केजरीवाल: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन मेरी पार्टी के लोगों को कुछ मत कहो!
भाजपा प्रवक्ता: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन मेरी बात तो सुन लो!
टमाटर: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन मेरी कीमत तो जान लो!
निहलानी: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन ‘उड़ता पंजाब’ को मैंने आन लाइन नहीं किया!
अनुराग कश्यप: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन ‘उड़ता पंजाब’ को सिनेमा हॉल में देखो।
आनंद शर्मा: हमें मार लो, हमें काट लो, लेकिन इशरत पेपरों के गवाहों को ट्यूटर तो न करो! ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ बंद करो।
चिदंबरम: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन इशरत मामले में मैं सही था, यह तो मान लो!
एक सांसद: मेरी पहली पलायन-लिस्ट भले काट दो, पीट दो, लेकिन मेरी दूसरी पलायन-लिस्ट से कुछ मत कहो!
कैराना निवासी: लिस्ट को बदलो या मत बदलो, लेकिन लिस्टों का यकीन न करो। हमने पलायन नहीं किया है।
अर्णव गोस्वामी: मुझे मार लो, मुझे काट लो, लेकिन मुझे पत्रकारिता करना न सिखाओ!
अपने यहां एक से एक ऊंचे तेवर वाले बंदे हैं। सबके पास ‘मुझे मार लो काट लो’ का टेप है! सप्ताह भर की बाइटें ‘मार लो काट लो लेकिन…’ वाले ‘विक्टिम राग’ में बजती दिखती हैं।
और रात के नौ बजे से दस बजे तक विदाउट ब्रेक पूरे एक घंटे ‘मार लो काट लो’ का मजा लेना है तो टाइम्स नाउ पर लें। बहस की बहस और मजे का मजा! ‘उड़ता प्ांजाब’ किसी दिलजले ने रिलीज से पहले आॅन लाइन क्या कर दी कि टाइम्स पर एक से एक फाइटर चैनल में आ बिराजे और प्रो-सेंसर और एंटी सेंसर वकीलों में ऐसी विकट फाइट दिखी कि अर्णव भाई को भी छुड़ाना मुश्किल हो गया! प्राइम टाइम में ऐसा ही आइटम हिट होता है।
लेकिन जैसे सुपरहिट डायलॉग केजरीवाल देते हैं, वैसे मोदीजी तक नहीं दे सकते! उनके डायलॉग सबकी जुबान पर अपने आप चढ़ जाते हैं। लगा कि बाकी सब भी वही डायलॉग बोले जा रहे हैं! सब इसी विक्टिम मोड में बोलते दिखे। एक ही दिन में एक दर्जन विक्टिम बार-बार दिखते रहे। वही: ‘मुझे काट लो, मुझे मार दो, लेकिन मेरे बंदे को कुछ न कहो!’
ऐसे कड़क डायलॉग तो कादर खान तक नहीं बोल सकते! एकदम पर्सनल और उतने ही पोलिटिकल! एक फिल्म की तरह। ‘इक्कीस’ के आउट होने की आशंका सामने, लेकिन पलटवार उतना ही चोखा कि सुनें तो मजा आ जाय! विक्टिम खेलना हो तो ऐसे खेलें! एक हृष्ट-पुष्ट विक्टिम नजर आते हैं और विक्टिम विक्टिम गाते-गाते पलटवार करने लगते हैं। ऐसे विक्टिमों को देख कर दया नहीं आती, उल्टे आनंद आता है।
चैनलों को नेताओं का अहसान मानना चाहिए कि वे उनको खाली नहीं रहने देते। एक से एक डायलॉग मार देते हैं और चैनलों की दिहाड़ी बना देते हैं।
इस मामले में ‘आप’ टॉप पर नजर आई। बृहस्पतिवार को बैक टू बैक दो दो प्रेस ब्रीफिंग। केजरीवाल ने सिर्फ छह मिनट बोेला और हल्ला कर दिया। उनके बाद दिलीप पांडे की वक्तृता भी गजब की रही। वह परवान चढ़ ही रही थी कि दिखाने वाले दिलजले चैनल ने बीच में काट दी! क्या मिला तुझे ऐ दिलजले चैनल? क्या किसी ने कान खींचे? दर्शकों को डायलॉगों से क्यों महरूम किया तूने!
तीसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस कांग्रेस के आनंद शर्मा की। इशरत पेपरों के एक्सपे्रस के नए खुलासे को लेकर, लेकिन वह भी बीच में कट! किस दिलजले ने कट करवाया? न चैनल ने सॉरी कहा, न आनंद की शिकायत नजर आई!
चलिए, चैनलों को महंगाई मैडम की याद तो आई! पहले उनको एक ‘गेस्ट अपीअरेंस’ वाले सीन में एक चैनल ने उतारा, फिर वे महंगे टमाटरों और महंगी दालों के साथ नमूदार हुर्इं। पहले एनडीटीवी ने महंगाई मैडम को लिफ्ट दी, फिर इंडिया टुडे ने उनको जगह दी!
सवाल है कि टीवी में दिखाई जाती महंगाई सुंदर क्यों दिखा करती है? टमाटर एकदम लाल और गोल-गोल क्यों दिखते हैं? वे सड़े, पिचके, गले हुए क्यों नहीं दिखते, जैसे कि बाजारों में मिला करते हैं? कहां से शूट कर लाते हैं ऐसे मॉडल टमाटरों को? कहीं ‘मेड इन चैनल’ तो नहीं होते?
महंगाई की चर्चा जिस भाषा में हुई उससे महंगाई का डंक तक महसूस ही नहीं हुआ। एक चैनल ने बताया कि मई में महंगाई दशमलव चौंतीस प्रतिशत थी, अब दशमलव उन्यासी तक बढ़ी। लगा कहीं महंगाई का डंक? लगाते रहिए हिसाब! हां दूसरे चैनल ने मई से जून तक बढ़ते दामों की यात्रा को कुछ समझदारी से दिखाया कि किस तरह एक महीने में टमाटर बीस से साठ रुपए किलो तक पहुंचा तो अरहर छियासी से एक सौ पैंतालीस तक पहुंची।इसी तरह चना, मूंग, मसूर और तेल की चाल रही!
सरकार ने शायद खबर देख ली, सो तुरंत संवेदनशील हो उठी। सब चैनलों ने लाइन लगाई: वित्तमंत्री महंगाई के बारे में एक बैठक करने वाले हैं। बैठक कब हुई? क्या हुआ? कुछ खबर न हुई!