सत्ता हासिल करने के बाद राजनेताओं की सबसे बड़ी समस्या होती है, जमीनी हकीकत से जुड़े रहने में। दूरियां इतनी बन जाती हैं कि उनकी राजनीतिक सूझ-बूझ कमजोर होने लगती है। महामारी के इस दौर में यह समस्या इतनी गहरा गई है कि इन दिनों जब प्रधानमंत्री कोई भाषण देते या मन की बात करते हैं, ऐसा लगता है कि किसी और देश के प्रधानमंत्री हों। किसी ऐसे देश के, जहां समृद्धि और संपन्नता वर्षों पहले आ गई हो। पहली बार मुझे ऐसा लगा, जब उन्होंने वह दीये जलाने वाला भाषण दिया था अप्रैल में, यह कहते हुए कि रात के नौ बजे इस देश के एक सौ तीस करोड़ लोगों से आग्रह है कि वे अपने घर की बत्तियां बंद करके अपने दरवाजों पर खड़े होकर या घर की बालकनी में, दीये जलाएं या अपने सेलफोन की बत्ती जला कर रखें नौ मिनट के लिए।
वह पहली पूर्णबंदी का नौवां दिन था और लाखों देशवासियों को बेघर हो जाने के बाद शहरों को छोड़ कर अपने गांवों तक पैदल जाने पर मजबूर किया गया था, लेकिन प्रधानमंत्री को न इसकी जानकारी थी और न ही उनको किसी ने याद दिलाया था कि भारत में अधिकतर लोग कच्चे मकानों में रहते हैं या एक कमरे के छोटे मकान में, जिनमें बालकनी होने का सपना भी नहीं देख सकते हैं। बाद में कई राजनीतिक पंडितों ने हैरान होकर कहा अपने लेखों में कि ऐसा लगता है कि मोदी देश के यथार्थ से बहुत दूर हो गए हैं। न हुए होते तो कम से कम बालकनी वाली बात न कहते।
पिछले सप्ताह मोदी ने एक और भाषण दिया, जिसे सुन कर मुझे लगा कि वास्तव में मोदी बहुत दूर हो गए हैं यथार्थ से। इस भाषण में प्रधानमंत्री ने अमेरिकी निवेशकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में निवेश करने के लिए यह सबसे अच्छा समय है, इसलिए कि उनकी सरकार ने ऐसे सुधार किए हैं, जिनसे ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का माहौल बन गया है। यानी लालफीताशाही को इतना कम कर दिया है उनकी सरकार ने कि भारत में निवेशकों के सामने वे अड़चनें नहीं रही हैं, जो इतनी ज्यादा हुआ करती थीं कभी कि विदेशी निवेशक भारत से दूर भागा करते थे।
यथार्थ यह है मोदीजी, कि एक छोटी-सी चीज भी आयात करने में इतनी दिक्कतें सामने आती हैं कि कोविड के इस दौर में जब आॅनलाइन खरीदारी पर हम मजबूर हैं, कई लोग तौबा कर चुके हैं, जिनमें मैं भी हंू। विदेशी निवेशकों को बहुत बड़े पैमाने पर निर्यात करने की जरूरत होती है। सो, कल्पना कीजिए उनका हाल क्या होता होगा। ऊपर से लालफीताशाही की मुसीबतें। मोदी सरकार की अपनी एक सूची के मुताबिक बिजनेस शुरू करने से पहले 767 इजाजतें लेनी पड़ती हैं पैंतीस मंत्रालयों से।
रही बात देशी निवेशकों की, तो क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि उनकी सरकार कितनी बार इस देश की बेहतरीन कंपनियों को कंगाल करके छोड़ देती है, उनको इंस्पेक्टर राज के हवाले करके? क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि कई बड़ी कंपनियां घाटे में चली जाती हैं सिर्फ इसलिए कि सरकार उनको वह पैसे नहीं देती, जो उन्होंने देश की सड़कें, बिजली घर और बांध बनाने पर खर्च किए हैं सरकार के कहने पर? ठेकेदारों पर बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं और अदालतों के चक्कर लगाने पर मजबूर किया जाता है कई कई साल। अब प्रधानमंत्री बातें कर रहे हैं इन्फ्रास्ट्रक्चर में लाखों करोड़ रुपए निवेश करने की, लेकिन कौन सामने आएगा निर्माण करने के लिए?
पूर्णबंदी के शुरुआती दिनों में वित्तमंत्री एक पूरे हफ्ते टीवी पर दिखीं बड़ी-बड़ी बातें करती हुई, निवेशकों को आकर्षित करने के लिए, लेकिन क्या जानती नहीं हैं कि यथार्थ क्या है? यथार्थ यह है कि लालफीताशाही इतनी है आज भी कि इन्स्पेक्टर राज उतना ही है, जितना मोदी के आने के पहले हुआ करता था। इंडियन एक्स्प्रेस के एक ‘अड्डे’ में मैंने निर्मलाजी से सवाल किया था कि क्या वे चाहती हैं कि देश में लाखों करोड़पति बन जाएं, ताकि क्षमता बढ़े नए रोजगार पैदा करने की, तो उन्होंने बेझिझक हां कहा। मगर आज तक कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया है भारत सरकार ने, जिससे साबित हो कि वास्तव में नरेंद्र मोदी देश की आर्थिक दिशा बदलना चाहते हैं। उसी पुरानी आर्थिक दिशा में चल रहे हैं हम। भाषण देते हैं बहुत अच्छे मोदी, लेकिन बहुत जल्दी इन भाषणों के बाद साबित हो जाता है कि आगे कुछ नहीं होने वाला है।
मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने की बहुत बातें की हैं हाल में। कहा है कि किसानों के लिए ऐसे प्रावधान होने वाले हैं, जिनसे वे अपने फल और सब्जियां निर्यात कर सकेंगे। यथार्थ यह है कि आज भी भारत के खेतों में इतनी सब्जियां और फल सड़ते हैं कि अनुमान लगाया जाता है कि अगर निर्यात के रास्ते खुल जाते तो पूरे ब्रिटेन के लिए काफी होते। मेरा भाई किसान है। पिछले हफ्ते जब मैंने उससे पूछा मोदी सरकार के कृषि सुधारों के बारे में, उसने कहा कि निकट भविष्य में उसको परिवर्तन आता नहीं दिखता है कृषि क्षेत्र में। जब तक मंडियां नहीं बनती हैं लाखों की तादाद में, जिन तक सब्जी और फल आधे घंटे के अंदर पहुंचाए जा सकें, तब तक खेतों में ही सड़ते रहेंगे।
प्रधानमंत्री भाषण बहुत अच्छा देते हैं। अपने शब्दों से सपने दिखाते हैं सुनहरे-सुनहरे, लेकिन अभी तक ये सपने सिर्फ सपने ही रह गए हैं, शायद इसलिए कि जमीनी हकीकत से न सिर्फ वे खुद दूर चले गए हैं, साथ में अपने सलाहकारों को भी ले गए हैं। फासले पहले से थे, लेकिन अब इस महामारी ने बहुत बढ़ा दिए हैं।