उड़ी हमले के बाद कुछ ज्यादा ही सुनने को मिले सुरक्षा विशेषज्ञों के विश्लेषण। मगर किसी ने नहीं कहा कि भारत युद्ध के दौर से गुजर रहा है। जिसको हम जिहादी आतंकवाद कह कर भुला देते हैं हर बार, वह वास्तव में सिर्फ आतंकवाद है क्या? सच क्या यह नहीं है कि करगिल युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान ने एक नए किस्म का युद्ध भारत के साथ लड़ना शुरू किया है, जिसको अभी तक हम स्वीकार ही नहीं कर पाए हैं। 26/11 वाले हमले के बाद अगर हमने इस नए युद्ध का असली चेहरा पहचान लिया होता, तो हो सकता है उड़ी में हमारे अठारह जवान अपनी जानें न गंवाते पिछले हफ्ते। बाद में रक्षामंत्री ने खुद कहा कि कुछ गलतियां जरूर हुई होंगी, जिसकी वजह से एक ऐसे सैनिक मुख्यालय पर हमला कामयाब हुआ, जो सीमा के इतने पास है, लेकिन उन्होंने भी आतंकवादी हमला कहा इसको, युद्ध नहीं।
कड़वा सच यह है कि ऐसा साबित होने लगा है कि पाकिस्तान के जरनैल सोच-समझ कर बना चुके हैं अपनी रणनीति करगिल युद्ध के बाद और हम हैं कि अभी तक समझ ही नहीं पाए हैं कि हमारे साथ हो क्या रहा है। नतीजा इसका यह है कि उरन में पिछले हफ्ते दिखे हथियारबंद लोग अगर वास्तव में पाकिस्तान से आए थे, मुंबई पर दुबारा हमला करने, तो शायद उतना ही कामयाब होंगे, जितने अजमल कसाब और उसके साथी हुए थे 2008 में। ऐसा इसलिए कह रही हूं मैं, क्योंकि मुंबई में रहती हूं और मुंबई की तटीय सुरक्षा को मैंने अपनी आंखों से देखा है। नाम को है यह सुरक्षा, सो जब कभी ‘हाई अलर्ट’ घोषित होता है तो नावें दिखती हैं सुरक्षा कर्मियों से भरी हुई समंदर में गश्त लगाती हुई, लेकिन उनके बर्ताव से साफ दिखता है कि मामूली पुलिसवाले हैं ये लोग, प्रशिक्षित कमांडो नहीं। बिल्कुल उसी तरह हाई अलर्ट जब मुंबई शहर में घोषित होता है तो सैनिक वाहन दिखते हैं गश्त देते हुए, लेकिन यहां भी दिखावा ज्यादा और सुरक्षा कम नजर आती है।
मैं सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन अर्ज करना चाहती हूं विनम्रता से कि अगर हमने इस युद्ध का असली चेहरा बहुत पहले पहचान लिया होता, तो मुमकिन है कि हम देश की सुरक्षा के साथ इतनी लापरवाही न करते। युद्ध जब घोषित ढंग से युद्धभूमि में होता है, तो बहुत गंभीरता से लेते हैं हम सुरक्षा के मामलों को। लेकिन चूंकि हमने युद्ध और जिहादी आतंकवाद में फर्क देखा नहीं है, अभी तक हम उन चीजों में उलझे रहते हैं जिनसे देश को कोई लाभ न पहुंचता हो। मिसाल के तौर पर उड़ी हमले के बाद भारत सरकार के आला अधिकारी और प्रवक्ता उलझे रहे हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साबित करने में कि पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना चुका है, सो उसको एक आतंकवादी देश घोषति करना चाहिए।
सच तो यह है कि दुनिया के तकरीबन सारे देश बहुत पहले से जान गए हैं कि पाकिस्तान जिहादी आतंकवादियों का अहम केंद्र है और हर जिहादी हमले में हिस्सा लेने वाले आतंकवादी पाकिस्तान के होते हैं या पाकिस्तान से कोई न कोई वास्ता रखते हैं। इस बात का सबसे ठोस सबूत तब मिला, जब उसामा बिन लादेन को अमेरिकियों ने ढूंढ़ कर ऐसी जगह जान से मारा, जो पाकिस्तान की सेना का सबसे सुरक्षित अड्डा माना जाता है। सो, हमको कोई लाभ नहीं है पाकिस्तान पर फिर से दोष डालने से। इसके बदले हमको अपने देश की सुरक्षा पर उसी तरह ध्यान देना चाहिए जैसा हम देते हैं जब युद्ध का दौर होता है।
युद्ध के समय दुश्मन देश के साथ कोई दोस्ती का रिश्ता नहीं हो सकता, सो दूतावास तक बंद किए जाते हैं दुश्मन के। ऐसा हमको करना चाहिए पाकिस्तान के साथ। युद्ध के समय सीमाओं पर ऐसा पहरा होता है, जिसको पार करना असंभव कर दिया जाता है। हमको ऐसा करना होगा अब, क्योंकि कहने को तो जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल-मुजाहिदीन जैसी जिहादी संस्थाएं स्वतंत्र रूप से अपना काम करती हैं, लेकिन यथार्थ यह है कि पाकिस्तानी सेना ने इनका निर्माण किया है इस मकसद से कि उस नए युद्ध के दस्ते बन सकें जो करगिल युद्ध के बाद उन्होंने भारत के साथ लड़ना शुरू किया है। पठानकोट, गुरदासपुर और उड़ी में ये जिहादी दस्ते कामयाबी हासिल करके दिखा पाए हैं इसलिए कि इनसे लड़ने भेजते हैं हम ऐसे पुलिसवालों को, जिनको युद्ध के तरीके ही नहीं मालूम हैं।
इनको हराने के लिए जरूरत है ऐसे खास सैनिकों की, जिनको कमांडो ट्रेनिंग दी गई हो। लेकिन यहां याद करना जरूरी है कि 2008 में ऐसे कमांडो मुंबई पहुंचे चौबीस घंटे बाद, जिस दौरान कई लोग मारे गए थे, जो शायद जिंदा होते अगर इतनी देर न लगी होती मनेसर से मुंबई पहुंचने में। अगर हमने 26/11 के बाद स्वीकार कर लिया होता कि पाकिस्तान की तरफ से इस किस्म के हमले युद्ध का हिस्सा हैं, तो आज हमारी तैयारी कहीं ज्यादा बेहतर होती।
हमको यह भी स्वीकार करना होगा कि अब समस्या सिर्फ कश्मीर की नहीं है। कश्मीर की समस्या का समाधान भी अगर मिल जाए तो यह युद्ध जारी रहेगा, क्योंकि पाकिस्तान को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है कि उसका दार-उल-इस्लाम इतना पीछे रह गया है हमारे बुतपरस्त काफिरों से भरे दार-उल-हरब से। अल्लाह के सिपाही आतंकवाद के जरिए भी जिहाद कर रहे हैं और पाकिस्तानी सेना में भर्ती होकर भी। उनकी नजर में भारत के साथ कभी दोस्ती नहीं हो सकती। सो, इस युद्ध का अंत दूर तक नहीं दिखता है। दुआ कीजिए कि इस बात को वे लोग जल्दी समझ जाएं, जिनके हाथों में है इस देश की सुरक्षा।