स्त्री संघर्ष के साथ बढ़ी स्त्रीवादी विमर्श की दुनिया आज जागरूक होने के साथ कई मुद्दों पर खासी तार्किक भी है। इस जागरूकता के कारण स्त्री अस्मिता को लेकर एक नई पहल भी शुरू हुई है, जिसके तहत स्त्री को लैंगिक बहस से आगे समाज और रचना से जुड़े संवेदनात्मक मूल्यों के बीच देखने-परखने की कोशिश की जा रही है। इस पहल के कारण नए समय में हम कई ऐसी महिलाओं के बारे में नई जिज्ञासा के साथ जान-समझ रहे हैं जिन्होंने अतीत में अपने रचनात्मक क्रियाकलापों से अपने समय और समाज को बहुत गहरे तक प्रभावित किया था। मलयालम की प्रसिद्ध कवयित्री नालापत बालमणि अम्मा ऐसा ही एक नाम है, जिनको लेकर नए सिरे से शोध और विमर्श शुरू हुए हैं।
बालमणि अम्मा बीसवीं सदी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयत्रियों में थीं। उनकी रचनाएं एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं, जो न सिर्फ मलयालम में बल्कि तब की कई दूसरी भाषाओं में भी दुर्लभ थी। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त हस्ताक्षरों में से एक होने के कारण उन्हें ‘मलयालम साहित्य की अम्मा (दादी)’ भी कहा जाता है।
अम्मा ने पांच सौ से अधिक कविताएं लिखी हैं। उन्हें कुछ आलोचकों ने केरल की राष्ट्रवादी साहित्यकार के तौर पर भी देखा है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय उद्बोधन वाली कविताओं की रचना ज्यादा की है। पर यही उनके साहित्य का एकल या प्रमुख स्वर है, ऐसा नहीं है। अम्मा की कविताओं में वात्सल्य, ममता, मानवता के अन्य दूसरे कोमल भाव भी हैं। हां, यह जरूर है कि उनकी ज्यादातर कविताएं एक प्रखरता का बोध लिए हुई हैं। अम्मा के दौर को देखें तो उनकी काव्य चेतना में आई इस प्रखरता को बखूबी समझा जा सकता है।
दरअसल, कविता का उनका पक्ष अंग्रेजी हुकूमत के विरोध के साथ राष्ट्रीय जागरण का पक्ष था। खासतौर पर पांच दशक से भी लंबे लेखकीय जीवन में 1929-39 के बीच लिखी उनकी कविताओं में देशभक्ति, महात्मा गांधी का प्रभाव और स्वाधीनता की चाह साफ तौर पर जाहिर होती है। इसके बाद भी उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहीं और उन्होंने कई काव्यात्मक प्रयोग भी किए तथापि उनकी पहचान और लोकप्रियता राष्ट्रीय भावबोध की कविताओं के कारण ही ज्यादा रही।
अम्मा हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो इससे पहले सिर्फ संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है।
वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। पति वीएम नायर के साथ मिलकर उन्होंने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया। अम्मा मलयालम भाषा के प्रखर लेखक एन नारायण मेनन की भांजी थीं। उनसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा और उनकी लिखी पुस्तकों का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था। अंग्रेजी भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास उनकी सुपुत्री थीं, जिनके लेखन पर उनका प्रभाव साफ-साफ देखा जा सकता है।
अम्मा को मलयालम साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार तो मिले ही, साहित्य अकादमी पुरस्कार और सरस्वती सम्मान भी प्राप्त हुए। उनकी साहित्यिक सेवाओं को समादृत करते हुए 1987 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया।