हमारे राजनेताओं और आला अधिकारियों पर भगवान कुछ खास मेहरबान होंगे इन दिनों, वरना ऐसे कैसे हो सकता है कि पनामा खुलासे में अभी तक उनके नाम नहीं आए हैं। रूस और चीन के तानाशाहों के रिश्तेदारों और दोस्तों के नाम आए हैं, यूरोप में भी इस खुलासे ने सनसनी फैलाई और अपने पड़ोस में नवाज शरीफ के इतने परिजनों के नाम आए हैं कि पाकिस्तान में हंगामा मच गया है। तो अपने राजनेता कैसे बच गए? मैंने जब इसके बारे में ट्वीट किया तो कई लोगों ने मुझे समझाने की कोशिश की कि अपने लोगों के लिए पनामा बहुत दूर है, तो वे दुबई, हांगकांग जैसी जगहों को ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसी ही कुछ बात हुई होगी, क्योंकि हम जानते हैं कि राजनीति में आने के लिए तकरीबन हर बड़े राजनेता के बच्चे सिर्फ इसलिए उतावले होते हैं क्योंकि वे जानते हैं अच्छी तरह कि भारत में जनता की सेवा करने में कितनी अपनी सेवा हो सकती है।

पनामा खुलासे का असली सबक यह है कि जिन देशों में अर्थव्यवस्था पूरी तरह राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के नियंत्रण में होती है उन देशों में भ्रष्टाचार के बेहिसाब रास्ते बनते हैं। अपने भारत में भी ऐसा हुआ है, क्योंकि 1947 से 1991 तक हमारी समाजवादी आर्थिक नीतियों द्वारा एक आर्थिक तानाशाही कायम थी, जिसका बुनियादी उसूल यही रहा कि राजनेता ईमानदार हैं और बिजनेस करने वाले चोर। सो, जब हमारे राजनेताओं ने लाखों करोड़ रुपए सरकारी कारखानों में डुबो दिया तो हम चुप रहे, लेकिन एक विजय माल्या ने नौ हजार करोड़ रुपए का लोन वापस नहीं किया तो हंगामा मच गया देश भर में। किसी ने यह नहीं पूछा कि एअर इंडिया में जब डूब जाते हैं चालीस हजार करोड़ रुपए तो उस वक्त हमको तकलीफ क्यों नहीं होती है। वह भी तो जनता का पैसा है न?

इस तरह के सवाल अगर हमने बहुत पहले पूछे होते तो मुमकिन है कि भारत के लोग इतने गरीब न होते आज के सत्तर प्रतिशत भारतीय बीस रुपए रोजाना से ज्यादा नहीं खर्च पाते हैं। समाजवादी आर्थिक नीतियों के कारण हमारे वे राज्य सबसे गरीब हैं, जो सबसे धनवान हो सकते थे। मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओड़ीशा। इन राज्यों में अगर पर्यटन के जरिए ही धन कमाने की कोशिश ढंग से हुई होती, तो गरीबी कब की मिट गई होती। याद रखिए कि ऐसा शायद ही कोई विदेशी पर्यटक होगा, जो ताजमहल देखने न गया हो, लेकिन आगरा शहर का यह हाल है कि उसका ज्यादातर हिस्सा झुग्गी बस्ती जैसा दिखता है। बिहार में विदेशों से आते हैं बौद्ध धर्म को मानने वाले लाखों तीर्थयात्री, लेकिन गया में अगर कुछ इलाके सुंदर हैं, तो सिर्फ इसलिए कि जापान और थाईलैंड से आए बौद्ध लोगों ने खूब पैसा लगा कर अच्छे होटल और बाग बनाए हैं। रही बात ओड़ीशा की, तो वहां प्राचीन मंदिरों का बेमिसाल भंडार है, लेकिन कोणार्क जैसी जगह में आपको ढंग का होटल नहीं मिलेगा।

यह हाल हमारे समाजवादी राजनेताओं ने किया है देश का, क्योंकि उनकी नजर में पर्यटन के साधनों पर पैसा लगाना फिजूलखर्ची है। चीन में आज अगर भारत से दस गुना ज्यादा विदेशी पर्यटक आते हैं तो सिर्फ इसलिए कि चीन के शासकों ने कोई चालीस वर्ष पहले समझ लिया था कि समाजवादी और मार्क्सवादी आर्थिक नीतियों से कभी समृद्धि नहीं आ सकती है। भारत में आज हम थोड़ी-बहुत समृद्धि देख सकते हैं तो वह इसलिए कि 1991 में जब लाइसेंस राज समाप्त कर दिया गया था तो देश के उद्योगपतियों ने जिम्मेवारी संभाली अर्थव्यवस्था की अगुवाई करने की। रोजगार के नए अवसर पैदा हुए, शहरों में नई इमारतें, नए उद्योग खड़े हुए और भारतीय कंपनियां थोड़े ही समय में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों का मुकाबला करने लगीं।

आज उनका हाल बुरा है तो इसलिए कि सोनिया-मनमोहन शासन के आखिरी तीन वर्षों में समाजवादी आर्थिक सोच दुबारा जिंदा हुई और इन कंपनियों पर सरकारी अधिकारियों का नियंत्रण फिर से कायम कर दिया गया। बड़ी-बड़ी योजनाएं, जिनमें करोड़ों रुपए का निवेश हो चुका था वे बंद कर दी गर्इं, किसी न किसी बहाने। उदाहरण है वेदांता कंपनी का वह एल्यूमीनियम कारखाना ओड़ीशा के लांजीगढ़ गांव में, जो राहुल गांधी ने खुद जाकर बंद कराया था। बंद करने का बहाना था कि वहां के आदिवासियों के लिए नियमगिरी पहाड़ देवता समान है, सो इन पहाड़ियों में से बॉक्साइट निकालना उनके लिए महापाप माना जाता है। इस कारखाने को बंद न किया होता राहुल गांधी ने तो मुमकिन है कि आज ओड़ीशा विश्व का सबसे बड़ा केंद्र होता एल्यूमीनियम उत्पादन के लिए।

ऐसा अक्सर होता है जब राजनेताओं और आला अधिकारियों को आर्थिक जिम्मेदारियां इतनी दी जाती हैं कि होटल भी चलाना उनका काम होता है और लड़ाकू विमान बनाना भी उनका जिम्मा। एक बार जब बिजनेस करने की आदत उनको पड़ जाती है तो बिजनेस करना शासन से अच्छा लगने लगता है, क्योंकि बिजनेस में पैसा होता है और स्कूल, अस्पताल चलाने में कम। ऐसा ही कुछ हुआ है अपने इस भारत महान में। सो, मुझे विश्वास था कि पनामा वाले खुलासे से निकल कर आएंगे हमारे शासकों के नाम। ऐसा जब नहीं हुआ तो मैंने थोड़ी-बहुत तहकीकात शुरू की निजी तौर पर।

इस जांच के जरिए मालूम हुआ कि अपने राजनेता और आला अधिकारी अपना पैसा दुबई और हांगकांग जैसी जगहों पर रखना ज्यादा पसंद करते हैं। यह भी मालूम हुआ कि आजकल पैसा बैंकों में नहीं, जमीन-जायदाद में रखा जाता है। कहते हैं कि दुबई में ऐसी कई इमारतें हैं, जिनमें तकरीबन सारे फ्लैट भारतीयों के हैं। आशा कीजिए कि पनामा खुलासे के बाद जल्दी ही आएगा दुबई खुलासा।