कितनी नाजुक, कितनी कमजोर होगी उन लोगों की देशभक्ति, जो मानते हैं कि करन जौहर की एक फिल्म से इस देशभक्ति को ठेस पहुंचती है। कहते तो हैं ये लोग कि ‘ऐ दिल है मुश्किल’ का विरोध कर रहे हैं हमारी सेना के सम्मान को ध्यान में रख कर, राष्ट्र की इज्जत रखने के लिए। उनका कहना है कि जब तक सरहद पर शहीद हो रहे हैं हमारे जवान, तब तक पाकिस्तानी अभिनेताओं को बॉलीवुड में काम करने नहीं दिया जाएगा। राज ठाकरे के ‘सैनिक’ निकल पड़े मुंबई की सड़कों पर सिनेमा मालिकों को डराने-धमकाने और चूंकि इन सैनिकों ने पहले भी बहुत बार सिनमा घरों में तोड़फोड़ की है, सिनेमा मालिकों ने यह फिल्म लगाने पर प्रतिबंध लगाया। दुख की बात है कि अगर अगले हफ्ते ‘ऐ दिल है मुश्किल’ रिलीज नहीं होती है, तो नुकसान पाकिस्तान का नहीं होगा, पाकिस्तानी अभिनेताओं का नहीं होगा। नुकसान होगा तो सिर्फ भारत का, भारतीय फिल्म उद्योग का।
भारतीय सभ्यता को अगर पाकिस्तानी दिलों में किसी ने जिंदा रखा है तो हिंदी फिल्मों ने। चाहे कितना भी तनाव हो दोनों देशों के बीच, हिंदी फिल्में पहुंच जाती हैं किसी न किसी तरह लाहौर और कराची के बाजारों में। जब प्रतिबंध लगता है इनके आयात पर, तो चुपके से आ जाती हैं पाकिस्तानी शहरों के काले बाजार में। मैं कई बार लाहौर या कराची में रही हूं, जब सीमाओं पर तनाव चरम पर था। तब भी ‘लेटेस्ट’ हिंदी फिल्में देखी हैं मैंने दुकानों में और हिंदी फिल्मों के गाने सुनने को मिले हैं पाकिस्तानी शादियों में। जब रामायण और महाभारत पर टीवी सीरियल बने तो इतनी लोकप्रियता मिली पाकिस्तान में इन्हें कि मेरे दोस्त बताया करते थे कि उनके बच्चे उनको अम्मी-अब्बू कहने के बदले माता-पिता कहने लगे।
ऐसा हुआ बावजूद इसके कि जिया उल-हक ने पूरी कोशिश की पाकिस्तान में अरब तहजीब और तौर-तरीके फैलाने की सत्तर-अस्सी के दशक में, इस उम्मीद से कि ऐसा करने से पाकिस्तान का रिश्ता भारत के साथ कमजोर होता जाएगा। ऐसा होने नहीं दिया बॉलीवुड ने और इसी को अंगरेजी में कहते हैं भारत का ‘सॉफ्ट पावर’ या उदार शक्ति। पाकिस्तानी अभिनेताओं और संगीतकारों पर प्रतिबंध लग गया अगर, तो पाकिस्तान के शासकों का फायदा होगा और भारत का नुकसान। यह बात उन लोगों को कैसे समझाई जाए, जिनका राष्ट्रवाद इतना नाजुक है कि एक फिल्म से उसको ठेस पहुंच सकती है।
मुझे इस किस्म के राष्ट्रवाद से बहुत तकलीफ होती है। राष्ट्रवाद बहुत बड़ा शब्द है। इसे छोटा करना महापाप मानती हूं और न सिर्फ इसको छोटा किया है ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के विरोधियों ने, बल्कि उन्होंने भी, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को भगवान राम के रूप में दिखाया है उन पोस्टरों में, जो उत्तर प्रदेश के शहरों में दिखने लगे हैं सर्जिकल स्ट्राइक के बाद। ऐसा करके भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों ने सेना का अपमान किया, क्योंकि युद्ध ऐसी चीज नहीं है, जिससे इस किस्म का घटिया राजनीतिक फायदा उठाया जाए। प्रधानमंत्री ने खुद इन लोगों को टोका, लेकिन न इनकी हरकतें कम हुर्इं और न ही केंद्रीय मंत्रियों ने प्रधानमंत्री की बातों को गंभीरता से लिया। रक्षामंत्री ने भी नहीं।
मनोहर पर्रिकर ने पहले कहा कि उनकी सरकार बनने के बाद सेना को हनुमानजी की शक्ति मिली है। इसके कुछ दिन बाद इन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक करने की हिम्मत उनको संघ की शाखाओं से प्रेरणा लेकर मिली है। ऐसी बात करने से क्या उन भारतियों को अलग नहीं किया जा रहा है, जो न हिंदू हैं और न ही संघ के साथ उनका कोई वास्ता है? ऐसी बातें करने के बदले अच्छा होगा, अगर रक्षामंत्री हमारी सेना की शक्ति बढ़ाने पर ध्यान दें। न हमारे जवानों के पास आधुनिक हथियार हैं और न ही उनके पास आधुनिक वर्दियां हैं। आज भी हमारे सैनिक जो वर्दियां पहनते हैं, वे अंगरेजों के जमाने से चली आ रही हैं। युद्ध के तरीके बदल गए हैं, इतना कि समझना मुश्किल है कि भारतीय सेना में आधुनिकता अभी तक क्यों नहीं आई है।
हाल में एक सैनिक छावनी में जाना हुआ एक लेक्चर देने के सिलसिले में। वहां पहुंच कर हैरान हुई कि सब कुछ बिलकुल वैसा था जैसे हुआ करता था मेरे पिताजी के समय, कोई चालीस वर्ष पहले। मेरा बचपन गुजरा है बीना, अमदनगर और झांसी जैसे छोटे शहरों में, जहां सेना की छावनी शहर से अलग हुआ करती थी और जहां सेना के लिए हर सुविधा सिविल से अलग थी। अब भी ऐसा है अगर, तो इसका मतलब यही समझा जा सकता है कि परिवर्तन किसी किस्म का नहीं आया है सेना के तौर-तरीकों में। इस दौरे पर मेरी बातें हुर्इं सेना के कुछ वरिष्ठ अफसरों से, जिनसे मालूम हुआ कि उनको कई किस्म के परिवर्तन की जरूरत है। एक तो उनको खासी तकलीफ थी कि उनका वेतन उनकी उम्र के सरकारी अधिकारियों से बहुत कम है और उनकी पेंशन भी कम है। दूसरी उनकी शिकायत इस बात को लेकर थी कि रक्षा नीतियों में उनकी राय को अहमियत नहीं दी जाती है। सारे फैसले रक्षा मंत्रालय में होते हैं, उनको पूछे बगैर। यह भी सुनने को मिला कि नरेंद्र मोदी की सरकार से उनको बहुत उम्मीदें थीं परिवर्तन की और इस परिवर्तन के न आने से मायूसी फैलने लगी है।
मेरी तरफ से रक्षामंत्री के लिए विनम्र सुझाव है कि सेना में भर्ती हर नागरिक के लिए अनिवार्य कर दी जाए। ऐसा करने से शायद मुंबई की सड़कों पर लड़ाई लड़ने वाले सैनिक सीमाओं पर लड़ने का यथार्थ समझ सकेंगे। .