शशिकला की कहानी भी क्या कहानी है! यह अपना भारत महान ही है, जहां एक ऐसी महिला, जिसने कभी चुनाव न लड़ा हो, जिसको कोई अनुभव न हो प्रशासन चलाने का, मुख्यमंत्री बन जाने वाली थी और वह भी सिर्फ अपने धन के बल पर। सुप्रीम कोर्ट ने उनको पिछले सप्ताह जेल न भेज दिया होता आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी पाने के बाद, तो मुमकिन है शशिकला आज मुख्यमंत्री के दफ्तर में विराजमान होतीं। इस आला ओहदे तक पहुंचीं कैसे, वह भी एक विशेष किस्म की भारतीय कहानी है। बात यह है कि राजनीति में महिलाओं को खास तनहाई का सामना करना पड़ता है। शाम को जब मर्द राजनेता घूम-फिर कर अपने समर्थकों से मिलते हैं, या अपने ही घर में उनका स्वागत करते हैं, महिला राजनेताओं को अकेले बैठना पड़ता है। घर से बाहर निकल कर जब वे लोगों से मिलने-जुलने की कोशिश करती हैं और अगर अपने घर में मर्द समर्थकों को बुलाती हैं, तो उनके चरित्र को लेकर बातें होने लगती हैं।

ऐसा ही कुछ हाल रहा होगा जयललिता का, जब उन्होंने फिल्मों की चमकती दुनिया छोड़ कर राजनीति में कदम रखा, अपने गुरु एमजी रामचंद्रन के कहने पर। रामचंद्रन साहब उस समय मुख्यमंत्री थे, सो व्यस्त रहते सुबह-शाम और जयललिता अपने घर के अंदर अकेली, तनहा। सो, जब किसी ने उनको शशिकला से मिलाया, वे कम से कम उनकी वीडिओ की दुकान से वीडिओ किराए पर ले सकती थीं। धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ती गई और पारिवारिक रिश्ता बन गया। यहां तक कि जब 1995 में शशिकला ने अपने भतीजे की शादी कराई, तो चेन्नई को ऐसा सजाया गया था जैसे किसी राजकुमार की शादी हो।  इत्तेफाक से मैं चेन्नई में थी उस दिन और हैरान रह गई उस शादी का ताम-झाम देख कर। मेहमानों का स्वागत किया मुख्यमंत्री और उनकी दोस्त ने एक जैसी साड़ियां पहन कर और सोने के जेवरों से इतना लद कर लोगों के सामने आर्इं कि सवाल उठना स्वाभाविक था। अदालतों के दरवाजे खटकाए गए, यह जानने के लिए कि मुख्यमंत्री और उनकी दोस्त के पास इतनी दौलत आई कहां से। बीस वर्षों बाद पिछले सप्ताह न्याय हुआ और शशिकला अब जेल में हैं, लेकिन उनकी जीवन गाथा से जो सवाल उठते हैं उनके जवाब ढूंढ़ना जरूरी है अगर हम देश की राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते हैं।

सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या शशिकला जैसे लोगों को राजनीति में आने का कोई अधिकार है भी कि नहीं? क्या लोकतंत्र का बुनियादी उसूल नहीं है कि राजनीति में आने से पहले आपको जनता का विश्वास हासिल करना पड़ता है चुनाव लड़ कर? माना कि परिवारवाद का घुन हमारे राजनीतिक ढांचे को दशकों से कमजोर करता आया है, लेकिन परिवारवाद से भी जो नेता उभर कर आते हैं उनको चुनाव जीतना पड़ता है। ऐसा शशिकला ने नहीं किया कभी और न ही ऐसा करने का उनको मौका उनकी दिवंगत दोस्त ने कभी दिया था। इसके बावजूद जिस राजनीतिक दल की जयललिता मुखिया थीं उसके तकरीबन हर विधायक की राय थी कि अम्मा की जगह सिर्फ चिन्नम्मा ले सकती हैं। ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि कुछ ऐसी ही चीज हुई थी राष्ट्रीय स्तर पर राजीव गांधी की हत्या के बाद? उस समय उनकी पत्नी न राजनीति समझती थीं और न ही हिंदी बोल सकती थीं, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के महारथियों ने सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की पूरी कोशिश की।

फर्क सिर्फ इतना है कि सोनिया गांधी ने उस समय उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया और शशिकला खुद मुख्यमंत्री बनने की पूरी कोशिश करने लग गर्इं जयललिता के देहांत के फौरन बाद। कांग्रेस पार्टी की तरह अगर अन्ना द्रमुक भी राजनीतिक दल न रह कर एक प्राइवेट कंपनी में तब्दील न हो गया होता, तो शशिकला किसी हाल में मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंच सकतीं। अफसोस की बात यह है कि देश के तकरीबन सारे राजनीतिक दल अब निजी कंपनी बन गए हैं, जिनकी बागडोर किसी न किसी परिवार के हाथों में होती है। वंशवाद के नियम ही कुछ ऐसे हैं कि अगर घर का कोई नौकर भी राजनीति में आना चाहे तो उसको रजनेताओं से ज्यादा अहमियत दी जाती है। ऐसा ही हुआ तमिलनाडु में। शशिकला ने जब स्पष्ट किया कि वे खुद मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं तो किसी की हिम्मत नहीं हुई उनको रोकने की। पन्नीरसेलवम साहब ने झट से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और फिर बाद में शशिकला को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन तब तक उसने विधायकों को इकट्ठा करके चेन्नई से दूर किसी फाइव-स्टार होटल में कैद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जेल न भेजा होता तो शशिकला आज मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुकी होतीं और भारत के एक अति-महत्त्वपूर्ण राज्य की बागडोर एक ऐसी महिला के हाथों में होती, जिसको न राजनीति का अनुभव है और न प्रशासन का।

अब भी तमिलनाडु का भविष्य गर्दिश में है, क्योंकि स्थिति इतनी बदली नहीं है। नए मुख्यमंत्री को शशिकला ने चुना है और अपने भतीजे दिनाकरण को ऐसी जगह बिठा गई हैं, जिससे वे विधायकों को काबू में रख सकें। सो, पूरी संभावना है कि शशिकला जब कैद काट कर बाहर आएंगी चार साल बाद, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके लिए खाली कर दी जाएगी, क्योंकि तब तक आम लोग भूल गए होंगे कि वे जेल किस वजह से गई थीं। वैसे भी चमचों की परंपरा इतनी मजबूत है तमिलनाडु में कि जयललिता के सामने उनके विधायक शाष्टांग प्रणाम किए बिना नहीं पेश होते थे। सवाल यह है कि क्या यह लोकतंत्र है या लोकतंत्र का भद्दा मजाक?