उत्तर प्रदेश के चुनाव अभियान में इतनी सारी बेकार बातें हुई हैं कि उसमें वह बात सुनाई नहीं दी, जो सबसे महत्त्वपूर्ण थी। जिस हफ्ते प्रधानमंत्री के कब्रिस्तान और श्मशान वाली बात को लेकर इतना हंगामा हुआ, उन्होंने यह भी कहा था कि उत्तर प्रदेश जब तक आगे नहीं बढ़ेगा तब तक देश भी आगे नहीं बढ़ सकता। उनके शब्द मेरे कानों में खतरे की घंटी की तरह गंूजते रहे पिछले हफ्ते, जब मैं उत्तर प्रदेश गई दूसरी बार चुनाव का रुख परखने। खतरे की घंटी इसलिए, क्योंकि साफ दिखा कि जहां भारत के बाकी राज्यों में बेहतरी के आसार दिखते हैं, उत्तर प्रदेश में बदतरी के दिखते हैं। सोच-समझ कर कह रही हूं यह बात। बचपन से मैं इस प्रदेश को देखती आई हूं करीब से। मेरी स्कूल की पढ़ाई यहीं हुई थी। याद है मुझे कि हम सड़क के रास्ते जाया करते थे दिल्ली से देहरादून और यह भी याद है कि उस जमाने में कितना खूबसूरत होता था उत्तर प्रदेश। देहातों में घने जंगल हुआ करते थे, साफ चमकती नदियां होती थीं, सुहाने पहाड़ और छोटे, सुंदर से गांव। गुरबत उतनी ही थी बेशक जितनी आज है, लेकिन गांव इतने बेहाल नहीं थे उन दिनों। अक्सर आम और लीची के बागों के बीच हुआ करते थे और किसी मस्जिद या मंदिर के आसपास होती थीं बस्तियां। आज झुग्गी बस्तियों में तब्दील हो चुके हैं और बगीचे गायब हो गए हैं। लखनऊ, इलाहबाद, फिरोजाबाद, आगरा और बनारस सुंदर शहर थे तब। आज इतनी बुरी हालत में हैं कि ऐसा लगता है कि किसी बहुत बुरे दौर से गुजरे हों।
माना कि एक अति-आलीशान एक्सप्रेस-वे तैयार हुआ है पिछले पांच वर्षों में लखनऊ से आगरा तक, माना कि उससे पहले मायावती ने दिल्ली से आगरा तक एक्सप्रेस-वे बनाया था, यह भी माना कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विकास के आसार दिखते हैं, लेकिन इन सब तब्दीलियों के बावजूद उत्तर प्रदेश बेहाल है। बल्कि यह कहना गलत न होगा कि उत्तर प्रदेश में विकास और आधुनिकता के आने से वहां के आम लोगों को कोई लाभ नहीं पहुंचा है। देहातों में न सड़कों का हाल अच्छा है, न स्कूलों का, न स्वास्थ्य केंद्रों का, न अस्पतालों का और न ही यहां स्वच्छ भारत अभियान से कोई फर्क पड़ा है। शहर और कस्बे ऐसे दिखते हैं जैसे बिना किसी व्यवस्था के फैल रहे हैं दिन-ब-दिन बढ़ती आबादी को समेटने। ऊपर से है इस प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या: बेरोजगारी। यह देश भर में गंभीर समस्या है, लेकिन विकसित राज्यों में धीरे-धीरे रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, क्योंकि देहातों और कस्बों में वे शहरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिनको नरेंद्र मोदी ने ‘रर्बन’ नाम दिया है। इसका मतलब है देहातों में शहरी सुविधाओं की व्यवस्था। ऐसा होते मैंने सिर्फ उनके अपने आदर्श गांव जयापुर में देखा। बनारस से कोई बीस किलोमीटर दूर है यह गांव और काफी हद तक आदर्श गांव दिखने लगा है। पिछले दो वर्षों में यहां बैंक आ गए हैं, सोलर ऊर्जा आ गई है घरों में, पक्की सड़क बन रही है और पानी की टंकी बन गई है, हालांकि अभी तक घरों में पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
जयापुर के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के दौरे में मैंने एक भी दूसरा गांव नहीं देखा, जिसमें आधुनिकता के आसार दिखते हों। दोष सिर्फ राज्य सरकार के सिर नहीं थोपा जा सकता, क्योंकि उत्तर प्रदेश ने मोदी को पूर्ण बहुमत तिहत्तर सांसद देकर दिया था 2014 में। इन सांसदों के चेहरे तक नहीं दिखे हैं इस चुनाव अभियान में। भाजपा के तिहत्तर सांसदों ने दिल लगा कर काम किया होता पिछले दो वर्षों में, तो भारतीय जनता पार्टी आराम से बहुमत हासिल कर सकती थी इस चुनाव में। अगर कांटे की टक्कर दे रहे हैं अखिलेश यादव, तो सिर्फ इसलिए कि वह काम नहीं हुआ है सांसदों द्वारा, जो हो सकता था। मोदी की अपनी लोकप्रियता अब भी कायम है, लेकिन वह आशा और उत्साह जो 2014 में दिखी थी, इस बार नहीं दिख रही है। उत्तर प्रदेश को परिवर्तन और विकास की जितनी जरूरत है, शायद ही देश के किसी दूसरे राज्य में होगी। दोष कुछ इस राज्य के मतदाताओं का भी है, जिन्होंने पिछले बीस वर्षों से जातिवाद और धर्म के आधार पर बार-बार वोट दिया है। यह भी कहना जरूरी है कि 2014 के आम चुनाव में मतदाताओं ने पूरी कोशिश की थी नए सिरे से चुनाव में भाग लेने की। उस आम चुनाव में मतदाताओं ने विकास और परिवर्तन के सपने देख कर मोदी को पूर्ण बहुमत दिया था। माना कि दो वर्षों में परिवर्तन और विकास लाना आसान नहीं है, जब राज्य सरकार किसी और के हाथों में हो, लेकिन भाजपा के तिहत्तर सांसदों ने थोड़ा-बहुत भी काम किया होता, तो लोगों में आशा जीवित रहती।
प्रधानमंत्री के आदर्श गांव जयापुर से मैं जब बनारस गई तो और भी मायूस हुई। इस शहर का हाल वही है, जो पहले था। घाटों पर थोड़ी-बहुत सफाई जरूर हुई है, लेकिन अंदरूनी शहर में दिखती हैं वही गंदी गालियां, वही सड़ते कूड़े के ढेर और वही गंदी नालियां, जिनके किनारे बच्चे शौच करते दिखते हैं। उत्तर प्रदेश में विकास और परिवर्तन लाना आसान नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री का कहना बिलकुल ठीक है कि इस राज्य में परिवर्तन लाए बिना भारत भी आगे नहीं बढ़ सकेगा।