अबूझमाड़ की मुठभेड़ छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे नक्सल विरोधी अभियानों की शृंखला में नवीनतम है और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा देश से वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने के लिए तय की गई समय सीमा 31 मार्च, 2026 की पृष्ठभूमि में हुई है। इस मुठभेड़ के साथ, इस साल छत्तीसगढ़ में मारे गए माओवादियों की संख्या 200 तक पहुंच गई है। इसमें अकेले बस्तर क्षेत्र में 183 नक्सली मारे गए हैं। पिछले साल, 219 माओवादी मारे गए थे, जिनमें बस्तर में 217 मारे गए थे।
‘बस्तर रेंज’ के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि भाकपा (माओवादी) महासचिव बसवराजू और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) और पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) के अन्य खूंखार नक्सलियों की मौजूदगी के बारे में खुफिया जानकारी के आधार पर नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंडागांव से छत्तीसगढ़ पुलिस की एक संयुक्त डीआरजी टीम ने सोमवार को नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा के सीमावर्ती क्षेत्र के अबूझमाड़ के जंगलों में यह निर्णायक अभियान शुरू किया था।
सुरक्षाबलों ने उग्रवादियों का बहादुरी से मुकाबला किया
बीजापुर के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र यादव के मुताबिक बुधवार को सुबह तलाशी अभियान के दौरान माओवादियों ने सुरक्षा बलों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। सुरक्षा बलों ने गैरकानूनी और प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के चरमपंथियोंका बहादुरी और चतुराई से मुकाबला किया। मुठभेड़ के बादमौके से एके-47, सेल्फ-लोडिंग राइफल (एसएलआर), इंसास, कार्बाइन जैसे कई स्वचालित हथियार, अन्य हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए। मुठभेड़ स्थल के प्रारंभिक निरीक्षण से पता चला है कि इस अभियान में कई अन्य वरिष्ठ स्तर के माओवादी कैडर या तो मारे गए हैं या गंभीर रूप से घायल हो गए।
अबूझमाड़ गोवा राज्य से भी बड़ा एक सर्वेक्षण रहित क्षेत्र है। इसका एक बड़ा हिस्सा नारायणपुर में है, लेकिन यह बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले तक फैला हुआ है। अबूझमाड़ माओवादियों का गढ़ रहा है और एक बड़ी चुनौती एक बड़े क्षेत्र में अभियान चलाना था। यहां कोई सुरक्षा भी मौजूद नहीं है। यहां तक कि सबसे नजदीकी सुरक्षा शिविर भी लगभग 25 से 30 किलोमीटर दूर है। अबूझमाड़ मुठभेड़ छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कुरेर्गुट्टालू पहाड़ियों में और उसके आसपास सुरक्षा बलों द्वारा ‘ब्लैक फारेस्ट’ नामक एक बड़े नक्सल विरोधी अभियान के एक महीने से भी कम समय बाद हुई है। हालांकि 21 दिनों के बाद मुठभेड़ को बंद कर दिया गया, लेकिन शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि प्रमुख माओवादी नेतृत्व और उनकी सशस्त्र शाखा, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की खूंखार बटालियन 1 को भारी नुकसान पहुंचा है।
यह आपरेशन 21 अप्रैल को शुरू हुआ था, जब सुरक्षा बलों और कई एजंसियों को सूचना मिली थी कि हिडमा माडवी समेत शीर्ष माओवादी नेता और कमांडर कुरेर्गुट्टाल पहाड़ियों पर देखे गए हैं। मुठभेड़ में कुल 31 माओवादी मारे गए थे। सरकार का कहना है कि आपरेशन ब्लैक फारेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ने छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर नक्सलियों का अभेद्य गढ़ समझे जाने वाले कुरेर्गुट्टालू पहाड़ पर 21 दिन तक चली 21 मुठभेड़ों के बाद 16 महिला नक्सलियों समेत कुल 31 नक्सलियों के शव और 35 हथियार बरामद किए।
अब तक 28 नक्सलियों की शिनाख्त हो चुकी है, जिन पर कुल एक करोड़ 72 लाख रुपए के इनाम घोषित थे। 21 अप्रैल 2025 से 11 मई 2025 तक चले नक्सल विरोधी अभियान में संकेत मिले हैं कि मुठभेड़ स्थल से बरामद शव प्रतिबंधित, अवैध और नक्सलियों के सबसे मजबूत सशस्त्र संगठन पीएजीए बटालियन, सीआरसी कंपनी एवं तेलंगाना स्टेट कमेटी के कैडर के हो सकते हैं।
नक्सलियों के सबसे मजबूत सशस्त्र संगठन पीएलजीए बटालियन, सीआरसी कंपनी एवं तेलंगाना स्टेट कमेटी सहित अनेक शीर्ष चरमपंथियों की शरणस्थली सुकमा एवं बीजापुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में थी। इस क्षेत्र में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सुरक्षाबलों द्वारा अनेक नए सुरक्षा शिविरों की स्थापना की गई जिससे उनका प्रभुत्व बढ़ा और नक्सलियों ने एकीकृत कमान का गठन कर वहां से बीजापुर, छत्तीसगढ़ एवं मुलुगू, तेलंगाना की सीमा पर अभेद्य समझे जाने वाले कुरेर्गुट्टालू पहाड़ पर शरण ली। यह पहाड़ लगभग 60 किमी लंबा एवं पांच किमी से लेकर 20 किमी चौड़ा है, जिसकी भौगोलिक परिस्थिति बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण है। नक्सलियों ने ढाई वर्ष में इस क्षेत्र में अपना आधार तैयार किया।
यहां उनके लगभग 300-350 सशस्त्र कैडर सहित पीएलजीए बटालियन के तकनीकी विभाग और अन्य महत्त्वपूर्ण संगठनों ने शरण ले रखी थी। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पूर्ण एवं पुख्ता योजना तैयार कर छत्तीसगढ़ पुलिस एवं केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ने 21 अप्रैल, 2025 से एक व्यापक साझा अभियान शुरू किया। इस महत्त्वपूर्ण अभियान के दौरान विभिन्न आइईडी विस्फोटों में कोबरा, एसटीएफ और डीआरजी के कुल 18 जवान घायल हुए।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024 में नक्सल विरोधी अभियान को काफी कामयाबी मिली थी। वर्ष 2025 में भी सुरक्षाबलों के नक्सल विरोधी अभियानों के कारण चार महीने में 197 खतरनाक माओवादी मारे जा चुके हैं। वर्ष 2014 में जहां 35 जिले नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित थे, 2025 में यह संख्या घटकर छह रह गई है। इसी प्रकार नक्सलवाद प्रभावित जिले 126 से घटकर मात्र 18 रह गए हैं।
2014 में 76 जिलों के 330 थानों में 1080 नक्सली घटनाएं दर्ज की गईं थीं जबकि 2024 में 42 जिलों के सिर्फ 51 थानों में 374 घटनाएं ही हुईं। 2014 में 88 सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में शहीद हुए थे। 2024 में 19 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। मुठभेड़ों में मारे गए नक्सलियों की संख्या 63 से बढ़कर 2089 तक पहुंच गई है। वर्ष 2024 में 928 और 2025 के पहले चार महीनों में अब तक 718 नक्सली समर्पण कर चुके हैं।
1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ था नक्सल माओवाद
क्सली हिंसा भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक जटिल और लंबे समय से चली आ रही चुनौती है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण, जंगली और आदिवासी इलाकों में सक्रिय है। यह आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ था, जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने जमींदारों के खिलाफ किसान विद्रोह की अगुआई की थी। इस आंदोलन को माओवाद भी कहा जाता है, क्योंकि यह चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग के विचारों से प्रेरित है, जो ग्रामीण और किसान वर्ग को क्रांति का नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
नक्सलवाद की उत्पत्ति 1960 के दशक में हुई, जब पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ। 1968 में, कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (सीपीएमएल) का गठन हुआ। उसके बाद कई गुट में बंटकर कुछ कैडरों ने उग्रवाद का रास्ता पकड़ लिया। समय के साथ कई राज्यों, विशेष रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, ओड़ीशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र, में अपनी जड़ें जमा लीं। 2000 के दशक के मध्य में, नक्सलियों का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वे भारत के लगभग एक तिहाई हिस्से पर नियंत्रण रखते थे और उनकी संख्या 15,000-20,000 लड़ाकों के आसपास अनुमानित थी।