बहुत दिनों बाद राहुल गांधी के दर्शन हुए पिछले हफ्ते ‘ऐक्शन रोल’ में। मंदसौर पहुंचे राजस्थान और मध्यप्रदेश के पुलिस घेरे को तोड़ कर, कभी गाड़ी से उतर कर पैदल चल कर, तो कभी किसी कांग्रेस कार्यकर्ता की मोटर साइकल पर सवार होकर। किसानों के साथ हमदर्दी जताने के लिए गिरफ्तार भी हुए, सो तमाशा मजेदार था, लेकिन था सिर्फ तमाशा। निजी तौर पर मुझे उम्मीद थी कि तीन साल विपक्ष में रहने के बाद कुछ नया सीखे होंगे कांग्रेस पार्टी के युवराज, क्योंकि जितनी जरूरत आज है एक अच्छे विपक्ष की शायद ही पहले कभी रही होगी।

वह इसलिए कि उत्तर प्रदेश में शानदार जीत हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी के मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के आला अधिकारी ऐसे पेश आ रहे हैं जैसे उनके पांव अब जमीन पर नहीं टिकते हैं। उनके होश ठिकाने तभी आएंगे जब उनको दिखने लगेगा कि विपक्ष पूरी तरह चित नहीं पड़ा है। विपक्ष की उम्मीदें टिकी हुई हैं राहुलजी पर, क्योंकि उनकी माताजी की सेहत अच्छी नहीं है। सो, मुझे उम्मीद थी कि मंदसौर में गिरफ्तारी देने के बाद राहुल गांधी कुछ ऐसा कहेंगे, जो साबित कर सके कि मोदी को मुकाबला भविष्य में दे सकते हैं। लेकिन जो भाषण दिया मंदसौर में, वही था जो 2014 के आम चुनाव में उन्होंने बार-बार दिया- नरेंद्र मोदी सिर्फ अपने पचास दोस्तों के फायदे के लिए काम करते हैं, उनको किसानों और मजदूरों की परवाह नहीं है। क्या भूल गए हैं युवराज साहब कि इस आरोप को जनता ने ऐसे ठुकराया कि लोकसभा में कांग्रेस की सीटें चौवालीस तक गिर गई थीं? क्या भूल गए हैं कि सीटें इतनी थोड़ी थीं कि नेता प्रतिपक्ष की जगह भी नहीं मिली थी?

विपक्ष का हाल देख कर मोदी सरकार के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं, इतने कि अब खतरे का निशान दूर नहीं है। मोदी सरकार के मंत्रियों के तौर-तरीके बिलकुल वैसे हो गए हैं जैसे कांग्रेस के मंत्रियों के हुआ करते थे, बल्कि यह कहना गलत न होगा कि इनमें घमंड ज्यादा है, क्योंकि सत्ता में पहली बार आए हैं। सो, दिल्ली में जब ये लोग दिखते हैं किसी जगह तो इस अंदाज में, जैसे हम गरीबों को उन्हें देख कर साष्टांग प्रणाम करना या कोई नजराना पेश करना चाहिए। क्यों न हो घमंड, जब पहली बार आलीशान बंगले में रहने का मौका मिला है, जब दिल्ली की सड़कों पर काफिलों में घूमने का मौका मिला है? प्रधानमंत्रीजी, अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि लाल बत्तियों पर आपने बेशक प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन आपके मंत्रियों की अकड़ कम नहीं हुई है।

अपने मंत्रालयों में उन्होंने कुछ नया करके दिखाया होता, तो शायद उनके घमंड को हम अनदेखा कर सकते, लेकिन एक-दो मंत्रियों के अलावा हर मंत्रालय में दिखता है परिवर्तन का गंभीर अभाव। किसान आंदोलन चल रहा है, सो बात शुरू करते हैं कृषि नीति की। माना कि कृषि की जिम्मेदारी मुख्यमंत्रियों की होती है, लेकिन केंद्र सरकार में कृषि मंत्रालय है अगर, तो इसलिए कि देश की कृषि नीति में असली परिवर्तन की जरूरत पड़े तो केंद्रीय कृषिमंत्री की उसमें ठोस भूमिका होनी चाहिए। किसानों का आक्रोश अगर बढ़ता दिख रहा है दिन-ब-दिन तो इसलिए कि कृषि नीति हमारी दशकों से गलत रही है। निवेश होना चाहिए था सिंचाई में, ग्रामीण सड़कों में, कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं में, ग्रामीण कृषि उद्योगों में, जो नहीं हुआ है। सो, जब भी किसान क्रोधित हो कर आंदोलन शुरू करते हैं, हमारे राजनेता उनको शांत कराने के लिए कभी कर्ज माफ करते हैं, कभी बिजली के बिल, तो कभी पानी के बिल। यह नीति गलत है, लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद इसमें कोई परिवर्तन नहीं दिखा है।

ऐसे कई मंत्रालय और हैं, जहां परिवर्तन की सख्त आवश्यकता है, लेकिन कोई परिवर्तन नहीं दिखा है। भारत की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं इतनी रद्दी हैं कि गरीब भारतीय भी प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने और प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हैं। माना कि प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सरकारों की जिम्मेदारी हैं, लेकिन एम्स जैसे बड़े अस्पताल और कई विश्वविद्यालय और कॉलेज केंद्र सरकार के तहत हैं। नई दिशा दिखाना इन क्षेत्रों में भी केंद्र सरकार का काम है। सो, राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे उन्होंने नवोदय विद्यालयों का निर्माण किया था, एक नई शिक्षा नीति बना कर। उनके इशारे पर शुरू हुए थे अपोलो जैसे कई निजी अस्पताल, जिनमें गरीबों का इलाज मुफ्त में करना अनिवार्य किया गया था। मोदी सरकार ने इन क्षेत्रों में अगर कुछ नया किया है, तो इतने चुपके से कि किसी को खबर तक नहीं पहुंची है। कहने का मतलब यह है कि मोदी के मंत्रियों को इतना घमंड दिखाने का कोई अधिकार नहीं है। समस्या हमारी यह है कि जब तक विपक्ष की तरफ से कोई चुनौती नहीं दिखने लगेगी, तब तक मोदी सरकार का घमंड कम करना तकरीबन नामुमकिन है। दिल्ली के राजनीतिक गलियरों में इतना इतरा कर चलते हैं मोदी के मंत्री इन दिनों, जैसे उन्होंने तय कर लिया है अभी से कि 2019 का आम चुनाव जीत चुके हैं मोदी। हौसले इतने बुलंद हैं मोदी के मंत्रियों के कि उनको यकीन है कि महागठबंधन अगर बन भी जाता है विपक्षी दलों का 2019 के आम चुनावों से पहले, तो वह भारतीय जनता पार्टी को हरा नहीं सकेगा, क्योंकि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता पिछले तीन वर्षों में बढ़ती गई है, कम होने के बदले। यह बात सही भी है, लेकिन राजनीति में कब हवा बदल सकती है, कोई नहीं कह सकता।