अपने खबर चैनलों का स्वभाव इतना कलहप्रिय हो चला है कि चाहे जितनी गुदगदी करने वाली खबर मिले, वे कुश्ती कराए बिना नहीं मानते। जरा सोचिए : एक राज्य के एक नए मुख्यमंत्री जी कल तक गर्व से कहा करते थे कि वे ‘किंग-मेकर’ हैं, लेकिन जब उनको ‘किंग’ बना दिया गया तो रोने लगे। है न मजे की बात! एक दिन भरी सभा में किसी बात पर वे बुक्का फाड़ के रोने लगे। कहने लगे कि मैं जहर पी रहा हूं जैसे भगवान विषपायी ने पिया था। मेरे सीएम बनने पर आप लोग खुश होंगे, लेकिन मैं खुश नहीं। मुख्यमंत्रित्व कांटों का ताज है।… फिर साथ लाए रूमाल से आंसू भी पोंछने लगे।
कांग्रेस नेता खरगे ने गंभीरता से कहा- गठबंधन में तो ऐसा होना स्वाभाविक है। उपमुख्यमंत्री ने हंसते हुए कहा कि वे खुश तो हम भी खुश! इतनी मजेदार स्टोरी थी, लेकिन हास-परिहास से कंगाल हमारे एंकर इसका भी पूरा लुत्फ न ले-दे सके। वे इस हास्यास्पद घटना पर भी कुश्ती कराते रहे। कांग्रेस पार्टी इन दिनों ‘अविश्वास प्रस्ताव’ के मूड में लगती है। इसीलिए शायद नेटफ्लिक्स के ‘सेक्रेड गेम्स’ के खिलाफ ही अविश्वास प्रस्ताव दे डाला। एक ने नेटफ्लिक्स की सीरीज पर मानहानि का मुकदमा कर दिया कि एक कार्यक्रम राजीव का अपमान करता है, उस कार्यक्रम को बंद करो।
यह क्या बात हुई सर जी! कल तक आप अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते रहे और अब खुद ही आजादी का गला घोंटने पर तुले हैं! इतना सहते हो, तो इसे भी सह लेते। शाश्वत सहनशील तो कहलाते। इतने में मुसलिम बुद्धिजीवियों की राहुल के साथ मीटिंग की खबर आई, तो कई भक्त चैनलों को राहुल की ठुकाई का मौका मिल गया। ‘कट टू कट’ दृश्य दुहराए जाने लगे और राहुल ठोके जाने लगे। एक चैनल ने सीधे लाइन लगाई : क्या मुसलमान फिर से बनेंगे वोट बैंक? अगले रोज एक उर्दू के अखबार ‘इंकलाब’ ने मुख्य खबर बनाई कि राहुल ने कहा है कि ‘कांग्रेस मुसलिमों की पार्टी है’।
इसे कहते हैं : ‘होम करते हाथ जला बैठना’। दो दिन कई हिंदी-अंग्रेजी एंकरों ने कांग्रेस की वो धुलाई कराई कि उसके प्रवक्ता तक हकलाते दिखे। ‘इंकलाब’ का संपादक कहने लगा कि राहुल ने ऐसा ही कहा था। कांग्रेस हर बहस में रक्षात्मक नजर आई। कांग्रेस एक बार फिर खबरनबीसी के फरेब में फंसी! कई चैनलों की बहसें एकदम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने वाली नजर आर्इं। कांग्रेस पर मुसलिम तुष्टीकरण का आरोप जम के चिपकाया गया। लाख कहते रहे शाहिद सिद्दीकी कि राहुल ने शायद ऐसा नहीं कहा होगा, लेकिन सुने कौन? एक एंकर पूछती रही : राहुल मुसलिम बुद्धिजीवियों से ही क्यों मिले? हिंदू बुद्धिजीवियों से क्यों नहीं मिले?
इस फंसाव से निकलने में कांग्रेस को पूरा एक दिन लगा। राहुल ने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस पीड़ितों और शोषितों की पार्टी है! आजकल जरा-जरा-सी बात पर कुछ एंकर बहसों में ‘हिंदू बरक्स मुसलमान’ कराने लगते हैं। कहीं यह हमारी आखों का ही फरेब तो नहीं कि वे जाने-अनजाने ‘सांप्रदायिक’ भाषा में भी बोलते लगते हैं? एक दिन अपने भाषण में ओवैसी ने सीधे दहाड़ा कि बताइए सेना में कितने मुसलमान हैं, सीआरपीएफ आदि में, पुलिस में कितने हैं और लीजिए चैनलों में सांप्रदायिक कहर बरपा हो गया। हर चैनल पर ‘हिंदू बरक्स मुसलिम’ होने लगा। एक चैनल पर तो ‘तुष्टीकरण’ मुष्टीकरण में बदलते-बदलते रह गया।
टाइम्स नाउ बहसों के बाद आजकल एक ‘डिस्क्लेमर’ देने लगा है कि बहसों में व्यक्त विचार चैनल के नहीं है, उनके हैं जो उनको बोलते हैं। अगर बाकी के चैनल भी इस तरह के ‘डिस्क्लेमर’ देने लगें तो चैनलों में आने वाली बकवास से चैनलों के पक्ष को अलगाने में दर्शकों को मदद मिलेगी। कभी-कभी तो लगता है कि इस देश को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट चलाता है। लिंचिंग की घटनाओं के खिलाफ बड़ी अदालत ने सरकार को तुरंत कानून बनाने का आदेश दिया। कैसे दिन आ गए हैं कि जो काम सरकार अपने आप कर सकती है, उसके लिए भी अदालतों को आदेश देना पड़ता है।
मानसून सत्र से ऐन पहले राहुल ने एक पत्र लिख कर महिला आरक्षण बिल को लाने की मांग पर पीएम और सरकार को रक्षात्मक करना चाहा, लेकिन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दुहत्थड़ मारा कि आइए! तीन तलाक और हलाला समेत महिला हित के कानूनों पर एक ‘न्यू डील’ करें! ‘न्यू डील’ की बात सुन हमें ‘अमेरिका’ याद आया! लेकिन संसद सत्र में राहुल ने अपने गजब के भाषण में पीएम से कहा कि आपने मुझे हिंदू, शिव और हिंदुस्तानी होने का मतलब समझाया।… भाषण खत्म कर वे सीधे पीएम के पास जाकर उनके गले मिले! मोदी ने फिर से बुला कर हाथ मिलाया! कभी न हसंते दिखने वाले मोदी भी हंसते दिखे। कुछ देर के लिए ‘तनाव शैथिल्य’ हुआ, लेकिन भाजपा इस नाटकीय ‘झप्पी’ के लिए तैयार नहीं दिखी। ‘पप्पू की जादू की झप्पी’ सब पर भारी पड़ी!
