सिर्फ सात दिन पहले तक हमारे एंकरों के जरिए हमारी ‘इम्यूनिटी’ यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली एक से एक उत्तम कोटि की जड़ी-बूटी बेचे जा रहे थे! एक शाम चैनल पर डाबर के साथ टाउन में एक एंकर दो-तीन आयुर्वेद विशेषज्ञ अंग्रेजी वालों को तुलसी, हल्दी, अदरक, अश्वगंधा, आंवला, गिलोय आदि के माहात्म्य बताते रहे कि ये चीजें खाने रोग प्रतिरोधक क्षमता तगड़ी हो जाती है और आप संक्रमण से बच सकते हैं।
कोई तुलसी, गिलोय का एक क्रम बनाता तो दूसरा अदरक से शुरू कर आंवले पर खतम कर देता। कई कंपनियों के ब्रांड बीच-बीच में लहराते रहते फिर आगे-पीछे विज्ञापन नए-नए आयुर्वेदिक ब्रांड बेचते रहते। हम तो देख-दख कर ही ‘इम्यून’ होते रहते!
ये था विशेषज्ञों की अंग्रेजी का जादू कि इम्यूनिटी बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों के बारे में भी ऐसे बताया जाता कि सीधे अमेरिका से आ रही है, जिनका नाम सुनते ही कोरोना भागा जा रहा है!
लेकिन एक सुबह सुशांत सिंह राजपूत की ‘आत्महत्या’ की खबर ने चैनलों को अचानक गमगीन कर दिया कि वे तीन दिन तक शोक मनाते रहे और सुशांत की मौत के लिए बॉलीवुड में हावी भाई-भतीजावाद क्लब संस्कृति, दरबारी संस्कृति, आभिजात्य संस्कृति और बड़े लोगों की माफियागीरी को जिम्मेदार ठहराते रहे! सब अपने कल्पित खलों को कोसते, लेकिन इतने बहादुर कि नाम किसी का न लेते। बॉलीवुड की दरबारी संस्कृति पर बड़े-बड़े नाम आते, दस मिनट कोसते, लेकिन नाम किसी का न लगाते।
शोक के बहाने कोसने के गीत गाए जाते रहे। कंगना रनौत ने यहां भी बाजी मारी और ‘दरबारी संस्कृति’ के किसी सरगना का नाम लिए बिना सुशांत को सबसे बड़ा ‘विक्टिम’ बताया। उसके बाद तो मनोविश्लेषक आकर बॉलीवुड में बेरोजगार नए अभिनेता-अभिनेत्रियों के अकेलेपन और अवसाद पर चिंतन करने लगे। एंकर भी बिना नाम लिए ‘दरबारी संस्कृति’ पर अपना क्रोध न्योछावर करते रहे।
कोई कहता कि छोटी जगह से आया यह हीरो कमाल का था, लेकिन सात फिल्में उनसे छीन ली गईं और जिस ‘पानी’ के लिए उसने एक साल अपना खून-पसीना बहाया, उसे भी बंद कर दिया गया! सुशांत अवसाद में डूब गया और अपनी जान की कीमत दे गया। फिर अगली शाम अंत्येष्टि के साथ ही इस शोक की भी अंत्येष्टि हो गई!
इस बीच कोरोना की कहानी बढ़ते आंकड़ों से डराती रही। कुछ पराक्रमी चैनल ‘कोरोना हारेगा, भारत जीतेगा’ जैसी टैग लाइनें लगा कर आश्वस्त करते रहे। फिर गृहमंत्री द्वारा दिल्ली में कोरोना की रोकथाम के लिए विशेष बैठक की खबर आई और मामला गृहमंत्री के हवाले हो गया।
इस शाम कोरोना संक्रमण की बहसों में ‘आप’ और ‘भाजपा’ के दो अखाड़िए प्रवक्ता अचानक इतने शरीफ नजर आए कि आखों पर यकीन न हुआ। कल तक जो एक दूसरे को बोलने तक न देते थे, वे ‘पहले आप पहले आप’ कहते दिखते रहे।
लेकिन भद्रता का यह नाटक एक शाम का ही मेहमान रहा, क्योंकि अगली शाम चीन के द्वारा रात के वक्त घात लगा कर गलवान घाटी में एक भारतीय अफसर समेत बीस सैनिकों को लोहे की रॉड और कांटेदार तार वाले कुंदों से मार कर सीमा का बातचीत की कहानी को ‘चीन से बदला लेने’ की कहानी में बदल दिया।
इस हमले की खबरें जनता को हिलाने वाली रहीं। एंकरों विशेषज्ञों की आवाज में अचरज और गुस्सा बरसता। एक गोली चली नहीं और उन्होंने हमारे बीस मार दिए। कैसे?
इसके बाद की खबरों और बहसों में एक ओर देशभक्ति के दावे होते, दूसरी ओर चीन की धोखेबाजी को लेकर क्षोभ बरसता। इस क्षोभ का एक हिस्सा अपनी सरकार पर, अपने नेताओं पर भी बरसता। टीवी स्क्रीनों पर शी जिनपिंग के आगमन उनकी झूला-लीला आदि के दृश्य चैनल लगाते रहे और प्रकारांतर से अपनी चीनी नीति पर टीका करते रहे।
कुछ कहते कि पाकिस्तान को घर में घुस कर मारने वालों के घर में चीन कैसे मारने आ गया? सरकार जबाव दे? कई पूर्व सैनिक अफसर गरजते-बरसते रहे कि इस हमले का मुहतोड़ जबाव देना जरूरी है। सरकारी प्रवक्ता बच-बच कर बोलते रहे। विदेश मंत्रालय का वक्तव्य भी रक्षात्मक और नरम नजर आया! यहीं ‘छप्पन इंच की छाती’ पर उदित राज ने कटाक्ष किया! लेकिन सर्वत्र एक ही सवाल तैरता रहा कि चीन ऐसा कैसे कर सका? हम क्या कर रहे थे? हमारे हथियार कहां थे?
फिर भी चैनल हिम्मत बढ़ाने वाली बातें लगातार बताते रहे- ‘चाइना मस्ट पे! यह1962 का भारत नहीं है! यह मोदी सबसे बड़ा टेस्ट है! चीनी मीडिया भारत को ही घुसपैठ करने वाला बता रहा है! चीन झूठा है! चाइना गेट आउट! हम बदला लेकर रहेंगे! हम मुंहतोड़ जबाव देंगे’ आदि।
इधर शहीदों के शोक का माहौल, उधर राहुल गांधी का प्रधानमंत्री पर ट्वीट-कटाक्ष! बस फिर क्या था? शाम होते-होते तीन-तीन चैनलों पर चीन को ठोकने की जगह एंकर राहुल को कोसने लगे।
हताश करने वाली तमाम बातों के बीच सिर्फ इन दो खबरों ने तसल्ली दी कि जबावी कार्रवाई में उस रात हमारे सैनिकों ने भी चीन के साठ सैनिकों को मारा है और जब प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे सैनिक ‘मारते मारते मरे’ हैं।
हमारे एंकर भी बिना सोचे-समझे ऐसी लाइन लेते हैं कि हंसी आती है। जैसे कई चैनल अरसे से चीनी सामान के बहिष्कार की लाइन देते रहते हैं, लेकिन अगले ही पल वही चैनल जब चीनी ब्रांड लैपटॉप और मोबाइलों के विज्ञापन देकर बेचने लगते हैं तो एंकरों की बहिष्कार-वीरता पर ही संदेह होता है।
