अंगरेजी के पांचों चैनल रोम और वेटिकन को दिन भर लाइव करते रहे। मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी जानी थी और चैनल इसे दिखाने की स्पर्धा करते थे। उस पर तर्कवादी किस्म के सवाल उठाने, उसे एक्सपोज करने के लिए एक भी ‘तर्कवादी’ (रैशनलिस्ट) सामने नहीं आया।

और वे गलीज सीन न जाने कितनी बार दुहराए गए। लाल निकर पहने एक मोटा-सा आदमी बिस्तर पर बैठता है, फिर वह पास बैठती औरत को पास खींचता है और चूमता-सा दिखता है। कैमरा बिना फ्रेम तोड़े सीन खींचे जा रहा है। इतना-सा सीन और दुहराया गया हजार बार, दर्शकों के दिमाग में बिठाया गया लाख बार कि कोई भूले न भूल सके।
उसके बाद शुरू हुआ खबर का मैनेजमेंट। मनीष सिसोदिया ने कहा कि केजरीवालजी ने आधा घंटे में संदीप को निकाल दिया। संदीप कहते दिखे कि सीन में मैं नहीं, कोई और है? छवि को शायद मैनेज करने की खातिर आशुतोष ने ब्लॉग लिख डाला कि यह सहमति-सेक्स था और गांधी नेहरू भी ऐसा करते थे। इस पर आशुतोष की सभी चैनलों पर ‘धुलाई’ होती नजर आई। इतना ही नहीं, कांग्रेस और भाजपा के प्रदर्शन तक प्रसारित हुए कि आशुतोष को गिरफ्तार किया जाए। राष्ट्रीय महिला आयोग ने आशुतोष के ब्लॉग पर जवाब मांगा। वे गए और बोले कि अगर मैंने गलती की है तो फांसी पर लटका दीजिए! लेकिन इस देश का संविधान मुझे ब्लॉग लिखने की आजादी देता है!

प्रसंगवश बता दें कि ‘सहमति-सेक्स’ हो सकने वाली बात ‘आप’ की हमदर्द प्रवक्ता पत्रकार सबा नकवी ने सबसे पहले टाइम्स नाउ के न्यूजआवर में कही थी, जो एंकर के जोर और बहस के शोर में आई-गई हो गई! इसके बाद अण्णा हजारे हर चैनल पर दिखे। वही-वही बाइटें रिपीट होने लगीं कि मैंने केजरीवाल से पार्टी बनाने को मना किया था, जब बन गई तो सोचा था कि कुछ अलग तरह की होगी। आज मेरा सपना टूट गया! सपने टूटने के लिए ही होते हैं बाबा! पर यह क्या बात हुई कि दिल्ली रेलवे स्टेशन पर केजरीवाल से धक्का-मुक्की की जाने लगी? केजरीवाल ने खुद आरोप लगाया कि भाजपा की महिला कार्यकताओं ने हमला किया। मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया कि सब कुछ पूर्वनियोजित था। पुलिस को बताया गया था कि ऐसा हो सकता है, लेकिन पुलिस चुपचाप देखती रही।इस सप्ताह में ‘कश्मीरियत, जमहूरियत और इंसानियत’ के दर्शन एक साथ हो गए। सीपीएम के सीताराम येचुरी, सीपीआइ के डी. राजा, जेडीयू के शरद यादव और एमआइएम के ओबैसी अलगाववादियों से ‘डायलाग’ की खातिर मिलने चले, तो अलगाववादियों के दरवाजे बंद मिले! इस ‘अपमान’ पर टाइम्स नाउ के एंकर सबसे ज्यादा नाराज दिखे। न्यूजआवर में आते ही आरोप लगाया कि इन्होंने ‘पाक स्टूज’ हुर्रियत को वैधता प्रदान की, भारत की अवमानना हुई और भारत को कमजोर किया। ऐसों के साथ शिष्टाचार बेकार है! ये क्यों मिलने गए?

इसका दो-टूक जवाब दिया जेडीयू के अजय आलोक ने कि अर्णव जी! आप तो भाजपा के प्रवक्ता की तरह सरकार को डिफेंड कर रहे हैं। भाजपा-पीडीपी गठजोड़ का एजेंडा कहता है कि अलगाववादियों से भी बात करनी है। हुर्रियत को वैधता तो भाजपा ने दी है हमने नहीं, वरना वैसा एजंडा क्यों तय किया? और भाजपा प्रवक्ता को ताना मारा कि आप सरकार बनाएं और हम बात करें, और इस पर भी आप परेशान! देश बचाने के लिए हम तमाचे भी खाएंगे श्रीमान! अर्णव देर तक बेचैन-से दिखते रहे। इसके बाद सर्वदलीय मीटिंग से निकलने वाली खबरें कहती रहीं कि कश्मीर पर सब दल एकमत हैं! राजनाथ ने कहा कि देश की अखंडता और संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता! अंगरेजी के पांचों चैनल रोम और वेटिकन को दिन भर लाइव करते रहे। मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी जानी थी और चैनल इसे दिखाने की स्पर्धा करते थे। चमत्कार को नमस्कार हो रहा था। उस पर तर्कवादी किस्म के सवाल उठाने, उसे एक्सपोज करने के लिए एक भी ‘तर्कवादी’ (रैशनलिस्ट) सामने नहीं आया। न किसी चैनल ने किसी को बुलाया ही! न किसी क्रांतिकारी एंकर ने ही कोई तर्कवादी किस्म का सवाल उठाया। मदर टेरसा हुर्इं संत टेरेसा। रोम करे तो सच, राम(देव) करें तो शंका!

यह कहानी फटाफट सौ खबरें में एक खबर की तरह आई और गायब हो गई। किसी चैनल ने इस कहानी को लिफ्ट नहीं दी। कहानी इतनी-सी रही कि देवरानी अपने सत्रह दिन के बच्चे को सगी जेठानी को कुछ देर रखने के लिए दे जाती है। तीन बच्चियों की एक मां यानी जेठानी, पुत्र न होने की ईर्ष्या से आगबबूला होकर सगी देवरानी के सत्रह दिन के बेटे को कपड़ों में छिपा कर लाती है और बालकनी से फेंक कर कपड़ा झाड़ती हुई चली जाती है। आभार सीसीटीवी का कि कानपुर की यह पूतना-कथा एक खबर बनी! ऐसी कू्रर पूतना-कथा-व्यथाओं पर चर्चा क्यों नहीं की जाती किसी चैनल के प्राइम टाइम में? देवरिया के खाट शो ने ‘सुपर सबाल्टर्न सीन’ दिए। यह ‘खाट विमर्श’ बाकी सब खबरों से बाजी मार ले गया। देवरिया में बड़ा मंच। मंच पर खटिया ही खटिया। राहुल के बेहद संक्षिप्त संबोधन के बाद खटिया अचानक लुटीं। जिसके जो हाथ पड़ा, उठा ले चला। किसी के हाथ खाट के पाए लगे, तो कोई मूढ़ा ले दौड़ा। और कोई-कोई खाट की पाटी ही ले उड़ा। दिव्य ‘सबाल्टर्न’ दिखा। एबीपी के रिपोर्टर ने कहा: खटिया खड़ी हो गई! चैनलों ने खाट विमर्श चलाया। भाजपा प्रवक्ता ने ‘कांग्रेस की खटिया खड़ी हो गई’ कहा, तो आजम खान ने कह डाला कि ‘कांग्रेस को खाट पर तो ले आए’… लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता बोले कि किसान खाट ले गए तो अच्छा हुआ। जिनको कुछ नहीं मिला उनको खाट तो मिलीं! खाट ले जाता एक लड़का खुश होकर बोला कि खटिया नहीं थी, वो तो मिली!

चैनलों में खाट विमर्श छाया रहा! राहुल का ‘खाट विमर्श’ सुपर हिट रहा। राहुल ने विमर्श की तरकीब बदली है कि रोज एक तीखी ‘बाइट’ मारिए और आगे बढ़ जाइए। विपक्षी प्रवक्ता प्रतिक्रिया में राहुल पर हमला करते रहे, लेकिन उनको हर रोज चोट करनी है, सो करेंगे! छोटी चोट बड़ा खोट! वही वाली बात कि ‘देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर’! भाजपा सावधान!