जब मानव जीवन की तमाम उपलब्धियों को केवल भौतिक उपलब्धियों के रूप में देखा जाने लगा हो, तब कविता की उपयोगिता के बारे में निश्चय ही कई तरह के सवाल उठाए जा सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं, अगर इन सवालों के मनमाने जवाब देने के बाद हमारे शिक्षा-पाठ्यक्रमों से कविता को फालतू चीज मान कर बिल्कुल हटा ही दिया जाए। कविता वैसे भी अब हमारी बोलचाल में, हमारे सांस्कृतिक पर्यावरण में छीजती जा रही है, इसलिए संभव है कि किसी दिन हमारी भाषा पूर्णत: काव्य-शून्य और परिणामस्वरूप सर्वथा रसशून्य हो जाए। शास्त्रीय संगीत के प्रेमी श्रोताओं की संख्या जिस तरह दिन-ब-दिन कम होती जा रही है, उसी तरह हो सकता है, अच्छी और प्रभावोत्पादक कविता के प्रेमी भी धीरे-धीरे अंगुलियों पर गिनने लायक ही रह जाएं।

अगर किसी दिन ऐसा होता है, तो यह समूची मानवता के लिए सचमुच बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा, क्योंकि कविता की रचना हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ही संभव होती है, जो सामान्य जन की तुलना में बहुत अधिक संवेदनशील रहा हो। कविता के संदर्भ में हम बार-बार महर्षि वाल्मीकि को याद करते हैं, जिनका विरल गुण एक मिथुनरत क्रौंच-युगल के एक व्याध द्वारा तीर से बींध दिए जाने पर ऐसी करुणा से भर जाना था, जो तुरंत काव्य-रूप में फूट पड़ी थी। हर तरह की कविता अंतत: हर्ष-विषाद, प्रेम-घृणा, वैराग्य, वितृष्णा, कुंठा, शोक, निराशा, हताशा, ऊब, भक्ति, उल्लास, समर्पण, त्याग, उदारता, करुणा, उत्सर्ग जैसे भावों या उनके अनेकानेक यौगिकों की अभिव्यक्ति ही तो साबित होती है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जो वास्तव में कवि है, वह किसी भी मनोभाव को अतिरिक्त संवेदनशीलता के साथ अनुभव करता है और उसकी यह अतिरिक्त संवेदनशीलता ही उसे अपने मनोभावों को एक ऐसे रूप में अभिव्यक्त करने की क्षमता दे देती है, जिसे हम कविता का नाम देते हैं और जिसमें अन्य सहृदय पाठकों या श्रोताओं के मन में पैठ कर वैसा ही मनोभाव पैदा कर सकने की भी एक अद्भुत और अनूठी क्षमता होती है। किसी मनुष्य को अतिरिक्त संवेदनशील बना सकने वाले इस साधन पर यदि मानव की पकड़ धीरे-धीरे छूट जाए तो क्या हम इसे मानवता की एक बहुत बड़ी हानि के रूप में नहीं देखेंगे!

जो गलत हो रहा है, उसके बारे में अगर हमें अधिकाधिक लोगों को जागरूक करना है, तो यह कविता के जरिए ही संभव है। आज के समय में जो उचित और वरेण्य है, उसके बारे में हमें आज की कविता ही बता सकती है। कविता ने हमेशा वैसा किया है। उसने कुरुक्षेत्र में कर्तव्य से विमुख होते अर्जुन को फिर से उसके प्रति सचेत किया है। कबीर जैसे कवियों की कविता ने इंसान और इंसान के बीच भेद मिटाने का काम कई बार किया है। हमारे पारिवारिक मूल्यों को बचाए रखने का काम रामचरितमानस ने न जाने कितने परिवारों में किया होगा। मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य भूल रहे लोगों को उसकी याद दिलाने का काम भी कविता ने अनेक बार किया। सांसारिकता में लिपटे लोगों को इस संसार की नश्वरता के बारे में आगाह करने का आवश्यक काम कविता कई तरह से करती रहती है।

हमारे इस विकट समय में लोगों को सही राह दिखाने का काम कर सकने वाली कविता आज भी लिखी जा रही है, पर दुर्भाग्य से उस कविता तक अधिकांश पाठकों-श्रोताओं की पहुंच नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि इस तरह की अच्छी कविता अधिकाधिक लोगों तक पहुंच पाए। ऐसी कविता कभी पाठ्य पुस्तकों का हिस्सा बन कर हमारे करोड़ों विद्यार्थियों तक पहुंचेगी, इस बात की संभावना इस समय बहुत कम है। एक विचित्र बात यह हुई है कि जो आज के सिद्ध और सक्षम कवि हैं, उनकी रचनाओं तक आम आदमी की पहुंच बिल्कुल नहीं है। आज बहुत से अन्य लोग कवि कहलाने की आकांक्षा पाले हुए हैं, जिनका वस्तुत: कविता से कोई लेना-देना नहीं है। ये लोग मोटे तौर पर अत्यंत असंवेदनशील हैं, पर वे साधन-संपन्न तथा प्रभावशाली हैं और बड़ी आसानी से अपनी घटिया पुस्तकों को भी अच्छी कविता पुस्तकों के बीच रखवा सकते हैं। इनमें से कुछ लोग तो अपनी घटिया कविताओं को स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी शामिल करवा सकते हैं। कचरे के ढेर में दबी हुई अच्छी कविता पर इस तरह पाठक की नजर ही नहीं पड़ पाती और वह उस शक्तिशाली कविता से रूबरू होने से वंचित रह जाता है, जो उसकी संवेदना को धार दे सके या उसे परिष्कृत कर सके।