पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी अचानक दिखने लगे हैं। राजनीति का उनका खास अंदाज है। कभी अदृश्य हो जाते हैं महीनों तक और कभी हर दूसरे दिन उपस्थित हो जाते हैं। पिछले हफ्ते पहले दिखे नाटकीय ढंग से हाथरस के लिए पैदल रवाना होने की तैयारी करते हुए अपनी बहन प्रियंका के साथ और पुलिस ने जब रोका तो गिरफ्तारी देते हुए। फिर जब जाने की इजाजत मिली तो हाथरस गए और उस बच्ची के परिवार से मिलते हुए दिखे, जिसकी इतनी दर्दनाक मौत हुई थी।

हाथरस के बाद पंजाब में दिखे एक ट्रैक्टर पर मुख्यमंत्री के साथ आराम कुर्सी पर बैठे हुए। वहां पहुंचे थे और ट्रैक्टर पर सवार होकर दिखने से स्पष्ट कर रहे थे कि वे उन किसानों के साथ खड़े हैं, जो कृषि नीति में हाल में लाए गए सुधारों का विरोध कर रहे हैं। ट्रैक्टर की इस यात्रा के बाद सर्किट हाउस पहुंच कर पत्रकारों से मिले और जब किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि विपक्ष की भूमिका इतनी कमजोर क्यों है मोदी के इस दूसरे दौर में, तो उन्होंने फट जवाब दिया कि अगर मीडिया मोदी के कब्जे में न होता, और लोकतांत्रिक संस्थाएं भी, तो मोदी सरकार को कुछ दिनों में ही गिरा सकते हैं।

इसके बाद मैंने ट्विटर पर उनका एक विडियो देखा, जिसने मुझे बिलकुल हैरान कर दिया। इस विडियो में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कहते हैं कि उनकी सरकार होती तो चीन को पंद्रह मिनट में भारत की सरजमीन से ‘फेंक देती सौ किलोमीटर दूर’। आगे उन्होंने प्रधानमंत्री पर निजी तौर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘प्रधानमंत्री कायर है, सो कुछ नहीं कर रहा है’।

मुद्दे जो राहुल जी ने उठाए, महत्त्वपूर्ण हैं। समस्या है राहुल गांधी के ‘अंदाजे बयान’ की। राजनीति में आए उनको अब एक दशक हो गया है, लेकिन ऐसे बोलते हैं जैसे उनको मुद्दों की गंभीरता की समझ अभी तक न आई हो। पिछले आम चुनावों में जब उत्तर प्रदेश के देहातों में घूमने निकली थी मैं, तो मुझे कई साधारण गांव वाले मिले, जिन्होंने कहा कि राहुल गांधी को बोलने की तमीज नहीं है।

उस समय वे अपनी हर आमसभा में नरेंद्र मोदी को चोर कहते थे और उन साधारण लोगों को तकलीफ थी इस शब्द से कि उनकी नजर में देश के प्रधानमंत्री के बारे में ऐसा कहना बदतमीजी थी। इसी तरह जब प्रधानमंत्री को विपक्ष के सबसे बड़े नेता ‘कायर’ कहते हैं, तो बदतमीजी लगती है। और जब साथ में यह झूठ भी बोलते हैं कि उनकी सरकार चीनी सैनिकों को पंद्रह मिनटों में बाहर फेंक देती, तो क्या सेना को कायर नहीं कह रहे हैं राहुल जी?

मैं जब भी कांग्रेस के इस पूर्व युवराज तथा पूर्व अध्यक्ष के बारे में लिखती हूं, तो मुझे खूब गालियां पड़ती हैं कांग्रेस की ट्रोल सेना से सोशल मीडिया पर और अक्सर इल्जाम उनका होता है कि गांधी परिवार से मुझे नफरत है इतनी कि मैं अंधी हो जाती हूं और मेरी आलोचना बेमतलब। यही आरोप मेरे ऊपर लगाते हैं भाजपा के ट्रोल, जो इतने सुनियोजित तरीके से कहते हैं अपनी बात कि ऐसा लगता है कि किसी सेनाध्यक्ष के इशारे पर चलते हैं। उन सबको कहना चाहती हूं कि जब कोई फिल्म आलोचक किसी फिल्मी सितारे के काम की आलोचना करता है, तो क्या वह भी नफरत के कारण? मैं एक राजनीतिक विश्लेषक हूं, सो राजनेताओं की आलोचना करना मेरा काम है।

विनम्रता से अर्ज करती हूं कि मैं जो आगे कहने जा रही हूं उसे रचनात्मक आलोचना माना जाए। देश को आवश्यकता है एक ताकतवर विपक्षी नेता की, जो मोदी सरकार की हर गलती पर गंभीरता से हमारा ध्यान आकर्षित कर सके। मोदी के दूसरे दौर में गलतियां इतनी बड़ी हुई हैं कि उन पर ध्यान दिलाना विपक्ष के राजनेताओं का फर्ज है। राहुल गांधी ही हैं फिलहाल विपक्ष के खेमे में जो मोदी को चुनौती दे सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ एक ताकतवर विपक्षी राजनीतिक दल है और वह है कांग्रेस।

इस दल ने दो आम चुनाव लड़े और हारे हैं राहुल गांधी के नेतृत्व में और इसके बावजूद इस दल में राहुल जी के बराबर के सिर्फ दो लोग माने जाते हैं : उनकी माताजी और उनकी बहन। इस परिवार के खिलाफ अगर कोई दो शब्द बोलता है, उसकी बोलती बंद कर दी जाती है। ऐसा हमने देखा, जब कुछ हफ्ते पहले कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कुछ सवाल पूछे थे।

सो, स्पष्ट हो गया है कि निकट भविष्य में कांग्रेस का नेतृत्व रहेगा गांधी परिवार के हाथों में और इस परिवार के कर्ता रहेंगे राहुल गांधी। तो क्या राहुल जी को कोई इतना नहीं सिखा सकता है कि जितना गंभीर मुद्दा होता है उतनी गंभीरता से उसके बारे में बोला जाना चाहिए। चीन पर मोदी की वास्तव में नीति नाकाम रही है। शी जीनपिंग से जितना मिले हैं अपने कार्यकाल में, किसी अन्य विदेशी नेता से नहीं मिले हैं, लेकिन अठारह बार मिलने के बाद फल मिला है लद्दाख में सीमा पर यही कि तीस वर्ष बाद बंदूकें चली हैं।

हमारी सेना ने जवाब दिया है इस आक्रमण का, लेकिन प्रधानमंत्री ने आज तक चीन का नाम लेकर उस पर दोष नहीं डाला है। फिर भी उनको कायर कहना गलत है, क्योंकि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं और इस पद की गरिमा अगर विपक्ष के सबसे बड़े नेता नहीं रखते हैं तो कौन रखेगा। मोदी के इस दूसरे दौर में और भी गलतियां हुई हैं बहुत सारी। अर्थव्यवस्था पर मंदी छाई हुई है। महामारी पर नियंत्रण नहीं दिख रहा है। प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का सामना नहीं किया गया है। इन सब पर बात अगर राहुल गांधी करते हैं गंभीरता से, तो उनको गंभीरता से लिया जाएगा। नहीं तो नहीं।

अर्थव्यवस्था पर मंदी छाई हुई है। महामारी पर नियंत्रण नहीं दिख रहा है। प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का सामना नहीं किया गया है। इन सब पर बात अगर राहुल गांधी करते हैं गंभीरता से, तो उनको गंभीरता से लिया जाएगा। नहीं तो नहीं।