अब तो रोज की तू तू मैं मैं है। ‘बाइट’ पर ‘बाइट’ है। बाइट की फाइट है। कभी ढीली है, कभी टाइट है! इधर से एक बात कही जाती है, तो उधर से सौ बातें आती हैं। असल बात यह है कि कौन बाइट किस पर चिपकती है! राहुल आए दिन चिपकाए जाते हैं और वे कहे जाते हैं कि ‘नहीं चिपकी! नहीं चिपकी!’
एंकर राहुल के ‘असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य’ को समझते ही नहीं। बम फोड़ने वाली बात ऐसी ही ‘गूढ़ व्यंजना’ थी, लेकिन एंकर सोचते रहे कि बम का मतलब सिर्फ ‘भंडाफोड़’ है! बम का गूढ़ार्थ पढ़िए सरजी! इसका मतलब है चिपकाना, चिपकाते चले जाना। यह राहुल की चिपकाने की कला है! इसे एंकर तक नहीं समझते।
इधर राहुल ने मेहसाणा में अपना ‘बम’ फोड़ा, उधर एंकर पूछने लगे कि यह बम था कि सीला हुआ पटाखा, एकदम टांय टांय फुस्स!
राहुल से एक बार फिर से निराश हुए एंकरों ने बहसें उठार्इं कि यही बम पहले टीएमसी ने फोड़ा, फिर केजरी ने फोड़ा, फिर उसे प्रशांत भूषण बड़ी अदालत ले गए। अदालत ने कहा कि इस बम में कोई दम ही नहीं!
भाजपा प्रवक्ता उवाचे: पीएम गंगा की तरह पवित्र हैं। अदालत साफ कर चुकी है। राहुल को कोई सीरियसली नहीं लेता। वे तो खुद जमानत पर हैं।
जब पैसा जमा करने को लेकर रिजर्व बैंक ने दो दिन में दो लाइनें बदलीं, तो उस पर राहुल ने फिर से चिपकाया: रिजर्व बैंक उसी तरह नियम बदल रहा है, जिस तरह मोदीजी कपड़े बदलते हैं। इसका जवाब न आया!
लेकिन मोदीजी ने मजे मजे में राहुल का मजाक उड़ाया, जिसे सुनने वालों ने हाथोंहाथ लिया: एक युवा नेता हैं (श्रोताओं की हंसी) भाषण सीख रहे हैं (हंसी), जबसे बोलना सीखना शुरू किया है मेरी खुशी का कोई पार नहीं है (हंसी) दो हजार नौ में पता ही नहीं चलता था कि इस पैकेज में क्या है? (हंसी) अब पता चलता है कि ये है ये नहीं है। नौ दिन पहले भूकंप आ गया होता और इतना बड़ा भूकंप आ जाता, लेकिन देश की जनता समझ गई, उसने कहा कि जिस देश में साठ प्रतिशत लोग अनपढ़ हों वहां मोदी आन लाइन बैंकिंग की बात कैसे कर सकता है? बताइए क्या मैंने जादू-टोना किया? ये रिपोर्ट किसकी है? क्या बोलते हैं समझ नहीं है। किसी का काला धन खुल रहा है तो किसी का काला मन खुल रहा है (ताली), लेकिन देश सोने की तरह तप कर निकलेगा इस विश्वास से लगा हूं!
मोदीजी उपहासवक्रता के उस्ताद हैं। लेकिन टाइम्स नाउ की एक एंकर ने टिप्पणी की कि मोदीजी ने व्यंग्य तो किया, लेकिन लगाए आरोपों की बात गोल कर गए! यानी राहुल ने जो चिपकाया वह छुड़ाया नहीं गया!
मीडिया चिपकाने के युग में प्रवेश कर गया है। बाइट की राजनीति, चिपकाने की राजनीति है! यही है: ‘पोस्ट ट्रुथ’ की यानी ‘उत्तर सत्य’ की राजनीति! इस मार को समझें सरजी!
मोदीजी के वाराणसी उवाच के बाद राहुल ने फिर ट्वीट की चोट की: ‘मोदीजी ने यह नहीं बताया कि उन दस पैकेटों में क्या था?’
कहा न कि ‘उत्तर-सत्य’ बार-बार मार करता है! राहुल को मजाक में खारिज न करें भाईजी! आपके पास मजाक है तो राहुल के पास ढीठता है। वे बाइट पर बाइट मारते रहते हैं और मारते रहेंगे! ऐसे ढीठों से सावधान सरजी! यही ‘उत्तर-सत्य’ है सरजी, जो कुछ देर से टीसता है।
अगर टीस की आशंका न होती तो रविशंकर प्रसाद मीडिया से यह न कहते कि मीडिया भी राहुल को टीआरपी बंद करे!
ऐसे न्यूज मीडिया एंकरों से नोटबंदी की मारी जनता की खुशी नहीं देखी जाती। वे अब भी ‘पचास दिन की अवधि अब बीती कि अब बीती’ का राग अलापते रहते हैं। इसी चक्कर में इंडिया टुडे की एक एंकर को इतना ‘कानफ्यूजन’ हुआ कि एक मिनट के पैकेज में फरमाने लगी कि ‘अब लोगों का धीरज छूटने लगा है’:
– कि इलाहाबाद में एक बैंक कैशियर को लोगों ने ठोंका।
– कि लखीमपुर खीरी में एटीएम तोड़ा है!
– कि दिल्ली में एक आदमी ने पीएम पर एक टिप्पणी की तो उसे पीट दिया गया!
अरे मदामजी! ये तोड़-फोड़ पीट-पाट सब खुशी की ही लीला है!
इस सप्ताह चैनलों में सबसे ज्यादा रिपीट किया गया शब्द रहा ‘गोलपोस्ट’! विपक्षी सत्ता पर आरोप लगाते रहे: ये सरकार ‘गोलपोस्ट’ हर दूसरे दिन बदल रही है! एंकर भी कहते रहे कि ‘गोलपोस्ट’ बदल रही है। तैयारी नहीं थी इसीलिए बार-बार व्यवस्था करनी पड़ रही है।
एक बार फिर रिजर्व बैंक ने नियम बनाया, फिर दूसरे दिन उसे पलट दिया! एक दिन कहा कि पांच हजार से ज्यादा जमा करोगे, तो बैंक वाले पूछताछ करेंगे। विपक्ष ने याद दिलाया कि सरजी पीएम ने कहा था कि तीस दिसंबर तक जमा कर सकते हैं। अब कह रहे हैं कि पांच हजार से ज्यादा करोगे तो मरोगे। बीस सवाल पूछे जाएंगे और पूछेंगे बैंक अफसर! टाइम्स नाउ की नाविका कुमार ने सबसे तीखी टिप्पणी की कि यह क्या किया, आपने तो बैंकों को थाना बना दिया! क्यों? वह तो वक्त रहते रिजर्व बंैक को होश आ गया और उसने पलटी मार दी!
नोटबंदी का सबसे बड़ा अवदान है ‘कानफ्यूजन’! राहुल ने कहा: सरकार ने अब तक एक सौ पच्चीस बार नियम बदले हैं। सुरजेवाला ने कहा: एक सौ छब्बीस बार बदले हैं। फिर किसी ने कहा: इक्यावन बार बदले हैं? देश सेवा के लिए हजार बार इधर-उधर करना पड़ता है साथी! ऐसा ‘कान्फयूजन’ मचाया है कि सबके ‘कान’ ही ‘फ्यूज’ होने लगे हैं! ये है कानफ्यूजन का शासन प्यारे! जितना बढ़ता है उतना ही संदेहालंकार ‘भ्रांतिमान’ होता जाता है!
सेक्सिज्म सेक्सिज्म में फर्क है। जिसे चैनल मानें वह सेक्सिज्म, जिसे न मानें वह नहीं। जो चैनल करीना कपूर के ‘बेबीबंप’ को देख कर ‘जियो जियो रे लला’ के भाव से बधाई देते रहे। बेटे का नाम तैमूर अली खान सुन कर सोशल मीडिया में मचे हल्ले को भी खबर बनाने से नहीं चूके!
फूले हुए पेड़ू की खबर को बेचना भला सेक्सिस्ट कहां?

