अक्सर देखा जाता है कि लोग भिखारियों पर तरस खाकर उन्हें कपड़े और खाने की चीजें देते हैं। लेकिन, इसके ठीक उलट भिखारियों का मनोविज्ञान सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरना होता है। चाहे मंदिर-मस्जिद हो, स्टेशन या लालबत्ती चौराहा। पैसे के अलावा और कुछ लेना भिखारियों को मंजूर नहीं होता। दरअसल, भिक्षावृत्ति कुछ ही लोगों के लिए मजबूरी का सौदा है, बड़े पैमाने पर यह एक धंधा बन चुकी है। इसे शुरू करने के लिए न तो किसी पूंजी की जरूरत है और न शारीरिक श्रम की। यही वजह है कि देश में भिखारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 2011 की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि देश में तीन लाख बहत्तर हजार भिखारी थे, जिनमें से 21 फीसद यानी 78 हजार भिखारी शिक्षित थे।
शिक्षित भिखारियों में से कई के पास प्रोफेशनल डिग्री थी। जनगणना रिपोर्ट में उक्त आंकड़े कोई रोजगार न करने वाले और उनका शैक्षिक स्तर शीर्षक तले जारी की गई। शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में भिखारियों की संख्या कहीं ज्यादा है। शहरी इलाकों में भीख मांगने वालों की संख्या एक लाख पैंतीस हजार है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह संख्या दो लाख सैंतीस हजार है। देश में भिखारियों की तादाद को लेकर यह सिर्फ एक पक्ष है। पिछले दिनों केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि देश में भिखारियों की संख्या चार लाख तेरह हजार छह सौ सत्तर है, जिनमें पुरुषों की संख्या दो लाख बीस हजार और महिलाओं की संख्या एक लाख इक्यानबे हजार है। जाहिर है, तमाम प्रयासों के बावजूद भिखारियों की वास्तविक संख्या को लेकर भ्रम की स्थिति अब भी बरकरार है।
सरकार की ओर से राज्यसभा में दिए गए लिखित जवाब को आधार बनाते हुए राज्यवार आंकड़ों पर नजर डालें, तो सबसे ज्यादा भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं। देश के बाईस राज्य और केंद्रशासित शासित प्रदेश भिक्षावृत्ति के खिलाफ कानून बना चुके हैं। उत्तर प्रदेश में म्युनिसिपेल्टी एक्ट भिक्षावृत्ति का निषेध करता है। जबकि पंजाब-हरियाणा में भिक्षावृत्ति निरोधक अधिनियम 1971 लागू है। मध्य प्रदेश में 1969-1973, मुंबई में 1945, पश्चिम बंगाल में 1943 में बने कानून लागू हैं। इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 भी कहती है कि जो व्यक्ति भीख मांगने के लिए अनुचित प्रदर्शन करते पाए जाएंगे, वे दंड के भागी होंगे। भारतीय रेलवे अधिनियम भी भिक्षावृत्ति का निषेध करता है।
भिखारियों में बच्चों की तादाद भी अच्छी-खासी है। हालांकि, इस बाबत कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार, देश के विभिन्न हिस्सों में तकरीबन दो लाख से ज्यादा बच्चे भिक्षावृत्ति से जुड़े हैं। कोई पारंपरिक रूप से भिक्षावृत्ति कर रहा है, कोई मजबूरी के चलते। वहीं बड़ी संख्या में बच्चे संगठित गिरोहों का शिकार हैं, जो उन्हें डरा-धमका कर, अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति करा रहे हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग-(एनसीपीसीआर) बच्चों से भिक्षावृत्ति कराने की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए राजधानी दिल्ली से एक देशव्यापी मुहिम शुरू करने जा रहा है।
गौरतलब है कि संशोधित किशोर न्याय कानून-2015 में बाल भिक्षावृत्ति के खिलाफ सख्त प्रावधान किए गए हैं। आयोग के सदस्य यशवंत जैन कहते हैं कि बाल भिक्षावृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए संशोधित कानून का प्रभावी क्रियान्वयन जरूरी है। संशोधित कानून की धारा 76 के तहत बाल भिक्षावृत्ति के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को पांच साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ सकती है। बच्चों का अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति कराने के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को सात से दस साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। बाल भिक्षावृत्ति एक राष्ट्रीय समस्या है, लेकिन शहरों में इसे पेशेवर ढंग से अंजाम दिया जा रहा है। आयोग चिल्ड्रेन हेल्पलाइन, गैर सरकारी संगठनों और प्रशासन के साथ मिलकर बाल भिक्षावृत्ति पर अंकुश लगाने का प्रयास करेगा। मुहिम के तहत न सिर्फ बच्चों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकाला जाएगा, बल्कि उनके पुनर्वास की भी योजना है।
विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों-समाजशास्त्रियों का मत है कि भिक्षावृत्ति की समस्या के मूल में सबसे बड़ी वजह गरीबी और बेरोजगारी है। शिक्षित भिखारियों की भारी-भरकम संख्या इसकी गवाह है। यानी अर्द्धबेरोजगारी और अपर्याप्त मेहनताने ने भी लोगों को भीख मांगने के लिए मजबूर कर रखा है। कई महानगरों में पढ़े-लिखे लोग भीख मांगते पकड़े गए हैं।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई डांस बार प्रकरण की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि सड़क पर भीख मांगने से डांस करके पैसे कमाना कहीं ज्यादा बेहतर है। यानी भिक्षावृत्ति निस्संदेह एक शर्मनाक पेशा है, जो देश की छवि खराब कर रहा है। गरीबी-बेरोजगारी इसकी एक वजह तो है, लेकिन उसके साथ-साथ लोगों के नाकारेपन, आलस्य और कामचोरी की प्रवृत्ति से भी भिक्षावृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है। आज जरूरत इस बात की है कि देश को भिखारी-बेरोजगारी मुक्त बनाया जाए। भिखारियों का पुनर्वास हो, उन्हें रोजगार से जोड़ा जाए और भिक्षावृत्ति निरोधक विभिन्न कानूनों का सख्ती से पालन हो। लेकिन, यह सब सिर्फ सरकार-प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, आमजन को भी भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने से स्वयं को रोकना होगा। दया भावना स्वस्थ मानवीय गुण हैं, लेकिन अति उदारता कभी-कभी समस्याएं उत्पन्न कर देती है। यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है।