तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता (अम्मा) ने बड़ी कठोरता से शासन किया। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार खूब पनपा, पर तब एक काम करने वाली सरकार भी थी। जयललिता इस दुनिया से विदा हो चुकी हैं (उनकी आत्मा को चिर शांति मिले), और अब तमिलनाडु के इतिहास के उस अध्याय की चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है। महत्त्वपूर्ण सवाल अब यह है, तमिलनाडु किधर जा रहा है? जयललिता अपने पीछे एक पार्टी और एक सरकार छोड़ कर विदा हुर्इं, जिसे 234 सदस्यों की विधानसभा में 135 सदस्यों का समर्थन हासिल था, पर उन्होंने किसी को उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया था। शायद वह सोचती थीं कि अपनी बीमारी से पार पा लेंगी; शायद उनका खयाल था कि वे इस बारे में पर्याप्त संकेत दे चुकी हैं कि ओ पन्नीरसेलवम (जो पहले दो मौकों पर उनकी जगह ले चुके थे) उनके उत्तराधिकारी होंगे; या हो सकता है उन्होंने इस बात की परवाह ही न की हो कि उनके बाद क्या होगा। फिर भी दो बातें एकदम साफ हैं: (1) उन्होंने इसका रंचमात्र भी संकेत नहीं दिया था कि शशिकला उनकी उत्तराधिकारी होंगी; और (2) उन्होंने शशिकला के नजदीकी रिश्तेदारों को फिर से पार्टी में आने नहीं दिया, जिन्हें उन्होंने 2011 में निकाल दिया था।

तख्तापलट और नतीजे
इसके बावजूद, जयललिता के न रहने पर शशिकला ने जो किया उसे एक तरह का तख्तापलट ही कहा जाएगा। पहले वह पार्टी के महामंत्री पद के लिए ‘चुन लिये जाने’ में कामयाब हो गर्इं, और फिर विधायक दल की नेता के तौर पर भी। वह मुख्यमंत्री बनने ही वाली थीं कि तभी सर्वोच्च्च न्यायालय के फैसले ने उनकी हसरत पर पानी फेर दिया। उन्होंने आनन-फानन में पन्नीरसेलवम को निकाल बाहर किया और इ पलानीसामी को विधायक दल का नेता चुनवा दिया। राज्यपाल के पास पलानीसामी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के सिवा और कोई चारा नहीं था।

फिर, अन्नाद्रमुक में दरार पड़नी ही थी। शुरू में दो धड़े थे, पर अब लगता है कि अगर चार नहीं, तो तीन धड़े जरूर हैं। पार्टी में दरार पड़ने के बावजूद सरकार आराम से चल रही है, मानो कुछ हुआ ही न हो! बजट सत्र चल रहा है, पर किसी ने भी किसी मांग या अनुदान या किसी विधेयक पर मतदान कराने की मांग नहीं की है और न किसी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है! यह आज के जमाने का चमत्कार है, जो हर हाल में अपनी सदस्यता बचाए रखने की विधायकों की फितरत की देन है!

आम धारणा यह है कि भाजपा कठपुतली की तरह सबको नचा रही है और चारों धड़ों के धागे उसके हाथ में हैं। यह तमिलनाडु की राजनीति में अपनी जगह बनाने की भाजपा की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में अधिक से अधिक वोट जुटाने का हथकंडा भी हो सकता है। लेकिन अगर इसके पीछे, तमिलनाडु में मध्यावधि चुनाव थोपने से पहले अन्नाद्रमुक (या पार्टी के बड़े धड़े) को अपने पाले में लाने की लंबी योजना काम कर रही है, तो कईगंभीर सवाल उठते हैं।आज अन्नाद्रमुक पार्टी और सरकार, दोनों नेतृत्व-विहीन हैं। रोज भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं, पर लगता नहीं कि अन्नाद्रमुक का सत्तासीन धड़ा इसको लेकर फिक्रमंद है; वे इस भरोसे में जी रहे हैं कि पार्टी के सभी धड़े भाजपा-आरएसएस के शिकंजे में हैं, और कुछ ऐसा नहीं हो पाएगा जिससे सरकार गिर जाए।

भ्रष्टाचार के मामले
जयललिता के निधन के बाद, तमिलनाडु में भ्रष्टाचार के जिन बड़े मामलों का खुलासा हुआ है वे निम्नलिखित हैं:

* एक खनन कारोबारी के ठिकानों पर आय कर विभाग की तलाशी में, जो 8 दिसंबर 2016 को शुरू हुई थी, 135 करोड़ रुपए और 177 किलो सोना जब्त किया गया। इस मामले के सुराग मुख्य सचिव के निवास और दफ्तर तक ले गए, जिन्हें बाद में हटा दिया गया।
* 4 अप्रैल, 2017 को आय कर अधिकारियों ने राज्य के स्वास्थ्यमंत्री के आवास की तलाशी ली और जो दस्तावेज बरामद करने का दावा किया उनमेंमुख्यमंत्री और छह मंत्रियों को दी गई रकम का विवरण भी शामिल था; यह रकम आरके नगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में मतदाताओं में रुपए बांटने के लिए दी गई थी।
* आरके नगर विधासभा क्षेत्र का उपचुनाव रद््द कर दिया गया, क्योंकि चुनाव आयोग को बड़े पैमाने पर मतदाताओं को पैसा बांटने के सबूत मिले। अठारह अप्रैल, 2017 को आयोग ने मुख्यमंत्री और छह मंत्रियों और उनके उम्मीदवार के खिलाफ मामले दर्ज करने का निर्देश दिया।
* दो हफ्ते पहले एक अखबार में एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसने यह खुलासा किया कि 8 जुलाई 2016 को एक गुटखा निर्माता के परिसरों पर ली गई तलाशी में एक मंत्री और कुछ वरिष्ठ पुलिस अफसरों को धन दिए जाने के सबूत मिले थे। फिर जल्दी ही एक रिपोर्ट सरकार को भेजी गई थी, पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
* प्रशासनिक भ्रष्टाचार चरम पर है। विभिन्न कामों की दरें तय हैं! बताई गई कीमत पर कोई भी सेवा हासिल की जा सकती है। मौजूदा सरकार के तहत व्यवस्था विकेंद्रीकृत हो गई है। सत्तासीन धड़े का हरेक विधायक वास्तव में अपने निर्वाचन क्षेत्र का मुख्य (मंत्री) है; इसी तरह हरेक मंत्री वास्तव में अपने जिले का मुख्य (मंत्री) है।

भाजपा का खेल क्या है
इस बीच, सरकार की वित्तीय स्थिति डांवांडोल हो चुकी है। 2017-18 के अंत में उस पर कुल कर्ज 3,14,366 करोड़ रु. का होगा, जो कि राज्य को मिलने वाले अनुमानित राजस्व 1,59,363 करोड़ रु. का करीब दुगुना होगा। राज्य ने 22,815 करोड़ रु. का ऋण जेनरेशन ऐंड डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी (टैनजेडको) से लिया, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ कर 2016-17 में 4.58 फीसद पर पहुंच गया। राज्य पर ऋण राज्य के जीडीपी के अनुपात में 20.9 फीसद पर पहुंच गया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, जलापूर्ति, स्वच्छता और शहरी विकास के मदों में पूंजीगत व्यय, कुल खर्चों के अनुपात में, गिर गया है।
तमिलनाडु में सरकार के नेतागण हर दिन, हर मौके पर ‘खा रहे’ हैं। कुशासन राज्य की अर्थव्यवस्था की नाभि को खा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि वे किसी को ‘खाने’ नहीं देंगे: उनके शब्द थे ‘ना खाने दूंगा’। फिर विनती है, भाजपा बताए कि वह ऐसी पार्टी और सरकार के साथ खिचड़ी क्यों पका रही है?