प्रधानमंत्री का सबसे पसंदीदा मंत्र है ‘न्यू इंडिया में सब कुछ अलग है’। उनका शायद ही कोई भाषण होगा, जिसमें इस बात को किसी न किसी तरह कह डालते हैं। वे याद दिलाना नहीं भूलते हैं कि ‘न्यू इंडिया’ का जन्म हुआ था 2014 में। उस साल से पहले सड़कें बनती थीं घटिया किस्म की। उस साल से पहले आम भारतीय के पास बैंक खाते नहीं होते थे। उस साल से पहले ग्रामीण लोगों के घरों में शौचालय नहीं होते थे। उस साल से पहले ट्रेन सेवाएं रद्दी होती थीं, क्योंकि हर चीज में राजनीति थी। उस साल से पहले नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री नहीं थे।

उस ‘ओल्ड इंडिया’ में इस फिल्म को बहुत बार देखा था

मुझे उनकी ये सारी बातें बहुत याद आईं पिछले सप्ताह जब चैनलों को बदलते-बदलते ‘प्यासा’ फिल्म टीवी पर देखने को मिली। उस पुराने भारत में यह फिल्म बहुत चली थी। मुझे याद है कि मैंने उस ‘ओल्ड इंडिया’ में इस फिल्म को बहुत बार देखा था, इसलिए कि इसके गाने बहुत अच्छे लगते थे और कहानी भी। आपमें से जो लोग ‘न्यू इंडिया’ के हैं और जिन्होंने कभी उन फिल्मों को नहीं देखा है जो ‘टेक्नीकलर’ से पहले बनी थीं, उनके लिए संक्षिप्त में।

इसकी कहानी एक गरीब शायर की है जो दुखी है, क्योंकि उसकी महबूबा ने उसको छोड़ कर एक अमीर आदमी से शादी कर ली है। लेकिन ‘प्यासा’ को सालों बाद देख कर ऐसा लगा कि ‘न्यू इंडिया’ में ऐसी कई चीजें हैं जो बदली नहीं हैं। मोदी ने एक और मंत्र दिया है देश को, जो है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’। अच्छा नारा है, लेकिन नारा ही है।

यथार्थ में तब्दील हो गया होता तो जंतर मंतर पर उन बेटियों की शिकायतें सुनने वाला जरूर कोई होता दिल्ली की आला राजनीतिक गलियारों में। मामूली बेटियां नहीं हैं। ये नायिकाएं हैं खेलकूद के मैदान की। इनमें वे भी हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय खेलों में देश के लिए पदक जीते हैं पहलवानी में। इनकी शिकायत है कि जिस व्यक्ति को इन्होंने गुरु माना था, उसने उनका यौन शोषण किया है।

इनके गुरुजी भी मामूली आदमी नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं उत्तर प्रदेश से, इसलिए इन बेटियों की आवाज से ज्यादा बल है उसकी आवाज में। इसलिए पुलिस प्राथमिकी लिखने को भी तैयार नहीं थी। बेटियों का सम्मान बेटों से कम होता था उस ‘पुराने इंडिया’ में भी। बेटियां न तब बचती थीं और न ‘न्यू इंडिया’ में ज्यादा सुरक्षित हैं।

‘प्यासा’ फिल्म का एक गाना है, जिसने मुझे बचपन में इतना प्रभावित किया था कि शायद पहला गाना था जो मुझे जबानी याद हुआ था। गाना क्या, नज्म है साहिर लुधियानवी की, जिसका उन्वान है ‘चकले’। इसमें खूबसूरत शब्दों में साहिर ने मुंबई के कोठों का हाल बयान किया है। आज भी वही हाल है उन कोठों का। कुछ साल पहले मुंबई के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मदद से मैंने छोटी बच्चियों की तस्करी पर एक टीवी कार्यक्रम किया था और उन कोठों में छोटी बच्चियों को देख कर रोना भी आया और साहिर के ये शब्द भी याद आए। ‘ये मसली हुई अध-खुली जर्द कलियां, ये बिकती हुई खोखली रंगरलियां’।

शर्मिंदा होकर हमको स्वीकार करना पड़ेगा कि ‘न्यू इंडिया’ में आज भी छोटी बच्चियों को ख़रीदा और बेचा जाता है। अक्सर ये बच्चियां गरीब, ग्रामीण परिवारों से अगवा करके लाई जाती हैं और जिन दरिंदों का ये कारोबार है, उनको कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि पुलिसवाले इनका साथ देते हैं। समस्या सिर्फ उन बेटियों की नहीं है, जो कोठों पर बेची जाती हैं। इस बात को याद दिलाया है उन बेटियों ने जिन्होंने जंतर मंतर पर अपना विरोध प्रदर्शन किया है। समझना मुश्किल है कि उनकी आवाज संसद तक क्यों नहीं पहुंची।

इतना जरूर कहा जा सकता है कि जब तक भारत की बेटियों को बचाने और पढ़ाने का काम बड़े पैमाने पर नहीं होता है, तब तक ‘न्यू इंडिया’ और ‘ओल्ड इंडिया’ में फर्क ज्यादा नहीं दिखेगा। कड़वा सच यह है कि बच्चियों का यौन शोषण भारत में सबसे ज्यादा होता है। छोटी उम्र में सबसे ज्यादा बच्चियों की शादियां भारत में होती हैं। ग्रामीण भारत में बेटियों को स्कूल भेजा जाए तो बड़ी बात है। अनुमान लगाया जाता है कि भारत में हर दिन सौ से ज्यादा बलात्कार होते हैं। शर्मनाक हैं ये आंकड़े।

निर्भया के घिनौने बलात्कार और हत्या पर भारतीय जनता पार्टी की जिन महिला सांसदों ने घड़ियाली आंसू बहाए थे और दिल्ली की कांग्रेस सरकार को शर्मसार किया था, वही महिलाएं बिल्कुल चुप थीं, जब हाथरस में उस दलित बेटी के खिलाफ दरिंदगी हुई थी। अस्पताल में तड़प-तड़प के मरने से पहले उसने बलात्कारियों के नाम लिखवाए थे, लेकिन क्योंकि ये दरिंदे ठाकुर परिवारों के थे, पुलिस ने आधी रात को उसकी लाश को बिना अंतिम संस्कार किए जला दिया था, ताकि सारे सबूत भी भस्म हो जाएं। उस बच्ची का परिवार अभी तक पुलिस की सुरक्षा में रहता है।

कैसा ‘न्यू इंडिया’ है, जिसमें देश की बेटियों का ये हाल हो? बहुत कुछ और है नए भारत में जिसको बदलना बहुत जरूरी है, लेकिन जंतर मंतर पर प्रदर्शन करती उन बेटियों ने हमको याद दिलाया है कि अगर बलवान, पढ़ी-लिखी बच्चियों की आवाज भी संसद में नहीं सुनाई देती तो ‘न्यू इंडिया’ में कुछ नहीं बदला है। प्रधानमंत्री जी, अगर आपके ही सांसद के खिलाफ कार्यवाही की यह स्थिति है तो क्या यह सबूत नहीं है कि आपके ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ वाले नारे को आप ही के लोग रद्दी की टोकरी में फेंकने का काम कर रहे हैं। कैसे बनेगा आपका न्यू इंडिया?