हैं।

अपराधों की दुनिया में भी बच्चों के शामिल होने से उनका बचपन खतरे में पड़ गया है। पिछले एक दशक में बाल अपराधों की संख्या भी निरंतर बढ़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 में बच्चों के अपराधों में गत् वर्ष के मुकाबले 24 फीसद की वृद्धि हुई, जो खतरे का संकेत देती है। बाल अपराधों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। अपराधों के अलावा बच्चों के गायब होने की घटनाओं में भी लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में हर साल तेरह लाख बच्चे गुम हो जाते हैं।

बच्चों के सर्वांगीण विकास को मद्देनजर रखते हुए सबसे पहले बच्चों की शिक्षा पर अपना ध्यान देना होगा। बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा समान स्तर पर मिलनी जरूरी है। सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों को गुणवत्ता पर शिक्षा दे ले जाता है। मगर गरीब बच्चे सरकारी स्कूलों में गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। इसके फलस्वरूप वे पिछड़ जाते हैं। आगे की पढ़ाई भी नहीं कर पाते और गरीब अभिभावक ऐसी स्थिति में अपने बच्चों को मजदूरी में जोत देते हैं। ऐसे बच्चे आगे जाकर अपराधों में फंसकर अपना भविष्य खराब कर लेते हैं।

सरकार को चाहिए कि गरीब बच्चों की शिक्षा और परवरिश की माकूल व्यवस्था करे। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को जमीनी स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं।