‘सब दल धर्म का इस्तेमाल करते हैं, सब जाति का इस्तेमाल करते हैं। सब कम्यूनल हैं!’ एक अंगरेजी एंकर की इस मौलिक स्थापना पर भाजपा प्रवक्ता की बाछें खिल उठती हैं। वह कहता है: हिंदुत्व धर्म नहीं है। एक जीवन-शैली है! अपने कमेंट से माबदौलत को खुश देख एंकर आरजेडी के नए प्रवक्ता को धमकाता है कि क्या मैं फुटेज दिखाऊं कि लालू ने कास्ट कार्ड खेला कि नहीं? प्रवक्ता कहता है कि गरीबों के लिए किए रिजर्वेशन को आप सांप्रदायिक कैसे ठहरा रहे हैं? लेकिन मदमाता एंकर माने तब न! अवसर के अनुकूल प्रसन्नवदन भाजपा प्रवक्ता समाजवाद को ठोकता हुआ एक शेर पेश करता है! कम्यूनलिज्म पर ऐसी ही कन्फ्यूज्ड बहसें दूसरे और तीसरे अंगरेजी चैनलों पर भी जारी हैं। तीनों एंकर एक समान लाइन लेते हैं, मानो किसी एक क्लास में पढ़ कर आए हों कि हिंदुत्व की बात करना कम्यूनल है, तो जाति की बात करना भी कम्यूनल है! ऐसा नहीं है कि एंकर फर्क नहीं जानते, लेकिन वे क्या करें? अर्थ का अनर्थ इसलिए करते रहते हैं और विपक्षी प्रवक्ताओं को वक्त-बेवक्त रोकते-टोकते रहते हैं, ताकि उनके माबदौलत खुश रहें। बहस बने या बिगड़े उनको क्या?
एक दोपहर यूपी में पीएम मोदीजी बोलते दिखते हैं। मोदीजी का भाषण चार अंगरेजी चैनलों पर लाइव है। एक डिफाल्टर दिखता है। यूपी में गरमी है। पीएम के माथे पर पसीना है। दो दो बुंदेलखंड। यूपी की राजनीति पर टिप्पणी करते हैं कि एक को परिवार बचाना है, एक को कुर्सी बचानी है, हमें यूपी बचाना है। फिर पीएम दोनों का तुलनात्मक अध्ययन कर बताते हैं कि कहां एमपी वाला बुंदेलखंड और कहां यूपी वाला? एमपी वाले की सारी योजनाएं पूरीं और इधर वाले की अधूरी! यह लाइव कवरेज कुछ एकतरफा-सा दिखा। कैमरे पीएम का क्लोजअप दिखाते रहे, सामने की भीड़ को एक बार भी कवर नहीं किया। न उनका ताली मारना दिखा, न उनका शोर! पीएम ने जिन ‘बहनों और भाइयों’ को संबोधित किया, उनको दिखाए बिना संबोधन का दृश्य न पूरा होता है, न फबता है! यूपी का ‘परिवार’ जारी है। ‘परि’ के आगे ‘वार’ का श्लेष अंगरेजी में भी मजा देता रहा। पांच दिन से आपस में वार पर वार, कलह का पारावार जारी है, लेकिन सब कुछ सड़क पर खुले में समाजवाद प्रसारित हो रहा है! यह समाजवादी पार्टी का पूरी तरह खुला जनतंत्र है।
पार्टी की मीटिंग चल रही है, लेकिन अंदर के सारे भाषण चैनलों पर लाइव प्रसारित हो रहे हैं। अखिलेश का शिकायतभरा भावुक भाषण, चचा शिवपाल का जवाबी भाषण और नेताजी का ‘संधाभाषा’ छाप भाषण! अंदर की बात चौराहे पर है। एंकर रिपोर्टर मस्त हो रहे हैं कि गजब हो रहा है, बेटा रो रहा है, चाचा कोस रहा है और पिताश्री यानी नेताजी सर्वत्र आदरणीय और फादरणीय हुए जा रहे हैं। ऐसा लगता है, नेताजी नेताजी नहीं ‘अवतार’ हैं, जो ‘जब जब होइ फेमिली हानी’ टाइप रोल निभाते हैं। अखिलेश उवाच: अमर सिंह दलाल हैं। सारी करतूत उनकी है! अमर सिंह उवाच: मैं इस परिवार का सदस्य हूं। नेताजी का आदमी हूं! रामगोपाल उवाच: नेताजी को समझ ही नहीं। अमर सिंह ने कोई अहसान नहीं किया! भाजपा प्रवक्ता के चेहरे मस्त हैं, मानो बिल्ली के भागों छींका टूटा। यूपी उनके लिए ‘लपकलड््डू’ है! लेकिन सपा के फ्री स्टाइल पहलवानों से भरे ‘खुला खेल फर्रुखाबादी’ टाइप इस महाभारत की तारीफ की जानी चाहिए कि वह सात दिन से फ्री में देश-दुनिया को मनोरंजन शो दिखा रहा है। उसके अलावा किस अन्य दल का जिगरा है कि अपने अंदर की बातें इस कदर बाहर आने दे और वह भी दू-बर-दू और लाइव-लाइव!
दूसरा महाभारत टाटा-मिस्त्री का है, जो जनता को तो बोर कर रहा है, लेकिन कॉरपोरेट और उनसे जुड़े चैनलों की नींदें हराम कर रहा है। हर बिजनेस चैनल पर कॉरपोरेट वकील जुटे हैं। टाटा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी मिस्त्री के हटाए जाने का कानूनी औचित्य बताते रहते हैं, उधर से मिस्त्री के आरोपों की लिस्ट बताई जाती रहती है। लेकिन भइया! जो मजा यदुवंशी महाभारत में है वह टाटा-मिस्त्री के महाभारत में नहीं है। ‘राइट टू प्रे’ का असली हीरो कौन है? वह अंगरेजी चैनल या तृप्ति देसाई? चैनल तो गाल बजाता है कि हाजी अली में महिलाओं की एंट्री उसी की मुहिम की बदौलत हुई। उधर तृप्ति कहती हैं कि यह एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन हे हीरो हीरोइन जी! इस देश के बहुत से मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर अब तक रोक है। दलितों को प्रवेश बिना ‘राइट टू प्रे’ का श्रेय अधूरा है!
लीजिए, मनसे की लंपट देशभक्ति देखते-देखते ‘हफ्ता बसूली’ में बदल गई। महाराष्ट्र के सीएम चैनलों में खुद बताने आए कि ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की रिलीज का रास्ता साफ हो गया है। करन जौहर, प्रोड्यूसर, मनसे के नेताओं ने सीएम के दफ्तर में समझौता हुआ है कि करन जौहर पांच करोड़ रुपए फौजी राहत कोष में जमा करेंगे। निर्विघ्न रिलीज होगी। पाक कलाकारों पर ‘अनापत्ति’ के लिए हर प्रोड्यूसर को पांच करोड़ देने होंगे। राज ठाकरे ने तुरंत श्रेय लूटा। लेकिन असली देशभक्त फौजी नाराज दिखे। कहने लगे कि इस तरह की वसूली का पैसा स्वीकार्य नहीं। चैनलों पर सीएम की थू-थू होने लगी! ‘ऐ दिल है मुुश्किल’ सबकी मुश्किल बनी! शबाना आजमी एनडीटीवी पर आकर क्षुब्ध होकर बोलीं कि जब केंद्रीय गृहमंत्री ने फिल्म की रिलीज को लेकर सुरक्षा की गारंटी कर दी थी, तब इस ब्रोकरबाजी यानी दलाली की क्या जरूरत थी? ऐसे लाडले प्रोमोज के बाद ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की तो मौज ही मौज है। सात दिन में सौ दो सौ करोड़ रुपए की कमाई करने वालों के लिए टीवी चैनल खोमचे की तरह हो गए हैं। इसके लिए वृहस्पतिवार की शाम सबसे शुभ होती है। इस शाम अपने आप को बेचने कभी कोई हीरो आ जाता है, तो कभी कोई हीरोइन आ धमकती है और हमारे अकडू खां एंकर आत्मविक्रेता हीरो-हीरोइनों के चरणों में गिरे पड़ते हैं!
बस, इतने ही स्वतंत्र हैं हमारे चैनल!
