येति मिल गया है। हां, उसके साक्षात दर्शन तो अभी नहीं हुए हैं, पर उसके चरण चिह्न भारतीय सेना के सौजन्य से जरूर उपलब्ध हो गए हैं। सेना की तरफ से हाल ही में एक ट्वीट जारी की गई थी, जिसमें इस मिथक मानव के कदमों के निशान दूर तक तस्वीरों में देखे जा सकते हैं। सेना का कहना था कि उसका एक पर्वतारोही दल मकालू शृंखला पर लगभग साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर था, जब उसे अचानक इस भीमकाय आदि मानव के पैरों के निशान बर्फ पर अंकित मिले थे। सेना के दल ने इनकी फोटो तो ली ही, साथ-साथ पैरों की पूरी माप-तोल भी कर ली थी।

ट्वीट के आते ही सब तरफ सनसनी फैल गई। फैलती भी क्यों न? येति अपने में एक बड़ा ही रोचक जीव है, जिसकी खोज पिछली दो सदियों से बड़े जोर-शोर से चल रही है। इस हिममानव का जिक्र बहुत सारी नेपाली और तिब्बती किस्सों-कहानियों में भी आता है। चूंकि पदचिह्न सेना ने जारी किए थे, इसलिए ट्विटर पर राष्ट्रवादी ताकतों ने उसको बेहद गंभीरता से लिया। उनके मुताबिक येति को अब मिला ही मान लेना चाहिए। एक साहब ने तो यहां तक कह डाला कि उनकी आस्था के अनुसार येति और कोई नहीं, बल्कि महाबली हनुमान स्वयं हैं। हनुमान चिरायु हैं- वे सतयुग में भी थे, द्वापर में भी और त्रेता में भी। कलयुग में उनका प्रभाव सबसे अधिक है। वे जीवित हैं और दूर हिमालय की कंदराओं में मानव कल्याण के लिए तपस्या करने में लीन हैं। और चूंकि हनुमानजी शक्ति का प्रतीक हैं, इसीलिए उनके होने के प्रमाण सेना को मिलना स्वाभाविक ही था। उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि नेपाल सेना ने हमारे दावे को सिरे से काट दिया। उनके मुताबिक फोटो में दिख रहे पदचिह्न उन इलाकों में आमतौर पर पाए जाने वाले भालू के हैं।

वैसे येति, जिसे अंग्रेजी में अबोमिनेबल स्नोमैन (घृणित हिममानव) भी कहा जाता है, का किस्सा काफी पुराना है और रोचक भी। माना जाता है कि वह एक पौराणिक प्राणी और एक वानर जैसा क्रिप्टेड है, जो कथित तौर पर नेपाल और तिब्बत के हिमालय क्षेत्र में निवास करता है। उसके लिए येति और मेह-तेह नामों का उपयोग आमतौर पर क्षेत्र के मूल निवासी करते हैं, और यह उनके इतिहास और पौराणिक कथाओं का हिस्सा है। यह उत्तरी अमेरिका के बिग फुट किंवदंती की तरह माना जाता रहा है।  ‘घृणित हिममानव’ पद को 1921 तक नहीं गढ़ा गया था। उस वर्ष लेफ्टिनेंट कर्नल चार्ल्स हॉवर्ड-बरी ने अल्पाइन क्लब और रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी के संयुक्त एवरेस्ट रिकॉनिसन्स एक्सपिडिशन (एवरेस्ट टोही अभियान) का नेतृत्व किया था, जिसका वृत्तांत उन्होंने ‘माउंट एवरेस्ट द रिकॉनिसन्स’, 1921 में लिखा था। इस पुस्तक में हॉवर्ड-बरी इक्कीस हजार फीट में ल्हाक्पा-ला को पार करने का एक विवरण शामिल करते हैं, जहां उन्हें कुछ ऐसे पदचिह्न मिले, जिन्हें देख कर उनके शेरपा पथप्रदर्शकों ने उन्हें तुरंत बताया था कि ये निशान ‘बर्फों के जंगली मानव’ के हैं, जिन्हें वे मेतोह-कांगमी कहते हैं। मेतोह का अनुवाद मानव-भालू है और कांग-मी का मतलब हिममानव है।

‘घृणित हिममानव’ शब्द की उत्पत्ति निश्चय ही रंगीन है। इसकी शुरुआत तब हुई, जब हेनरी न्यूमैन, जो किम उपनाम से कोलकाता के द स्टेट्समैन अखबार में लिखते थे, ने दार्जिलिंग लौटने पर एवरेस्ट रिकॉनिसन्स एक्सपिडिशन के कुलियों का साक्षात्कार लिया था। न्यूमैन ने शायद कलात्मक अनुज्ञप्ति के कारण ‘घृणित’ शब्द की जगह ‘मेतोह’ शब्द को ‘घिनौने’ या ‘गंदे’ शब्दार्थों के रूप में गलत अनुवाद किया था। जैसा कि लेखक बिल टिलमैन वर्णन करते हैं, ‘न्यूमैन ने लंबे अरसे बाद द टाइम्स के लिए एक पत्र में लिखा : पूरी कहानी एक ऐसी आनंदमय रचना लगी कि मैंने इसे एक या दो समाचारपत्रों को भेज दिया।’ साफ है कि न्यूमैन ने शेरपाओं की कहानियों में नमक-मिर्च लगा कर अपनी लेखनी चमकाने के लिए घृणित हिममानव रच डाला था। बीसवीं सदी के दौरान खबरों की आवृत्ति में वृद्धि हुई, जब पश्चिम वासियों ने इसके बारे में कई पर्वतों की खाक छाननी शुरू कर दी और समय-समय पर अजीबोगरीब प्राणियों या अजीब तरह के पदचिह्नों को देखने की सूचना दी। 1925 में एनए टोंबाजी, जो एक फोटोग्राफर और रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी के सदस्य थे, एक मिनट तक जेमू ग्लेशियर के पास एक प्राणी को देखा था। ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि उसकी कद-काठी बिल्कुल एक इंसान की तरह थी, जो सीधा चल रहा था और कुछ बौनी बुरुश झाड़ियों को तोड़ने के लिए कभी-कभी बीच-बीच में रुक रहा था। यह बर्फ की तुलना में काला दिखाई दिया और जहां तक मैं समझ सकता था, इसने कपड़े नहीं पहने थे।’

येति के प्रति पश्चिमी लोगों की रुचि में 1950 के दशक में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई थी। 1951 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास करते समय एरिक शिप्टन ने सागर तल से लगभग बीस हजार फीट ऊपर बर्फ में अनगिनत बड़े-बड़े निशानों की तस्वीरें ली थी। 1953 में सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के समय बड़े-बड़े पदचिह्नों को देखने की खबर दी थी। 19 मार्च, 1954 को डेली मेल में एक लेख छपा था, जिसमें कथित तौर पर अभियान दलों द्वारा पैंगबोचे मठ में पाए गए येति की खोपड़ी की खाल से बालों के नमूने प्राप्त करने का वर्णन था। नमूनों का वैज्ञानिक विश्लेषण भी हुआ था, पर वे किस प्राणी के बाल हैं, पता नहीं चल पाया था। 1970 में ब्रिटिश पर्वतारोही डॉन ह्विलंस ने अन्नपूर्णा पर चढ़ते समय एक प्राणी को देखने का दावा किया। ह्विलंस के मुताबिक, एक शिविर-स्थल की खोज करते समय उन्होंने कुछ अजीब-सी आवाजें सुनीं, जिसे उनके शेरपा पथप्रदर्शक ने येति की आवाज बताया था। उस रात उन्होंने अपने शिविर के पास एक काली आकृति को घूमते हुए देखा था। अगले दिन, उन्होंने बर्फ में कुछ मानव जैसे पदचिह्न देखे और उस शाम, उन्होंने दूरबीन से बीस मिनट तक एक दो पैरों वाले वानर जैसे दिखने वाले प्राणी को देखा था, जो जाहिर तौर पर उनके शिविर से कुछ दूरी पर भोजन की तलाश में था।

वर्ष 2007 के दिसंबर के आरंभ में अमेरिकी टीवी प्रस्तुतकर्ता जोशुआ गेट्स और उनकी टीम ने नेपाल के एवरेस्ट क्षेत्र में पदचिह्नों की एक शृंखला ढूंढ़ने की खबर दी, जो येति के विवरण जैसा था। इन पदचिह्नों की जांच इडाहो स्टेट यूनिवर्सिटी ने की, जिन्हें विश्वास था कि वे आकृति विज्ञान की दृष्टि से इतने सटीक थे कि उन्हें नकली या मानव निर्मित नहीं कहा जा सकता था। उसके बाद भूटान यात्रा के दौरान गेट्स की टीम को एक पेड़ पर बालों का एक नमूना मिला, जिसका परीक्षण करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि बाल किसी अज्ञात नर वानर के थे। कुछ वैज्ञानिकों का अंदाजा है कि ये कथित प्राणी विलुप्त दैत्याकार वानर जाइगनटोपिथेकस के आधुनिक नमूने हो सकते हैं। येति को आमतौर पर द्विपाद के रूप में वर्णित किया जाता है, पर अधिकतर वैज्ञानिकों का विश्वास है कि जाइगनटोपिथेकस चौपाया था। कभी-कभी वह कुछ देर के लिए दो पैरों पर खड़ा हो जाता था। वह विशाल भी था और येति के वर्णन से मिलता-जुलता है। नए फोटो की जांच के लिए भारत को अब युद्ध स्तर पर अभियान छेड़ना चाहिए।