कहते हैं कि राजनेता सत्ता में लंबे समय तक रहने के बाद हकीकत से दूर हो जाते हैं। क्या कुछ ऐसा होने लगा है नरेंद्र मोदी के साथ? ऐसा मुझे लगा उनके उस भाषण को सुनते हुए, जो उन्होंने छोटी दिवाली के दिन दिया था सरदार पटेल को श्रद्धांजलि पेश करते हुए। भाषण जरूरत से ज्यादा लंबा था, लेकिन मैंने उसको पूरा सुना, इस उम्मीद से कि कुछ नई बात कहेंगे प्रधानमंत्री। नई बात तो उन्होंने कही नहीं, लेकिन पूरे भाषण का मुख्य संदेश यही था कि भारत में अब भाईचारा और एकता इतनी मजबूत है, जैसे पहले कभी नहीं थी।

मुसलमानों का बीजेपी पर कम हो रहा भरोसा

इस बात को सुनकर मैं हैरान रह गई। क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि जितनी गहरी खाई बन गई है हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, पहले कभी नहीं थी? क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि इस देश के मुसलमान अपने आप को दूसरे दर्जे के नागरिक महसूस करने लगे हैं? क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि मुसलमानों को अब बिल्कुल उन पर भरोसा नहीं रहा? उनका ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ वाला नारा खोखला लगता है। शायद नहीं जानते होंगे ये सारी बातें इसलिए कि उनके आसपास न मुसलिम मंत्री हैं, न मुसलिम बुद्धिजीवी और न मुसलिम दोस्त।

पुराने हिंदुस्तान में अपना तकरीबन पूरा जीवन गुजारने के नाते मैं जानती हूं अच्छी तरह कि उस जमाने में खामियां जरूर बहुत सारी थीं, लेकिन भाईचारे की कमी नहीं थी। याद हैं मुझे उस दौर के त्योहार, जब दिवाली, ईद और होली हिंदू और मुसलमान एक साथ मनाया करते थे। आज ऐसा नहीं है और वह इसलिए कि हर दूसरे तीसरे दिन भारतीय जनता पार्टी का कोई आला नेता कुछ न कुछ ऐसी बात कह डालता है, जिससे मुसलमानों को लगे कि एक बार फिर उनको निशाना बनाया जा रहा है। हाल में योगी आदित्यनाथ ने जब कहा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ तो उसका मतलब साफ समझ में आया मुसलमानों को। योगी के इस बयान के बाद जब कई सारे हिंदुत्व मानसिकता वाले नेताओं ने इस बात को दोहराना शुरू किया, तो संदेश और भी स्पष्ट होने लगा मुसलमानों के लिए।

ऐसा कह रही हूं मैं अपने कुछ मुसलिम दोस्तों से बातें करने के बाद। योगी के बयान के बाद मेरी लंबी बातचीत हुई एक पुराने मुसलिम दोस्त के साथ और जब मैंने उससे पूछा कि क्या असुरक्षित महसूस कर रहे हैं अपने आप को मुसलमान, तो उसका जवाब था- ‘हम जैसे लोग तो ठीक हैं, इसलिए कि हम रहते हैं उन बस्तियों में जहां पढ़े-लिखे लोग रहते हैं, लेकिन मेरी जब भी बात होती है किसी मुसलिम कारीगर से या किसी मजदूर से, तो मुझे समझ में आता है कि कितना खौफ है उन लोगों में। अपने तौर पर मैंने उनकी मदद करने की कोशिश की है इस तरह कि जब कोई छोटा-मोटा काम करवाना हो घर में, तो मैं किसी मुसलिम मजदूर को देती हूं, न कि किसी हिंदू को।’

प्रधानमंत्री का भाषण सुन कर मुझे ऐसा लगा कि वे इन चीजों से बिल्कुल बेखबर हैं। अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए उन्होंने कहा कि सरदार पटेल का ‘वन नेशन’ वाला सपना वे पूरा कर रहे हैं सबका विकास करके। जब हर घर में जल की योजना बनती है, तो कोई नहीं देखता कि घर मुसलमान का है या हिंदू का। उनके हिसाब से उनकी हर योजना ऐसी बनी है जो सबके भले के लिए है, किसी एक समाज के लिए नहीं। शायद उनके ऊंचे स्थान से ऐसा ही लगता हो, लेकिन हकीकत कुछ और है और उसको अनदेखा करना खतरनाक है।

क्या प्रधानमंत्री को दिखता नहीं है कि उत्तर प्रदेश में ऐसे कानून बने हैं जिनका मुख्य मकसद है मुसलमानों की परेशानियां बढ़ाना, उनकी रोजी-रोटी पर लात मारना? पहले तो आदेश आया था मुख्यमंत्री से कि हर दुकानदार, हर ठेलेवाले के लिए अनिवार्य होगा अपना नाम लिखना दुकान पर। कहने को तो यह आदेश जारी किया गया था ग्राहकों के स्वच्छ पोषण को ध्यान में रख कर। लेकिन सब जान गए थे कि असली मकसद क्या था, क्योंकि आदेश जारी किया गया था जब कांवड़ यात्रा चल रही थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को गलत कहा, तो उत्तर प्रदेश की सरकार ने एक नया कानून बनाया, जिसमें एक प्रावधान है कि जो लोग खाना पकाते वक्त उसमें थूकते हैं उनको दस साल की सजा हो सकती है।

यह थूकने वाली बात आई है इसलिए कि कई हिंदू मानते हैं कि मुसलमान खाने में थूकते हैं। ऐसी ही अफवाह फैलाई गई थी जब कोविड देश में आया और मुसलमानों पर बेबुनियाद दोष लगाया गया कि वे डॉक्टरों और नर्सों पर थूकते हैं। बकवास था वह, लेकिन कई हिंदू लोगों ने इसको सच मान लिया था। इस तरह की चीजों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई इतनी गहरी कर दी है कि उत्तराखंड के कुछ गांवों से मुसलमानों को भगा दिया गया है। इस खाई को कम सिर्फ हमारे राजनेता कर सकते हैं और इन राजनेताओं में सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है प्रधानमंत्री की, लेकिन अगर वे जानते ही नहीं हैं कि जमीन पर क्या हो रहा है तो कैसे कुछ कर सकेंगे।

राष्ट्रीय एकता दिवस सरदार पटेल की प्रतिमा के साये में मनाने से कुछ हासिल नहीं होगा, जब तक प्रधानमंत्री खुद भाईचारे को एक बार फिर से कायम करने के लिए नए सिरे से शुरुआत नहीं करते हैं। देश के लिए तो ऐसा करना ही चाहिए, लेकिन भारतीय जनता पार्टी का भी इसमें लाभ है। साबित हो चुका है पिछले चुनावों में कि कांग्रेस को दोबारा जीवित करने में मुसलिम मतदाताओं ने डट कर मदद की है। प्रधानमंत्री को चिंता होनी चाहिए कि मुसलमान सुनियोजित तरीके से भाजपा को हराने लग गए हैं।