ये दिन इतने छलिया हैं कि जो चला दो, सो चल जाता है। चैनल तब तक चलाते हैं जब तक कि दूसरा चलन में नहीं आ जाता। नाम बदलने की बात चली तो एक से एक नाम बदलने वाले आ जुटे। नाम बदल की झोंक में एक चैनल ने ही सबका ज्ञानवर्धन किया कि एक सौ इकहत्तर शहरों के नाम औरंगजेब के नाम पर हैं, एक सौ इकतालीस जहांगीर के नाम पर हैं और अकबर के नाम पर सबसे अधिक हैं। किस किस को बदलेंगे? बदलने वालों की उतावली देख दूसरे ताना देने लगे कि क्या क्या बदलोगे? लाखों गांव, गली, मुहल्लों के नामों का क्या करोगे? फिर लोगों के नामों का क्या करोगे? उर्दू भाषा का क्या करोगे? सिर्फ मिरर नाउ की एंकर ने यह पूछ कर एक नाम बदलने वाले के उत्साह पर पानी फेरा कि सर जी, क्या नाम बदलने के लिए ही ‘जनादेश’ मिला था? कहीं आपके घोषणा पत्र में लिखा है?
सच कहें सर जी! कुछ देर तो प्रवक्ता जी को समझ न आया कि क्या बोलें, फिर बोले कि यह हमारी भावनाओं की बात है। ऐसे परिवर्तनवादी दिनों में भी कुछ मसखरी करने वाले चुटकी लेने से नहीं चूकते। ओवैसी ने चुटकी ली कि भाजपा के अध्यक्ष के नाम का ‘शाह’ शब्द फारसी का है। उसे पहले बदलो?
एक दिन बाद एक चैनल ने ज्ञानवर्धन किया कि शाह फारसी से नहीं, जैन साहित्य से आया है। वहां आठवीं सदी में साहू चलता था, घिसते घिसते यह ‘शाह’ रह गया। पहली बार टीवी ने भाषाविज्ञान से लेकर मानवविज्ञान तक पर देश की क्लास ले डाली! गनीमत है कि अभी तक किसी ने नहीं सुझाया कि ‘हिंदुत्व’ का नाम ‘सिंधुत्व’ कर लेना चाहिए, क्योंकि ‘हिंदू’ शब्द भी तुर्कों ने दिया है!
शिव शिव बोलिए शिव शिव!
कभी कभी ऐसी बातें भी कुछ चैनल बोल देते हैं, जिनको सुनने से हमारी आत्मा को बड़ा कष्ट पहुंचता है।
एक चैनल जो ‘नेशनल अपू्रवल रेटिंग्स’ दिया करता है और अक्सर पूछता रहता है कि अगर आज लोकसभा का चुनाव हो जाए तो किसको कितनी सीटें मिलेंगी? उसका ऐसा पूछना हमें बड़ा दुखदायी लगता है।
एक शाम उसके विशेषज्ञ ने एनडीए की जो प्रक्षेपित सीट संख्या बताई वह बहुमत से कुछ कम ही रही। यूपीए की हालत पतली ही रही, लेकिन ‘अदर्स’ तो बहुत आगे नजर आए। ये ‘अदर्स’ कौन हैं जी?
और क्या आज चुनाव हो रहे हैं, जो आप कहते रहते हैं कि अगर आज चुनाव हों तो किस दल को कितनी सीटें मिल सकती हैं या आप माहौल बनाए रखना चाहते हैं कि अगर आज हो तो…
शिव शिव बोलिए सर जी शिव शिव!
और सरजी ये राफेल हमारा पिंड छोड़ेगा कि नहीं? हमेशा ‘कन्फयूज’ बताए जाने वाले राहुल जब-जब राफेल का नाम ले देते हैं, दिल्ली से पेरिस तक हिल जाते हैं। इस बार भी एक दिन राहुल ने ज्यों ही राफेल का नाम लिया कि दसौ के सीइओ रिक ट्रेपियर बोल उठे कि मैं दसौ का सीइओ हूं, मैं झूठ नहीं बोलता। दसौ ने अपने आप अंबानी को चुना।
तभी एक चैनल पर कपिल सिबल आकर पूछने लगे कि तब सरकार से सरकार का सौदा क्या हुआ? वह तो अच्छा हुआ कि चैनलों ने उनको ज्यादा देर तक न दिखाया! ये क्या बाल की खाल निकालते हैं जी! अरे दसौ का दिल आया अंबानी पर, तो फिर ‘हाल’ क्या चीज है?
राफेल कथा से राहत दी तो ‘दीप वीर’ की शादी की खबर ने दी!
शादी को कवर करने से वर्जित किए जाने के बावजूद हमारे रिपोर्टर इटली के लेक कोमो रिसॉर्ट के कसीदे काढ़ने लगे कि कितना महान है ये विला कि जेम्सबांड की फिल्म तक शूट हुई है और अब यहां हम सदी की सबसे बड़ी शादी देख रहे हैं। एक कमरे का किराया प्रतिदिन दो हजार यूरो से तीस हजार यूरो तक है।…
सबसे अच्छी बात यह है कि अपने यहां कोई कहानी खत्म नहीं होती। वह खंड खंड होकर अखंड भाव से चलती रहती है।
सबरीमला में प्रवेश की कहानी का भी दूसरा चक्र शुरू हुआ। केरल के सीएम ने सर्वदलीय बैठक बुलाई, तो बीजेपी, कांग्रेस ने बहिष्कार कर दिया। कोई फैसला नहीं हुआ।
इस बीच परंपराभंजक भक्त तृप्ति देसाई ने सबरीमला कहानी में एंट्री ली और कह उठीं कि वे सबरीमला में प्रवेश करके ही वापस जाएंगी और कोच्चि पहुंच गर्इं। दूसरे भक्त बोल उठे कि नहीं जाने देंगे।
सीन देखिए : कोच्चि एयरपोर्ट पर इधर वे खड़ी हंै, बाहर विरोधी भक्त खड़े हैं, पुलिस बीच में है और चैनल घबराए हुए पूछते फिर रहे हैं कि अब क्या होगा?
वे कह रही हैं कि संघ, भाजपा के लोग विरोध कर रहे हैं, लेकिन न हम संघी हैं, न भाजपाई हैं, हम तो दर्शन करके जाएंगी।
सबरीमला की कहानी अभी खत्म नहीं हुई कि कर्नाटक गायक टीएम कृष्णा की नेहरू पार्क में तयशुदा कंसर्ट ऐन वक्त पर प्रायोजक एयरपोर्ट अथारिटी आॅफ इंडिया ने ‘पोस्टपोन’ कर दी और विवाद शुरू। गायक के पक्षधर कहें कि जानबूझ कर ऐसा किया गया, क्योंकि ट्रोलिस्तानी कृष्णा को अर्बन नक्सल मानते हैं। एक चैल पर कृष्णा बोले कि मैं सत्ता का आलोचक हूं, कुछ पहले एक और जगह कंसर्ट नहीं होने दिया। एक चैनल ने उनकी गायकी का एक टुकड़ा दिखाया-सुनाया, जो हमने भी देखा-सुना। अगर वह टुकड़ा भी किसी को खतरनाक लगता है, तो फिर इस मुल्क का भगवान ही बेली है!
