पाटलिपुत्र के लिए जंग जारी है। जंग में सड़क छाप जुमले हैं। सड़क छाप कटाक्ष हैं। गली छाप कटुता है। नुक्कड़ छाप कड़वाहट है, कड़क है और स्ट्रीट फाइट वाली भड़क है।
भाषा में मानो सड़क की धूल भर गई है। कैमरे लांग शॉट को ले नहीं पाते। मंच से ज्यादा दूर की जनता नजर नहीं आती। कैमरे पैन करते हैं, तो आसपास की जनता ही नजर आती है। उनमें ज्यादातर युवा नजर आते हैं, लेकिन औरतें एकदम कम संख्या में नजर आती हैं। लेकिन अब जनसभाओं में वह जलवा नहीं दिखता, जो कुछ पहले तक नजर आया करता था।
या तो कैमरों की हड़बड़ी है या एंकरों की गड़बड़ी कि प्रधानमंत्री की रैलियों में आगे की कतारें उनके आवाहन पर न उस तरह से ताली बजाती है, न मोदी मोदी की आवाजें सुनाई पड़ती हैं।
भूकम्प का केंद्र हिंदुकुश में था और हड़कंप अपने खबर चैनलों में था। एक चैनल का रिपोर्टर एक आदमी से पूछ रहा था: भूकम्प आपको कैसा लगा? और वह बंदा भी आनंदित भाव से बताए जा रहा था कि जब वह बैठा हुआ था तो उसे किस तरह झटके महसूस हुए। गनीमत थी कि उसने अपने बदन को हिला कर नहीं दिखाया!
केरल भवन में अचानक पुलिस दिखती है। कहानी वही: कैंटीन में गोमांस परोसने का शक और तुरंता पुलिस एक्शन! उसके बाद पुलिस की सॉरी सॉरी शक्ल!
ये बदहवासी क्यों? कैमरों में पुलिस भी अगर बदहवास दिखे तो फिर जनता किस तरह से दिखे? हर चैनल हर बड़ी खबर को एक जैसी बड़ी क्यों बनाता है? दिल्ली में कूड़ा एक बड़ी खबर बनी, लेकिन लगा सबके पास कूड़े के एक-से स्टॉक शॉट हैं! चैनल कूड़े के फैलाव तक नहीं पहुंचते। वे एकाध शॉट से काम चलाते हैं। सबसे बेहतर और सुरक्षित है स्टूडियो में शामों की कूड़ा जुगलबंदियां और कूड़ा बकझक और सड़क का कूड़ा वहीं का वहीं!
भारत अफ्रीकी शिखर सम्मेलन से बड़ी खबर पाकिस्तान से अपने परिवार की खोज में आई गीता की है और उससे भी बड़ी खबर छोटा राजन की है। हमारे अंगरेजी चैनल तक इस शिखर सम्मेलन को उतना महत्त्व नहीं देते दिखते, जितना कि वह दिए जाने योग्य है। जकरबर्ग भी बड़ी खबर नहीं बनते, बल्कि छोटा राजन की खबर हर जगह बार-बार आती रहती है।
जो चैनल हर बे्रक के बाद हम सबको आगे रखने की बात करता रहता है वह दावा करता है कि छोटा राजन ने उससे बात करते हुए बताया है कि उसने सरेंडर नहीं किया, यानी वह पकड़ा गया है, लेकिन वह भारत आना चाहता है और सीबीआइ को सब कुछ बताना चाहता है। ऐसा दावा न्यूज एक्स करता है कि उसके पास छोटा राजन से की गई एक्सक्लूसिव बातचीत है और यहां भी खबर वही है कि वह पकड़ा नहीं गया, वह तो भारत आना चाहता है।
टाइम्स नाउ बताता है कि उसके पास राजन का चौथा साक्षात्कार उपलब्ध है, जिसमें वह सरेंडर की खबर को गलत बताता है और कहता है कि वह तो खुद भारत आना चाहता है। सीबीआइ इस बाबत कुछ नहीं बोलती क्यों नहीं दिखाई जाती कि उसने राजन को ‘पकड़ा’ है या राजन ने योजना बना कर खुद को बाली द्वीप में ‘पकड़वाया’ है?
एक बार फिर से जाहिर हुआ कि हमारे चैनलों को विकासमूलक खबरों के मुकाबले सनसनीखेज खबरें दिखाना ज्यादा पसंद है। उनकी नजर में जनता को अंडरवर्ल्ड की कहानियों में ज्यादा मजा आता है! ऐसी कहानियां ही उनकी टीआरपी बढ़ाती हैं, लेकिन एक दूर की नकल से टीआरपी कैसे बढ़ सकती है, इसका खुलासा कौन करे?
जब सब चैनल एक ही समय में एक-से फुटेज दिखा-दिखा कर दावा करने लगते हैं कि छोटा राजन की गिरफ्तारी का और उससे ताजादम बातचीत का असली ‘एक्सक्लूसिव’ फुटेज सिर्फ उन्हीं के पास है, तो समझिए कि किसी के पास कुछ भी एक्सक्लूसिव नहीं है। वह एक दी हुई यानी कि पहले से बनाई हुई टेलर्ड खबर है, जैसा कि छोटा राजन के समर्पण की खबर में नजर आया!
मुंबई के प्रेस क्लब में बढ़ती असहिष्णता के खिलाफ अपने सम्मान लौटाने का एलान करने वाले तीन फिल्मकार तीन माइकों के आगे बारी-बारी से कहते हैं कि वे विरोध में सम्मान लौटा रहे हैं। एनडीटीवी का रिपोर्टर एक लिस्ट से लौटाने वालों के दस नाम गिनाता है।
भाजपा प्रवक्ता इसे ‘मोदी के विरोधी कैंप की हरकत’ मानते हैं। वे हर बात को मोदी के ‘बरक्स’ बता कर उठते सवालों को इसी तरह ‘दाखिल दफ्तर’ करते हैं!
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