कई विश्लेषण हो चुके हैं नतीजों के। ऊब गई हूं उनको पढ़ कर, इसलिए उसके बजाय मैं समझने की कोशिश करूंगी कि नरेंद्र मोदी क्यों पूर्ण बहुमत नहीं ला पाए इस बार। कारण कई होंगे, लेकिन एक अहम कारण यह है कि उनके चाटुकारों ने उनको कभी नहीं बताया कि उनका ‘विकसित भारत’ वाला नारा खोखला था। सो, सुनिए मेरे अपने गांव की कहानी। इस सुंदर, समुद्र तटीय गांव में मोदी के पहले शासनकाल में इतनी तरक्की हुई है कि जहां कभी यहां के लोग मछली बेचकर गुजारा करते थे, अब पर्यटक इतने आने लगे हैं समुंदर तट का आनंद लेने कि हर दूसरे घर में ‘एसी कमरे’ मिलते हैं। हर दूसरी गली में दिखते हैं नए रेस्तरां और नई दुकानें।
स्वच्छ भारत अभियान से पहले समुद्र किनारे जब हम घूमने निकलते थे, तो पांव सोच-समझ कर रखते थे, क्योंकि यह समुद्र तट गांव वालों का विशाल शौचालय हुआ करता था। सुबह-सवेरे महिलाएं बैठी दिखती थीं झाड़ियों में छुप कर शौच करती हुई और दिन भर खुलेआम दिखते थे मर्द और बच्चे समुद्र के अंदर अपना काम करते हुए। मोदी के पहले शासनकाल में स्वच्छ भारत का लाभ लेकर यहां के लोगों ने अपने घरों में बनाए निजी शौचालय, सो अब समुद्र किनारे दिखते हैं पर्यटकों के लिए छोटे रेस्तरां, नारियल पानी बेचनेवाले और आसमान में गुब्बारे की सवारी करवाने वाले। गांव में इतनी तरक्की हो गई है कि जहां कभी मुश्किल से एक घर के सामने मोटर गाड़ी दिखती थी, अब हर दूसरे घर के सामने दिखने लगी हैं गाड़ियां।
लेकिन इसी गांव में एक आदिवासी बस्ती है, जहां पिछले दस सालों में कुछ नहीं बदला है। चुनाव प्रचार शुरू होने के बाद मैं इस बस्ती में गई थी, मालूम करने चुनाव के बारे में और लोगों का हाल देखने। मैंने जब लोगों से बात की, तो मालूम हुआ कि उनके लिए सिर्फ एक सरकारी योजना का लाभ मिला है- मुफ्त पांच किलो राशन देने वाली योजना का। उज्ज्वला योजना से सबको सिलेंडर तो मिले हैं, लेकिन उनके लिए इनका कोई उपयोग नहीं है, इसलिए कि गैस का दाम चुकाना उनके वश की बात नहीं है। बेरोजगारी इतनी है कि गांव के बच्चों को भेजा जाता है समुद्र तट पर थोड़ा-बहुत पैसा कमाने पर्यटकों से। स्कूल यहां है, लेकिन खंडहर जैसा। सारे गांव में एक ही लड़की मिली मुझे, जिसको पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी दफ्तर में नौकरी मिली है। इस बस्ती में बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है, लेकिन इससे भी बड़ी समस्या है कि दूर तक यहां पानी नहीं मिलता है। टैंकर हर दूसरे दिन आते हैं, लेकिन लोगों के पास पानी खरीदने का पैसा नहीं है।
जब चुनाव नतीजों ने दिखाया कि मोदी के लिए दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का वोट नहीं पड़ा था इस बार उत्तर प्रदेश में, तो मेरा अपना गांव मुझे याद आया। उत्तर प्रदेश जब गई, तो देखा कि बड़े-बड़े ‘हाई-वे’ बन गए हैं और चमकते, आधुनिक एअरपोर्ट भी। ऐसे गांवों में जहां कभी सड़क नहीं हुआ करती थी, अब सड़कें बन गई हैं, लेकिन इन चीजों का लाभ उनको नहीं हुआ है, जो सबसे गरीब हैं। उनके जीवन में बिल्कुल कोई परिवर्तन नहीं आया है मोदी के राज में, सो अच्छे दिनों का सपना वे कब के भूल चुके हैं।
ऊपर से जब प्रधानमंत्री ने प्रचार के आखिरी दिनों में अपने हर भाषण में मुसलमानों को निशाने पर रखा झूठी बातें कह कर, तो देश भर में मुसलमानों ने ठान लिया कि अबकी बार वे अपना वोट उन लोगों को ही देंगे, जो भारतीय जनता पार्टी को हरा सकें। ऐसा हुआ भी है, सो अब ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस पार्टी के वे पुराने वोट बैंक- दलितों और मुसलमानों के- अब दुबारा बन गए हैं और इसका नुकसान हुआ है भारतीय जनता पार्टी को।
मेरी राय में मोदी इस बार पूर्ण बहुमत नहीं ला पाए इसलिए भी कि उन्होंने लोगों के सामने अहंकार इतना दिखाया कि यहां तक कहने लगे कि उनको परमात्मा ने भेजा है भारत को बचाने के लिए। परमात्मा आम लोगों को नहीं भेजते हैं, जब उनको जरूरत महसूस होती है तो भेजते हैं अवतारों को, फरिश्तों को। तो, मोदी ने जब यह बात कही तो विपक्ष ने खूब मजाक बनाया अपनी आम सभाओं में इनका और लोगों को यह मजाक पसंद भी आया। नतीजा यह कि चार सौ पार तो दूर की बात, भारतीय जनता पार्टी इस बार तीन सौ पार भी नहीं पहुंच सकी है। तो क्या यह अच्छी बात है देश के लिए?
मेरी नजर में यह बात अच्छी इसलिए है कि अब संसद के अंदर विपक्ष को मोदी अनदेखा नहीं कर सकेंगे। अब कानून बनेंगे पूरी बहस और विचार-विमर्श के बाद। वैसे नहीं जैसे मोदी के पिछले दौर में बनाए गए थे। संसद की अहमियत वापस लौट आएगी और शायद वे लोग, जिन्होंने कहना शुरू किया था कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो गया है, उनको अपनी बातें वापस लेनी पड़ेंगी। इस चुनाव ने एक बात पूरी तरह साबित कर दी है कि भारत में लोकतंत्र सही सलामत है और जो शक्ति जनता में हमेशा रहती है लोकतांत्रिक देशों में, वह उनके पास लौट आई है। मोदी के दूसरे दौर में अक्सर लगता था कि एक ही व्यक्ति के हाथ में थी इस देश की बागडोर और वही ले रहा था देश के सबसे अहम फैसले। जब इस तरह का तंत्र आता है किसी देश में, तो उसको लोकतंत्र नहीं तानाशाही कहा जाता है। मोदी पर जिस अंकुश की जरूरत थी, वह अब लग गया है। यह अच्छी बात है।