मेरे पास एक फोन आया कि अगर आपके पास फुर्सत हो तो आ जाइए। दुर्लभ पक्षी सैंड ग्राउज हरियाणा के एक क्षेत्र में देखा गया है। फोन था संजय शर्मा। वह हरियाणा के सुल्तानपुर पक्षी अभयारण्य के पास ही रहते हैं। उनको पक्षियों के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी है। अगले दिन मैं सुल्तानपुर पक्षी अभयारण्य के मुख्य द्वार के पास उनसे मिलूंगा, यह तय हुआ। सुबह सुबह मुझे रास्ता खाली मिला और मै तेजी से सुल्तानपुर पहुंच गया। वहां संजय मेरा इंतजार कर रहे थे।
कुछ दूर तक पक्की सड़क पर चलने के बाद संजय ने मुझे गाड़ी एक पगडंडी पर ले चलने को कहा। मैंने दो स्थानो से गाड़ी पगडंडी पर उतारने की कोशिश की, लेकिन रास्ता इतना खराब था कि मेरी गाड़ी वहां से नहीं उतर सकी। दो तीन किलोमीटर आगे जाकर हम खेतों के बीच से आगे बढ़ने लगे। वहां आधे घंटे तक खोजबीन के बाद हम जिसे खोज रहे थे वह पक्षी नहीं मिला तो संजय ने फिर एक बीहड़ रास्ते पर कार ले चलने को कहा। मैं उस रास्ते पर चल पड़ा जिस पर शायद ट्रैक्टर या ट्रक ही आते जाते रहे होंगे। हम धीरे धीरे आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्तों के दोनो ओर काफी झाडियां थीं जिनमें रह रहकर कोई पक्षी या जानवर दिखायी दे जाता। एक विचित्र प्रजाति का खरगोश दिखाई दिया। हमने उसकी तस्वीरें लीं, कुछ छोटे पक्षी भी मिले। हम अभी कुछ ही आगे बढे थे कि देखा दस-पंद्रह लोग झाड़ियों में कुछ खोजते हुए आगे जा रहे थे। उनमें से दो के हाथों में कुत्तों के गले में बंधी रस्सियां थीं, वे शिकारी कुत्ते थे। कुछ ने हाथों में डंडे ले रखे थे। वे झाड़ियों को डंडों से पीटते हुए चले जा रहे थे। संजय ने उनमें से एक से पूछा, क्या बात है, किसे खोज रहे हो? उत्तर जो मिला उससे हमारा मन दुखी हो गया। उसने बताया कि खरगोश का शिकार हो रहा है। ओह, इतने सुंदर जीव को ये मारने निकले हैं। मैंने संजय से पूछा भी कि क्या इन्हें रोकने का कोई उपाय नहीं है। संजय ने निराशा जाहिर की, इन्हें रोकने के लिए जब तक कोई आएगा, ये अपना काम करके गायब हो जाएंगे।
खेतों से होते हुए हम सूखे तालाब के पास पहुंचे। संजय ने पास की झाडियों में कुछ देर खोजबीन की। फिर अचानक वह आसमान की ओर देख कर बोले, ‘वो रहे सैंड ग्राउज।’ संजय ने उस स्थान को गौर से देखा जहां ग्राउज जमीन पर उतरे थे। हम कुछ कर पाते इसके पहले ही वे पक्षी वहां से उड़कर कुछ दूर जाकर बैठ गए। अचानक संजय ने मुझे इशारा किया कि मैं कार रोक दूं। फिर उन्होंने खिड़की से बाहर बिल्कुल पास में ही बैठे सैंड ग्राउज को दिखाया। हम दोनों बिना शोर मचाए उसकी तस्वीरें लेने लगे। संजय ने उस पक्षी का वीडियो भी बनाया। बहुत ही सुंदर पक्षी था। जब उसकी तस्वीरों से मन भर गया तो हम वहां से चल दिए। मन खुशी से भर गया था। ऐसा ही होता है जब किसी दुर्लभ पक्षी की सुंदर तस्वीरें मिल जाती हैं।
हम एक ताला के पास गए। तालाब पूरी तरह सूख गया था। संजय ने बताया कि यहां पानी रहता है तो यह पक्षियों से गुलजार रहता है, लेकिन आसपास के किसान और बड़े मवेशी यहां के पानी को खत्म कर देते हैं। पानी पीने के लिए छोटे पक्षी यहां वहां भटकते रहते हैं। कई बार पानी के बिना पक्षी मर भी जाते हैं। मुझे पानी वाले तालाब का महत्त्व बताने के लिए संजय वहां से लगभग सात आठ किलोमीटर अंदर खांटी ग्रामीण इलाके में ले गए। वहां का दृश्य शानदार था। करीब दो तीन बीघे जमीन पर पानी से भरा तालाब था। उसके भीतर और बाहर पक्षियों की भरमार थी। हालांकि, सर्दियों में ऐसे जलस्रोतों पर कई गुना पक्षियों का जमावड़ा रहता है, फिर भी इस भयानक गर्मी के बावजूद वहां सैकडों पक्षी मौजूद थे। हमने पक्षियों की खूब तस्वीरें अपने कैमरों में उतारी।
वापसी के समय संजय ने दो तीन सूखे तालाब दिखाए। उसने बताया कि ये तालाब पहले पानी से लबालब रहते थे पर पिछले कई सालों से ये गर्मियों में बिल्कुल सूख जाते हैं। पानी के बिना यहां के पक्षियों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कितने ही पक्षी हमेशा के लिए यहां से चले जाते हैं। खासकर छोटे पक्षियों को पानी न रहने का मतलब या तो जगह छोड़ो या अपनी जान दो। हमने एक सूखे तालाब को देखा। वहां कुछ निर्माण कार्य चल रहा था और पानी का एक टैंकर वहां खड़ा था। संजय ने दस पंद्रह बाल्टी पानी उस सूखे तालाब में डाला। तमाम पक्षी वहां आनन-फानन में पानी पीने उमड़ पड़े। उन पक्षियों में बुशचाट, लार्क, बैंक मैना, बेवलर, पिरनिया, छोटे बच्चों के साथ टिटहरियां आदि पानी पीने आने लगे। उन सभी पक्षियों को देखकर ही लग रहा था कि वे भयानक प्यास से जूझ रहे हैं। उन सबके मुंह खुले हुए थे। वे पानी पी पीकर लौट रहे थे। हमने उन पक्षियों की आराम से तस्वीरें लीं। मुझे इस बात की खुशी थी कि मुझे कई पक्षियों की तस्वीरें मिल गर्इं, पर मन रो रहा था कि यहां तो हमने पानी की व्यवस्था कर दी। और जितने भी सूखे तालाब हैं, वहां के आसपास के पक्षियों की क्या दशा हो रही होगी। वे पानी के लिए कहां जाते होंगे? पता चला कि यहां पानी बहुत महंगा मिलता है।
केवल सरकार ही यह व्यवस्था कर सकती है। मनुष्यों के प्यासे होने पर तो सरकारी गैरसरकारी संस्थाएं उनकी प्यास बुझाने में जुट जाती हैं, लेकिन परिंदों के लिए पानी कौन जुटाएगा।
उल्टे यह हो रहा है कि पक्षियों के आवास खत्म किए जा रहे हैं। किसी भी पक्षी अभयारण्य से अधिक पक्षी नजफगढ़ के वेटलैंड में आते हैं और जब गर्मियों में बाकी सारे पक्षी अभयारण्य सूने रहते थे। तब केवल पानी होने के कारण यह वेटलैंड पक्षियों से गुलजार रहता था। पिछले कुछ सालों से उनके आशियानों पर बिल्डरों की नजर लग चुकी है। जहां पक्षियों को आराम से गर्मियां बिताने में सहूलियत होती थी, वहीं बड़ी- बड़ी इमारतें तनने लगी हैं। यही नहीं वेटलैंड के किनारे जिन किसानों की खेती की जमीनें हैं बड़ी चतुराई से वे पहले मेड़ बांधकर पानी को घेर देते हैं और धीरे धीरे पानी जब सूख जाता है तो उसे अपना खेत बना लेते हैं। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। पक्षियों के चहचहाने की जगह फसलें बोई जाने लगी हैं। पर्यावरण के मित्र ये पक्षी अपना आशियाना खोने की हालत में जगह छोड़कर ही चले जाते हैं। आखिर कोई ऐसी सरकार हमारे देश में आएगी क्या, जो मनुष्यों के साथ इन परिंदों का भी उतना ही खयाल करे ताकि इनके वजूद को बचाया जा सके।
(सुरेश्वर त्रिपाठी)