पहली बार ऐसा लगने लगा है कि ‘खान मार्किट गैंग’ के अलावा नरेंद्र मोदी के आलोचक और भी हैं। पहली बार ऐसा लगने लगा है कि प्रधानमंत्री का रिश्ता आम लोगों से इतना मजबूत नहीं है, जितना सोशल मीडिया पर हल्ला मचाने वाले उनके लाखों भक्त दिन-रात साबित करने का प्रयास करते रहते हैं। थोड़ी-सी अगर कोई आलोचना करने की हिम्मत दिखाता है मोदी की, या उनकी किसी नीति की, तो भक्तों की फौज टूट पड़ती है उस पर, जैसे उसने कोई अपराध किया हो। इस बात को मैं जानती हूं अच्छी तरह, इसलिए कि मेरे साथ बहुत बार हुआ है। पिछले सप्ताह ट्विटर पर खूब गालियां खाईं, क्योंकि मैंने ट्वीट करके कहा था कि किसानों का आक्रोश देख कर ऐसा लगता है कि उनकी सलाह लिए बिना कृषि कानून बनाए गए हैं।

फौरन एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने ट्वीट किया कि कृषि क्षेत्र में सुधार लाने की बात चालीस साल से चल रही है, अब चर्चा क्यों हो। इसके बाद कई बुद्धिजीवी ऐसे पीछे पड़े मेरे, जैसे मैंने कोई बहुत बड़ा अपराध किया हो। चर्चा कुछ इस तरह हुई। तुम होती कौन हो कुछ बोलने वाली। तुमको क्या पता है किसानों के हाल का। मैंने जब कहा कि मैंने अपना बचपन अपने पिता के फार्म पर गुजारा था और मेरे भाई किसान हैं, तो भारतीय जनता पार्टी की पूरी ट्रोल सेना पीछे पड़ गई मेरे। कहने का मतलब यह है मेरा कि अगर किसानों का आंदोलन इतना लंबा चला है तो इसलिए कि प्रधानमंत्री के कानों तक उनकी शिकायतें पहुंचने नहीं दे रहे हैं उनके भक्त।

उनके अपने ही भक्तों ने उनको बहरा कर दिया है। अब किसानों का गुस्सा इतना ज्यादा है कि पहली बार नाम लेकर मोदी को गाली दे रहे हैं। अमित शाह ने जब उनको बुराड़ी मैदान में बुला कर बातचीत के लिए आमंत्रित किया था, तो उनका जवाब टीवी पत्रकारों के सामने था, ‘मोदी-शाह इतने झूठे बंदे हैं कि उनकी बातों पर हम भरोसा नहीं कर सकते हैं।’ मीडिया को भी नहीं बख्शा गया। ‘गोदी मीडिया’ कह कर टीवी पत्रकारों को भगा दिया गया।

यह सब जब चल रहा था तो प्रधानमंत्री वाराणसी पहुंचे देव दीपावली मनाने। दिन भर उन्ही ‘गोदी मीडिया’ चैनलों के पत्रकारों ने उनकी तस्वीरें दिखाई। विश्वनाथ मंदिर में पूजा करते हुए। क्रूज बोट पर चढ़ कर गंगाजी पर चलते हुए। देव दीपावली का पहला दीप जलाते हुए और बाद में उसी बोट से लेजर शो का मजा लेते हुए और अंत में गंगा तट पर एकत्रित लोगों को संबोधित करते हुए। जो ‘गोदी’ पत्रकार थे, उन्होंने अपनी पत्रकारिता में इतनी प्रशंसा मिलाई कि भक्त ज्यादा और पत्रकार कम दिखे।

रही बात गृहमंत्री की, तो वे भी दिल्ली से दूर हैदराबाद में थे, जहां उन्होंने वादा किया कि हैदराबाद की ‘निजामी-नवाबी’ संस्कृति मिटाने आए हैं।

इतने में पंजाब के किसानों का साथ देने अन्य राज्यों से भी किसानों के झुंड दिल्ली की सीमाओं पर आने लगे। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान से आने लगे किसान और आखिर में भारत सरकार को झुकना पड़ा और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया है अब। हो सकता है बातचीत के जरिए सुलह हो जाए, लेकिन इस आंदोलन में एक खास संदेश है मोदी के लिए। प्रधानमंत्रीजी आप बहुत दूर हो चुके हैं आम लोगों से। इतनी दूर हो गए हैं कि आपके कानों तक पहुंचती हैं सिर्फ आपके भक्तों की बातें। इसमें खतरा लोकतंत्र को तो है ही, लेकिन इससे भी ज्यादा खतरा आपको है।

आप तक जमीनी हकीकत अब पहुंचनी बिल्कुल बंद हो गई है, क्योंकि एक ऐसा माहौल बन गया है आपके इर्द-गिर्द कि कोई आपको सच बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता है। ऐसा होते मैंने एक बार पहले भी देखा है और वह था इंदिरा गांधी के साथ इमरजेंसी के दौरान। उनको शायद पहली बार जमीनी यथार्थ का पता तब चला जब 1977 वाले चुनावों में न सिर्फ वे खुद हारीं राय बरेली से, उनके बेटे संजय भी हारे अमेठी से। बाद में जब उनसे पूछा गया कि उनको अपने हारने का सबसे बड़ा कारण क्या लगता है, तो उन्होंने कहा कि प्रेस पर सेंसरशिप लगाना सबसे बड़ी गलती थी।

मोदी के साथ कुछ ऐसा ही होने लगा है। प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाते नहीं हैं और सिर्फ उन पत्रकारों से मिलते हैं, जो अपनी भक्ति साबित कर चुके हैं। ऊपर से मोदी के भक्त सोशल मीडिया पर इतना हावी हैं कि आलोचकों को राष्ट्रद्रोही और पाकिस्तानी कहा जाता है रोज। सुनियोजित तरीके से ट्रोल सेना करती है यह काम।

सो, सोशल मीडिया पर यथार्थ नहीं दिखेगा, न मोदी को और न उनको जो उनकी तरफ से सोशल मीडिया पर निगरानी रखते हैं। ऊपर से है इस महामारी के कारण सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत। सो, मार्च के बाद प्रधानमंत्री शायद ही कोई तीन-चार बार प्रधानमंत्री निवास के बाहर निकले हैं। अब किसानों ने याद दिलाया है कि कितनी दूर हो गए हैं प्रधानमंत्री जमीन से।

ऐसा नहीं कि किसान सही हैं और मोदी सरकार के कृषि सुधार कानून गलत। हो सकता है कि इन सुधारों की जरूरत हो और आखिरकार फायदा होगा किसानों का, लेकिन जब मैंने मोदी के कुछ करीबियों से पूछा कि किसानों के साथ संपर्क करने में इतना विलंब क्यों हुआ, तो जवाब मिला कि पहले तो उनको लगा कि कोई समस्या ही नहीं है। फिर लगा कि पंजाब में किसानों को कांग्रेस सरकार उकसा रही है भारत सरकर के खिलाफ। बाद में जब बात समझ में आई तो इतने किसान चल पड़े थे दिल्ली की तरफ कि उनको हरियाणा में ऐसे रोकना पड़ा जैसे देश के दुश्मन आ रहे हों, देश के अन्नदाता नहीं। गलती पर गलतियां होती गईं।